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________________ चतुर्थ देवलोक में हैं और तीसरे भव में मोक्षगामी होंगे यथा: -- "भणियं तित्थय रेहिं महाविदेहे भवंमि तइयम्मि । तुम्हाण चेव गुरुणो सिग्धं मुति गमिस्संति ॥ २ ॥ कटवाणिज्ये नगरे श्री अभयदेवा दिवम् गताः चतुर्थ देवलोके विजयिनः सन्ति । " आचार्य श्री अभयदेवसूरिजी की निम्नोक्त रचनाएँ प्राप्त हैं १ स्थानांग वृत्ति (सं० ११२० पाटण) २ समवायाङ्गवृत्ति (सं० ११२० पाटण) ३ भगवती वृत्ति (सं० ११२८ ) ४ ज्ञाता सूत्र वृत्ति (सं० १ २० विजया दशमी, पाटण) ५ उपाशक दशा सूत्रवृत्ति ६ अंतदृशा सूत्रवृत्ति [ १६ ] " ७ अनुत्तरोपपातिक सूत्र वृत्ति ८ प्रश्नव्याकरण सूत्र वृत्ति विपाक सूत्रवृत्ति १० उपवाइ सूत्र वृत्ति ११ प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी १२ पाशक सूत्रवृत्ति (सं० १९२४ घोलका ) Jain Education International १४२५० ३५७५ १८६१६ ३८०० ८१२ ८६६ १६२ ४६०० ܘܘ܀ ३१२५ १३३ ७४८० १३ सप्ततिका भाष्य १४ वृहद् वन्दनक भाष्य १५ नवपद प्रकरण भाष्य १६ पंच निग्रन्थी १७ आगम अष्टोत्तरो १८ निगोद षत्रिशिका १६ पुद्गल षट्त्रिंशिका २० आराधना प्रकरण २१ आलोयणा विधि प्रकरण २२ स्वधर्मी वात्सल्य कुलक २३ जयतिहुअण स्तोत्र २४ २५ स्तंभन पार्श्व स्तव २६ पार्श्व विज्ञतिका (सुरनर किन्नर ) २७ विज्ञप्तिका (जेसलमेर भण्डार ) वस्तुस्तव [देवदुत्थिय ] २५ षट् स्थान भाष्य २६ वीर स्तोत्र ३० षोडशक टीका ३१ महादण्डक ३२ तिथि पयन्ना ३३ महावीर चरित (अपभ्रंश ) ३४ उपधानविधि पंचाशक प्रकरण आचार्य अभयदेवसूरि के महत्त्व को व्यक्त करते हुए द्रोणाचार्य कहते हैं :आचार्याः प्रतिसद्म सन्ति महिमा येषामपि प्राकृते, तुं नाऽध्यवसीयते सुचरितेतेषां पवित्र जगत् । एकेनाऽपि गुणेन किन्तु जगति प्रज्ञाघनाः साम्प्रतं, यो धत्तेऽभयदेवसूरिमतां सोऽस्माकमादेद्यताम् ॥ [ यु प्रधानाचार्य गुर्वावली पूर ७] For Private & Personal Use Only गा० गा० गा० ८५ गा २५ TTO गा० प० १६२ ३३ १५१ पत्र ३० १६ ८ २६ गा० १७३ गा २२ ३३ गा० १०८ TITO ५० www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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