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________________ आचारांग एवं कल्पसूत्र में वर्णित महावीर चरित्रों का विश्लेषण एवं उनकी पूर्वापरता का प्रश्न ५ २ (ख) कुछ ऐसे उल्लेख जिनका स्पष्टीकरण कल्पसूत्र के महावीर-चरित्र के बिना नहीं हो सकता (१) एक अनुकम्पाधारी देव ने ['जायमेयं तिकटटु] यही आचार, कर्तव्य या रिवाज है ऐसा सोचकर गर्भो की अदलाबदली की (७३५) । यह आचार क्या है। उसके बारे में कहीं पर कुछ भी नहीं कहा गया है जबकि कल्पसूत्र (२०) में बड़े ही विस्तार के साथ समझाया गया है कि महान पुरुष ब्राह्मण कुल में जन्म नहीं लेते हैं और शक्रेन्द्र का यह कर्त्तव्य है कि गर्भ का किसी उच्च कुल में स्थानान्तर करें। (२) दीक्षा लेते समय अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण होने (समत्त पइण्णे) का उल्लेख है (७४६)। यह प्रतिज्ञा क्या थी? इसका उत्तर कल्पसूत्र (८७-९०) में मिलता है वहाँ पर गर्भ में ही भगवान् महावीर यह अभिग्रह धारण करते हैं कि माता-पिता के जीवन काल में प्रव्रज्या धारण नहीं करूंगा। स्पष्ट है कि कल्पसूत्र में इन बातों के आने के बाद इन्हें आचारांग में जोड़ा गया है । २ (ग) कल्पसूत्र से भेद रखने वाले तथ्य (१) आचारांग (७३५) गर्भ का अपहरण हो रहा है इस बात को जानते थे । कल्पसूत्र (३१) के अनुसार इसे नहीं जानते थे । (२) आचारांग में नत्तई (दौहित्री) कोसिय गोत्त की कही गयी है (७४४) जबकि कल्पसूत्र में वह कासथी गोत्त की कहो गयी है (१०९) । (३) प्रव्रज्या धारण करने से पहले षष्ठ भक्त का त्याग किया और एक शाटक ग्रहण करके लोच किया (७६६) । कल्पसूत्र के अनुसार लोच करने के बाद षष्ठ भक्त का त्याग किया और एक देवदूष्य ग्रहण किया (११४) । २ (घ) आचारांग में बाद में जोड़े गये पाठ या बदले हुए तथ्य (१) भगवान् गर्भावस्था में ही तीनों बातों को जानते हैं (तिण्णाणोवगते) (७३४)। इसमें से एक 'चयमाणे ण जाणति' कल्पसूत्र में भी आता है परन्तु आचारांग में इसके साथ स्पष्टीकरण सम्बन्धी यह पाठ आता है कि च्यवन काल इतना सूक्ष्म होता है कि च्यवन की घटना जानी नहीं जा सकती। यह स्पष्टीकरण कल्पसूत्र में नहीं है । स्पष्ट है कि आचारांग में 'सुहुमे णं से काले पण्णत्ते' पाठ बाद में जुड़ा है। (२) जन्म (७३६) देवताओं द्वारा उत्सव, तीर्थंकर का अभिषेक एवं कौतुककर्म के बाद ऐसा वर्णन है कि जब भगवान् महावीर गर्भ में आये तब से कुल में सभी तरह से अभिवृद्धि होने लगो थी। वास्तव में यही बात जन्म के पहले आनी चाहिए थी क्योंकि नामकरण के समय (७४०) यही बात पुनः दुहरायी गयो है कि इसी कारण से उनका नाम वर्धमान रखा गया । अतः उपरोक्त पाठ बाद में जोड़े गये हैं यह बिल्कुल स्पष्ट है। २ (ङ) अन्य पाठों में वृद्धि (१) कल्पसूत्र में माहणकुण्डग्गाम एवं खत्तिय कुंडग्गाम (२,१०) ऐसा उल्लेख आता है जब कि आचारांग में उन्हें दाहिणमाहण कुंडपुर एवं उत्तरखत्तिय कुंडपुर कहा गया है ( ७३४-७३५) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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