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________________ आगमिक गच्छ/प्राचीन त्रिस्तुतिक गच्छ का संक्षिप्त इतिहास - २४५ अभयसिंहसरि द्वारा प्रतिष्ठापित एक जिनप्रतिमा पर वि० सं० १४२१ का लेख उत्कीर्ण है, अत; यह माना जा सकता है कि वि० सं० १४२१ के पश्चात् अर्थात् १५वीं शती के मध्य के आसपास यह गच्छ दो शाखाओं में विभाजित हुआ होगा।। चूँकि इस गच्छ के इतिहास से सम्बद्ध जो भी साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हैं, वे १५वीं शती के पूर्व के नहीं हैं और इस समय तक यह गच्छ दो शाखाओं में विभाजित हो चुका था अतः इन दोनों शाखाओं का ही अध्ययन कर पाना सम्भव है। शीलगुणसूरि तक के ८ पट्टधर आचार्यों में केवल अभयसिंहसूरि का ही वि० सं० १४२१ के एक प्रतिमा लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। शेष ७ आचार्यों के बारे में मात्र पट्टावलियों से ही न्यूनाधिक सूचनायें प्राप्त होती हैं, अन्य साक्ष्यों से नहीं। लगभग २०० वर्षों की अवधि में किसी गच्छ में ८ पट्टधर आचार्यों का होना असम्भव नहीं लगता, अतः आगमिक गच्छ के विभाजन के पूर्व इन पट्टावलियों की सूचना को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसरि और सोमतिलकसूरि की शिष्यसन्तति आगे चलकर क्रमशः धन्धूकीयाशाखा और विडालंबीयाशाखा के नाम से जानी गयी, यह बात निम्नप्रदर्शित तालिका से स्पष्ट होती है-- शीलगुणसूरि [ आगमिकगच्छ के प्रवर्तक ] देवभद्रसूरि धर्मघोषसूरि यशोभद्रसूरि अभयदेवसूरि सर्वानन्दसूरि जिनचन्द्रसूरि वज्रसेनसूरि वज्रसेनसूरि विजयसिंहसूरि हेमसिंहसूरि रत्नाकरसूरि अभयसिंहसूरि अमरसिंहसूरि हेमरत्नसूरि अमररत्नसूरि सोमरत्नरूरि गुणसमुद्रसूरि सोमतिलकसूरि सोमचन्द्रसूरि गुणरत्नसूरि मुनिसिंहसूरि धंधूकीयाशाखा प्रारम्भ विडालंबीया... शाखा प्रारम्भ Jain Education in For Private kersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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