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________________ २४४ डॉ. शिव प्रसाद सर्वाणंदसूरि अभयदेवसूरि वज्रसेनसूरि जिनचन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि अभयसिंहसूरि अमरसिंहसूरिहेमरत्नसूरि अमररत्नसूरि सोमरत्नसूरि गुणनिधानसूरि उदयरत्नसूरि सौभाग्यसुन्दरसूरि धर्मरत्नसूरि मेघरत्नसूरि जैसा कि स्पष्ट है, उक्त दोनों पट्टावलियां आगमिकगच्छ के प्रकटकर्ता शीलगुणसूरि से प्रारम्भ होती हैं। इसमें प्रारम्भ के ४ आचार्यों के नाम भी समान हैं, अतः इस समय तक शाखाभेद नहीं हुआ था, ऐसा माना जा सकता है । आगे यशोभद्रसूरि के तीन शिष्यों-सर्वाणंदसरि, अभयदेवसरि और वज्रसेनसूरि को पट्टावलीकार मुनिसागरसूरि ने एक सीधे क्रम में रखा वहीं धंधकीया शाखा की पट्टावली में उन्हें यशोभद्रसूरि का शिष्य बतलाया गया है । सर्वाणंदसरि की शिष्यपरम्परा में जिनचन्द्रसूरि हुए, शेष दो आचार्यों अभयदेवसरि और वज्रसेनसरि की शिष्यपरम्परा अागे नहीं चली। जिनचन्द्रसूरि के शिष्य विजयसिंहसूरि का दोनों पटावलियों में समान रूप से उल्लेख है। पटावलीकार मुनिसागरसूरि ने जिनचन्द्रसूरि के दो अन्य शिष्यों हेमसिंहसरि और रत्नाक रसूरि का भी उल्लेख किया है, परन्तु उनकी परम्परा आगे नहीं चली। विजयसिंहसूरि के शिष्य अभयसिंहसूरि का नाम भी दोनों पट्टावलियों में समान रूप से मिलता है। अभयसिंहसूरि के दो शिष्यों-~-अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसरि से यह गच्छ दो शाखाओं में विभाजित हो गया। अमरसिंहसूरि की शिष्यसन्तति आगे चलकर धन्धकीया शाखा और सोमतिलकसूरि की शिष्यपरम्परा विडालंबीया शाखा के नाम से जानी गयी। यह उल्लेखनीय है कि प्रतिमालेखों में कहीं भी इन शाखाओं का उल्लेख नहीं हुआ है, वहाँ सर्वत्र केवल आगमिकगच्छ का ही उल्लेख है, किन्तु कुछ प्रशस्तियों में स्पष्ट रूप से इन शाखाओं का नक्म मिलता है तथा दोनों शाखाओं की पट्टावलियाँ तो स्वतन्त्र रूप से मिलती ही हैं, जिनकी प्रारम्भ में चर्चा की जा चुकी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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