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________________ । १५७ ] एक भयंकर फोड़ा हो गया उससे मवाद निकलता था स्थ रहने लगे. फिर भी ज्ञान और संयम की आराधना में और उसमें कीड़े पड़ गये थे दुर्गन्ध के कारण कोई आदमी निरन्तर लगे रहते थे । पास भी बैठ नहीं पाता था, पर आपने ६ महीनों तक कदम्बगिरि के संघ में सम्मिलित होकर सौभागचन्दजी अपने हाथों से उसे धोने मल्हमपट्टी करने आदि का काम मेहता को आपने संघपति की माला पहनाई और तदनन्तर सहर्ष किया। इससे पूर्णमुनिजी को बहुत शाता पहुँची, उपाध्यायजी की आज्ञानुसार अस्वस्थ होते हुए भी भुजवे स्वस्थ हो गये। कच्छ के सम्भवनाथ जिनालय की अंजनशलाका और आगमों का अध्ययन करने के लिए आपने सम्पूर्ण प्रतिष्ठा उपाध्यायजी के सान्निध्य में करवाई फिर पालोआगमों का योगोद्वहन किया। इसके बाद सं० १९६५ में ताना पधारे और सिद्धगिरि पर स्थित दादाजी के चरणसिद्धक्षेत्र पालीताना में आचार्य श्रोजिनरत्नसूरिजी ने आपको पादुकाओं की प्रतिष्ठा और श्रीजिनदत्तसूरि सेवा संघ के गणिपद से विभूषित किया। अधिवेशन में सम्मिलित हुए। वहां श्रीगुलाबमुनिजी काफी दिनों से अस्वस्थ थे। आपने उनकी सेवामें कोई कसर नहीं मारवाड़, गुजरात, कच्छ, सौराष्ट्र और पूर्व प्रदेश तक रखी, पर उनकी आयुष्य की समाप्ति का अवसर आ चुका में आप निरंतर विचरते रहे। कच्छ और मारवाड़ में तो था, अतः सं० २०१७ वैसाख सुदि १० महावीर केवलज्ञान आपने कई मन्दिरमूर्तियों एवं पादुकाओं की प्रतिष्ठा भो करवायी। श्रीजिनरत्नसूरिजी की आज्ञा से भुज में दादा तिथि के दिन गुलाबमुनिजी स्वर्गस्थ हो गये। जिनदत्तसूरिजी की मूर्ति एवं अन्य पादुकाओं को प्रतिष्ठा आपका स्वास्थ्य पहले से हो नरम चल रहा था और बड़ी धूमधाम से करवाई। वहाँ से मारवाड़ के चूड़ा ग्राम में काफी अशक्ति आ गई थी। तलहट्टो तक जाने में भी आकर जिनप्रतिमा, नूतन दादावाड़ी और जिनदत्तसूरिजी आप थकजाते थे। पर सं० २०१८ के मिगसर से स्वास्थ्य को मूर्ति-प्रतिष्ठा करवाई । चूडा चातुर्मास के समय ही और भी गिरने लगा और वेद्यों के दवा से भी कोई फायदा आपको जिनरत्नसूरिजी के स्वर्गवास का समाचार मिला नहीं हुआ तो आप को डोली में विहार करके हवापानी आचार्यश्री को अन्तिम आज्ञानुसार आपने जिनऋद्धिसूरिजो बदलने के लिए अन्यत्र चलने को कहा गया । पर आपने के शिष्य गुलाबमुनिजी को सेवा के लिए बम्बई की ओर यही कहा कि मैं डोली में बैठकर कभी विहार नहीं करूंगा विहार किया और उनको अंतिम समय तक अपने साथ रख फाल्गुन महीने से ज्वर भी काफी रहने लगा और वैद्यों ने कर उनकी खूब सेवा की, उनके साथ गिरनार, पालीताना आपको श्रम करने का मना कर दिया। पर आप ज्वर में आदि तीर्थों की यात्रा को । इसी बीच उपाध्याय लब्धि- भी अपने अधूरे कामों को पूरा करने-लिखने आदि में लगे मुनिजी का दर्शन एवं सेवा करने के लिये आप कच्छ पधारे रहते थे। चिकित्सक को आपने यही उत्तर दिया कि यह और वहाँ मंजलग्नाम में नये मन्दिर और दादावाड़ी की तो मेरी रुचि का विषय है, लिखना बन्द कर देने पर तो प्रतिष्ठा उपाध्यायजी के सान्निध्य में करवाई, इसी तरह और भी बीमार पड़ जाऊँगा । वैद्यों की दवा में लाभ अंजार (कच्छ) के शान्तिनाथ जिनालय के ध्वजादंड एवं होता न देखकर आपसे डाक्टरी इलाज करने का अनुरोध गुरुमूर्ति आदि की प्रतिष्ठा करवाई। वहां से विचरते हुये किया गया, तो आपने कहा कि मैं कोई डाक्ट्री दवा-इजेपालीताना पधारे अशाता वेदनीय के उदय से आप अस्व- क्शन-मिक्सचर आदि नहीं लूंगा। तुम लोग आग्रह करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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