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________________ । १०७ ] नाम्नी रचनाओं में कवि का पोराणिक ज्ञान विजृम्भित रोचक वर्णन किया है। एक ओर वह कन्यादान का शास्त्रोक्त हुआ है। ___ फल बताता है तो दूसरी ओर वहीं गेय लोकगीतों की पाटण की राजवंशावली के संवत वार वर्णन में स्मृति भी दिलाता है। उसने राजस्थान के सुप्रसिद्ध लोकउसका प्रमाण-पुष्ट ऐतिहासिक ज्ञान प्रकटित होता है। गीत 'केशरियो लाडों को बड़े चाव और मनोयोग से __ कवि जिनहर्ष वीतराग साधु होने पर भी लोक गवाया है। कवि ने घर-जामाताओं को अपमानावस्था का विमुख नहीं थे। वे जन-कल्याण को अपनी साधना का चित्रण भी किया है और उन्हें अविलम्ब स्वाभिमानी जीवन अंग समझते थे। वे समाज के सच्चे हितचिन्तक थे और के लिए श्वसुर गृह से हट जाने की शुभ सम्पति दी है। अपने ज्ञान, अनुभव तथा आचरणों से उसे सन्मार्ग पर कविने सर्वसाधारण को सत्यपथपर अग्नेसर होने की चलाना चाहते थे। कवि का समस्त साहित्य समाज को प्रेरणा दी है। वह पुरजोर शब्दावली में दुष्ट संग त्याग साथ लेकर चला है। उन्होंने वर्ग-विशेष की तर्कप्रतिष्ठ का आग्रह करता है। ऋण लेने वालों को उसके दुष्फल शुष्क ऊहापोहात्मक मानसिक संतृप्ति का कभी प्रयत्न से परिचित कराता है और कभी भी कर्जा न लेने की शिक्षा नहीं किया । यह भी अनुभव नहीं किया कि साधुवेश देता है। (कुमारपाल रास पृष्ठ १०२) । मे उन्हें गृहस्थ धर्मोपदेश, विवाह विधान, प्रसूता परिचर्या कवि स्वयं भिक्षु याचक था; लेकिन उसने यांचाआदि का वर्णन नहीं करना चाहिये था। वे भेद बुद्धि वृत्ति की कटु भर्त्सना को है । वह उन अभागे निर्धन से सर्वथा परे थे। उनके लिये प्रसूता और नवोढ़ा में व्यक्तियों से शिक्षा ग्रहण करने को कहता है जो स्त्री के कोई अन्तर नहीं था। वे सर्वहित कथन मे तत्पर अविचारित उपदेश, दुष्टजन को कुशिक्षा और श्रावणान्त रहते थे । जब भी उन्हें अवसर मिला-उन्होंने हलकर्षण से भिक्षक बने भटकते फिरते हैं। कवि ने धन उसका सदुपयोग उठाया। इसी सामाजिक कल्याण का महत्त्व इसी रूपमें स्वीकार किया है कि वह जीवन के उन्हें समाज का प्रकाश-स्तम्भ बना दिया था। अन्यतम साधना का साधन है। उसे साध्य समझने वालों को __महाकवि परिवार हीन थे फिर भी पारिवारिकों को उसने फटकार बनायी है। कवि के पुरुष पात्र बहुविवाह मदुपदेश देते थे। उन्होंने अनेक प्रसंगों में उपदेश दिया है कि करते हैं; परन्तु वह इसके विपरीत है । द्विभार्य पुरुष की सुगृहिणी ही गृहमंडन है और सुस्वामी हो गृहस्थी का वही दुर्गति होती है जो दो पाटों के बीच में पड़े अन्न प्राणतत्त्व । सास और बहू को परस्पर प्रेम से रहने को को। कविने 'प्रेमपत्र' लिखने का ढंग भी बताया है । बात पर वे अत्यधिक बल देते हैं । पत्नी को पति से न लड़ने उसने यह पत्र विरहिणी नायिका की ओर से प्रवासी प्रियको सुमति देते हैं। पितृगृह से श्वसुरगृह के लिए प्रस्था- तम को लिखा है। उसने व्यावहारिक उपदेश भी दिया है नोद्यत नवोढ़ा को शिक्षा दी गयी है कि उसे सहिष्णुता कि राजा, चोर, शेर, सर्प, बालक, कवि और शस्त्रपाणि रखनी चाहिये । सास, ससुर, ननद, देवरानी, जेठानी का को नहीं छेड़ना चाहिये; अन्यथा ये विनाश कर देते हैं । अपमान नहीं करना चाहिये । कवि ने सास बहू के वैर को कहने की आवश्यकता नहीं कि महाकवि जिनहर्ष उन्दुर मार्जार का सा सहज वैर कहा है; इसलिए वह बहू सामाजिकों के अपने ही अभिन्न अंग हैं। सास बाहू का को पूर्व सावचेती का पाठ पढ़ाकर उसको गृहस्थी की झगड़ा हो तो वे वहाँ शान्ति स्थापनार्थ उपस्थित हैं। पुत्र सुखद कामना करता है । कवि ने विवाह-विधि का अत्यन्त अनर्जक हो गया है तो वे उसे उपदेश शिक्षण से उपार्जक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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