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________________ खरतर गच्छ के मान्य विद्वान आचार्य श्री मणिसागरसूरिजी का जब बीकानेर के हमारे शुभविलास में चातुर्मास हुमा तो उनके अन्तेवासी श्री विनयसागरजी में साहित्य और इतिहास की रुचि जाग्रत की गई और योग्यतम विद्वान बनाने का पूर्ण प्रयत्न किया गया। तब से आज तक उन्होंने साहित्य के संग्रह, संरक्षण, सूची-निर्माण, सम्पादन, प्रकाशन आदि में पर्याप्त श्रम किया है। खरतर गच्छ के कई छोटे-बड़े ग्रन्थों को उन्होंने सुसंपादित कर प्रकाशित करवाया और महान् विद्वान आचार्य श्रीजिनवल्लभसूरि पर "वल्लभ-भारती" नामक शोध-प्रबन्ध लिखकर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से “महोपाध्याय' उपाधि प्राप्त की। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा आपके सम्पादिप्त छंद शास्त्रीय "वृत्तमौक्तिक" ग्रन्थ तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। जिनपालोपाध्याय का सनत्कुमार चरित महाकाव्य भी आपके सम्पादित वहीं से प्रकाशित हुआ है । और भी आपके सम्पादित कई ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं व हो रहे हैं। खरतर गच्छ की साहित्य-सूची जब अष्टम शताब्दी स्मारक ग्रन्थ में प्रकाशन की योजना बनी तो महो. विनयसागरजी को उसके सम्पादन का भार दिया गया। उन्होंने बड़े परिश्रम व लगन से हजारों चिट बना के विषय वार और अकारादिक्रम से ग्रन्थ नामों को व्यवस्थित करके अपनी नई जानकारी के साथ यह सूची सम्पादित की है इसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं। उनके सत् सहयोग से ही इतने थोड़े समय में तैयार होकर यह प्रकाशित की जा रही है। इस सूची के अतिरिक्त उन्होंने खरतर गच्छ के स्तोत्रों, स्तवनों, सज्झायों, ऐतिहासिक गीतों आदि लघु रचनाओं की सूची भी बड़े परिश्रम से तैयार की है जिसे इस ग्रन्थ की सीमित पृष्ठ संख्या में देना सम्भव नहीं हुआ। इस सूची के अनेक परिशिष्ट भी ग्रन्थकार नाम व ग्रन्थों की अकारादि सूची आदि को देना बहुत आवश्यक है उन सबका प्रकाशन यथावसर किया जायगा। यह सूची अपने ढंग की एक ही है । अभी तक किसी भी गच्छ के साहित्य की ऐसी शोधपूर्ण सूची न तो किसो ने तैयार की है और न प्रकाशित ही हुई है। इस सूची द्वारा खरतर गच्छ को महान् साहित्य-सेवा का भली. भांति परिचय मिल जाता है। इसमें कई ऐसे ग्रन्थ हैं जो विश्व और भारतीय साहित्य में बेजोड़ व अद्वितीय हैं । उदाहरणार्थ कविवर समयसुन्दर रचित अष्टलक्षी, ठक्कुर फेरु रचित द्रव्य-परीक्षा, जिनपालोपाध्यायादि की युगप्रधानाचार्य गुर्वावली, जिनप्रभसूरिजी का विविध तीर्थकल्प आदि के नाम लिये जा सकते हैं । आगम प्रकरणादि की टीकाओं के अतिरिक्त जेनेतर ग्रन्थों की टीकाएं भी सर्वाधिक रू रतर गच्छ के विद्वान मुनियों ने बनायी हैं । उपाध्याय श्रीवल्लभ ने जिस उदारभाव से तपागच्छ के आचार्य श्री विजयदेव सूरि सम्बन्धी "विजयदेव माहात्म्य' काव्य की रचना की, वह तो अन्य गच्छ-सम्प्रदायों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक व अनुकरणीय है। एक-एक विषय के अनेकों महत्वपूर्ण ग्रन्थ और विशिष्ट ग्रन्थकारों के सम्बन्ध में महो० विनयसागरजी एक अध्ययनपूर्ण भूमिका लिखने वाले हैं जो समयाभाव से इस कृति के साथ नहीं दी जा सकी है। इस सूची में आए हुए ग्रन्थों के अतिरिक्त और भी बहुत सी रचनाएं खरतर गच्छ की हैं जिनकी प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने में हम प्रयत्नशील हैं । अन्य जिन सजनों को एतद्विषयक नवीन जानकारी प्राप्त हो वे कृपया हमें सूचित कर इस साहित्यिक महायज्ञ में सहयोग दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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