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________________ आचारांग एवं कल्पसूत्र में वर्णित महावीर चरित्रों का विश्लेषण एवं उनकी पूर्वापरता का प्रश्न के० आर० चन्द्र भगवान् महावीर की साधना का वर्णन आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध के 'उवहाण' सुत्त में प्राप्त होता है; परन्तु वहाँ पर उनके जीवन के बारे में कोई विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं है । उनके जीवन-चरित्र का वर्णन आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कंध के 'भावना' नामक अध्याय में और कल्पसूत्र (पर्युषणा-कल्प) में आता है। परम्परा के अनुसार भद्रबाहु ने कल्पसूत्र की रचना की थी। सम्भवतः कल्पसूत्र में भगवान् महावीर के चरित्र को सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप देने का प्रयत्न किया गया है। कल्पसूत्र में महावीर-चरित्र विस्तारपूर्वक मिलता है जबकि आचारांग में वह संक्षिप्त रूप में मिलता है। यद्यपि दोनों में समय-समय पर नवीन सामग्री जुड़ती रही है यह उनके अध्ययन से स्पट हो जाता है। कल्पसूत्र की कुछ विस्तृत बातें आचारांग में संक्षिप्त रूप में ली गयी हैं इससे यह भी प्रतीत होता है कि आचारांग के द्वितीय श्रनस्कन्ध में वर्णित महावीर-चरित्र का आधार कल्पसूत्र रहा है। कल्पसूत्र के महावीर-चरित्र को प्रामाणिक बनाने के लिए उसे आचारांग में जोड़ा गया होगा क्योंकि जो बातें अंगों में नहीं हों वे प्रामाणिक कैसे हो सकती हैं। यह सब होते हुए भी दोनों ग्रन्थों में महावीर-चरित्र मूल रूप में नहीं रह सका। उसमें समय-समय पर वृद्धि होती रही है। कुछ प्रसंग आचारांग में ही मिलते हैं तो कुछ कल्पसूत्र में ही मिलते हैं। दोनों में समान रूप से उपलब्ध महावीर-चरित्र की भाषाओं में भी कोई ऐसा तथ्य प्राप्त नहीं होता जिनसे उनकी प्राचीनता एवं अर्वाचीनता ज्ञात हो सके और उन्हें एक दूसरे के बाद का कहा जा सके। फिर भी कुछ प्रसंग ऐसे अवश्य हैं जिनसे प्रमाणित होता है कि आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के चरित्र वर्णन में कुछ प्राचीन तथ्य सुरक्षित रहे हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि कल्पसूत्र का पठनपाठन बहुत होता रहा है और उसकी प्रतियाँ भी उत्तरोत्तर बहुत लिखी जाती रही हैं अतः उसमें समय-समय पर परिवर्तन आना सहज था जबकि आचारांग के साथ ऐसा नहीं बन सका। १. (क) महावीर-चरित्र __आचारांग द्वितीय श्रुतस्कंध के अध्ययन १५ एवं कल्पसूत्र में जो सामग्री समान रूप से मिलती है उसका विवरण (१) महावीर के जीवन के पाँच प्रसंगों (च्यवन, गर्भापहरण, जन्म, दोक्षा एवं केवल ज्ञान) का हस्तोत्तरा नक्षत्र में होने का उल्लेख और स्वाति नक्षत्र में निवाण (आचा० सू० ७३३, कल्पसूत्र १) (२) आषाढ शुक्ल षष्ठी को देवलोक से देवानंदा के गर्भ में अवतरण और उस समय तीन प्रकार के ज्ञान का होना (७३४/२,३) (३) देवानन्दा एवं त्रिशला के गर्भो की अदलाबदली। उस समय भी तीन ज्ञान वाले होने का उल्लेख (७३५।२७, २९, ३०, ३१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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