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________________ । १७६ मंत्र, तंत्र, ज्योतिष, चिकित्सा आदि विद्याओं का उपयोग के गुण और कार्यो का अनुसरण कर, गच्छ को महत्वपूर्ण किया था, वह विशुद्ध समाज हित की भावना से किया स्थान प्राप्त कराने का प्रयत्न करें तभी हमारा जयन्ती था। कहीं अपने व्यक्तिगत प्रभाव बढ़ाने या स्वार्थ के मनाना सार्थक होगा। नहीं तो बड़े बड़े जुलूस, सभा, लिए नहीं किया। परन्तु वह परम्परा आगे नहीं चली। भाषण, साहित्य प्रकाशन, स्वामी-वत्सल आदि में लाखों उल्टे हम उन उत्तम, महापुरुषों की भक्ति अपने व्यक्तिगत का खर्च करके भी विशेष लाभ नहीं उठा पावेंगे। आशा भौतिक सुखों की प्राप्ति और दुःख-विमुक्ति के लिये करने यह करनी चाहिये कि हमारे बन्धु इस विषय में चिन्तन लगे। इस कामनिक भक्ति ने हमें भिखारी या दीन बनाया, कर ऐसा मार्ग अपनावेंगे जिससे समाज, राष्ट्र और मानव हमारे पुरुपार्थ और सुप्त आत्मिक शक्ति का विकास होने कल्याण में खरतरगच्छ महत्त्वपूर्ण योगदान दे। महा में बाधा पहुंचायी। फलस्वरूप हमारा तेज नष्ट हुआ प्रभावी पुरुषों को शताब्दियों या जयन्तियों के मनाने की और हम उन युगप्रधान आचार्यों को परम्परा निभा परम्परा और हमारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पण करना तभी नहीं सके। उपयोगी हो सकेगा। आज ऐसे महान प्रभावशाली आचार्य मणिधारी हमें आशा ही नहीं पर पूर्ण विश्वास है कि खरतरजिनचन्द्रसूरि की ८ वीं शताब्दी के अवसर पर हम सब गच्छ संघ उस दिशा में अवश्य ही सही कदम उठावेगा खरतरगच्छ के साधु, साध्वी, श्रावक-श्राविकाए गहराई से चिन्तन कर हमारे तेजस्वी और प्रभावशाली आचार्यो और युग के अनुकुल समाज व संघ के हित के कार्य करेगा। Kutingदिवास्वमस्वशानिमाकादक समिविभूवरहाइकीय-स्तदददि, दसतरादिक मुहमपामसतिश्लोयादिवविविध सीतनिकायसाहित्य समाजवनमोहिनदीको महासमिरिनपासवंदतमसुयमामी सारी निजनिरमलताविशनयंताशीराजारानाने। मिननितबेकरकाजानिावीनतापजना नावामीकदिशकान्हमारधीमाबाडामालमत यानडाहिजनराधयानिबावीसमव जाहाबलियन सोराय अरमन बिनाकावाहाशविफलभाज्या-4S मुख्यातक मानिनिनायकवादीबा। तिनकटहरमविशिवेगिमानारामानशशिधापासुंसामाणिज्याला वामनीविजयादवरिणामीलेया तिश्राबलवतधाराधरण श्रीन मिना जितकरारा समामालगशवायोगदिशवामाशश्रीरवरसगावाटणाभाजिनमाणिक्यात शानाचिरचिरापविण्मुमतिधारनिरलिवतानाविकाचणाप्रताविकाकवौवाचनाची स्वगायचा यात लिखवावाचकामामालनलगायाधीश्वाघयमादायी सं० १६११ में सुमतिधीर (अकबर प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरि, आचार्य पद से पूर्व मुनि की हस्तलिपि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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