SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गच्छ को छोड़कर दूसरा और कोई गच्छ इसके गौरव की जन देना उचित नहीं समझते किन्तु उनके गुणों से लाभ बराबरी नहीं कर सकता। कई बातों में तो तपागच्छ से उठाकर पुरुषार्थ युक्त परिश्रम को अधिक महत्व देते हैं, भी इस गच्छ का प्रभाव विशेष गोरवान्वित है । भारत वही आत्मविकास की दृष्टि से श्रेयस्कर भी है। उस दृष्टि के प्राचीन गौरव को अक्षण्ण रखने वाली राजपूताने की से खरतरगच्छ के महान आचार्यो' ने जो कार्य किया उसका वीरभूमि का पिछले एक हजार वर्ष का इतिहास, ओसवाल महत्व इतना अधिक है कि जैन समाज ही नहीं पर भारजाति के शौर्य, औदार्य, बुद्धि-चातुर्य और वाणिज्य व्यव- तीय संस्कृति के उपासक उनके कार्यो का ठीक मूल्यांकन साय-कौशल आदि महद् गुणों से प्रदीप्त है और उन गुणों करे। वैसा सम्यक् मूल्यांकन तभी हो सकेगा जब हम उनके का जो विकास इस जाति में इस प्रकार हुआ है वह मुख्य- द्वारा लिखे गये साहित्य का गहराई से अनुशीलन व अध्यतया खरतरगच्छ के प्रभावान्वित मूल पुरुषों के सदुपदेश यन करेंगे। इस विषय में भी मुनिजिनविजयजी के शब्द तथा शुभाशीर्वाद का फल है। इसलिए खरतरगच्छ का उद्धृत किये बिना नहीं रहा जाता, मुनिजी कहते हैं :उज्ज्वल इतिहास यह केवल जैनसंघ के इतिहास का ही एक "खरतरगच्छ में अनेक बड़े-बड़े प्रभावशाली आचार्य, महत्वपूर्ण प्रकरण नहीं है, बल्कि समग्र राजपूताने के इति- बड़े-बड़े विद्यानिधि उपाध्याय, बड़े-बड़े प्रतिभाशाली पंडित हास का एक विशिष्ट प्रकरण है।" । मुनि और बड़े-बड़े मांत्रिक, तांत्रिक, ज्योतिर्विद, वैद्यक भारतीय संस्कृति और इतिहास में खरतरगच्छ के विशारद आदि कर्मठ यति-जन हुए जिन्होंने अपने समाज आचार्यो ने महत्वपूर्ण काम किया, उसका महत्व खरतर- की उन्नति, प्रगति और प्रतिष्ठा बढ़ाने में बड़ा योग दिया गच्छ और ओसवाल समाज के लिए तो और भी अधिक है। सामाजिक और साम्प्रदायिक उत्कर्ष के सिवा खरतरहो जाता है। ओसवाल समाज को जैनधर्म में दीक्षित कर गच्छ के अनुयायियों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश एवं देशी उच्च परस्परा की देन दो है, इसलिए ओसवाल समाज का भाषा के साहित्य को भो समृद्ध करने में असाधारण उद्यम इस परम्परा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना स्वाभाविक है किया और इसके फलस्वरूप आज हमें भाषा, साहित्य, और वैसा ओसवाल समाज ने किया भी है । उनको प्रति- इतिहास, दर्शन, ज्योतिष, वैद्यक आदि विविध विषयों का बोध देनेवाले दादा जिनदत्तसूरिजी को स्मृति ताजा रहे, निरूपण करनेवाली छोटो बड़ी सैंकड़ों हजारों ग्रन्थ-कृतियां इसलिए दादावाड़ियों का जगह-जगह निर्माण किया है। जैन भडारों में उपलब्ध हो रही हैं । खरतरगच्छोय विद्वानों एक तरह से ये दादावाड़ियाँ समाज के मिलन का स्थान की की हुई यह उपासना न केवल जैनधर्म की दृष्टि से ही और दादा जिनदत्तसूरिजो के प्रति कृतज्ञता के सुन्दर प्रतीक महत्त्व वाली है, अपितु समच्चय भारतीय संस्कृति के गौरव हैं। जहाँ उनके चरणों की स्थापना कर पूजा की जाती की दृष्टि से भी उतना हो महत्व रखती है।" है। उनके गुणों और कार्यो को याद को जाती है। खरतरगच्छ द्वारा चैत्यवास का उन्मूलन संयम मार्ग लोगों में मान्यता है कि उन्होंने केवल अपने जीवन को पुनः प्रतिष्ठा का ही परिणाम है। लेकिन पिछले दो काल में ही कल्याण नहीं किया था पर वे आज भी उनके सौ वर्षों में इस कार्य में कुछ शिथिलता आई है। कारण भक्तों के संकट दूर करते हैं। चूंकि हम किसी महापुरुष स्पष्ट है, हमने पार्थिव शरीर या रूढ़ आचारों का तो की पूजा, भक्ति कामना-भाव से करना जैन तत्वों की महत्त्व दिया पर उसके पीछे जो समाज कल्याण की भावना दृष्टि से प्रतिकूल मानते हैं इसलिए इस बात को हम उत्ते- और साधना थी, वह नहीं रही। फिर उन युगपुरुषों ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy