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________________ दशरथ गोंड २३३ सहज शंका होती है कि बौद्ध धर्म में प्रत्येक बुद्धों की अवधारणा मुक्त पदों की किन्हीं प्राचीन स्वतन्त्र मान्यताओं पर टिकी है, और हो सकता है कि किसी-किसी उदाहरण में उसका ऐतिहासिक आधार भी हो । यह ध्यान में रखते हुए कि श्रमण-परिव्राजक परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और विकास के प्रारम्भिक चरण में यह विशिष्ट समुदाय या सम्प्रदाय के रूप में विभाजित नहीं थी, यह कल्पनीय है कि इसी परम्परा में आदर प्राप्त किन्हीं विशिष्ट व्यक्तित्वों को बौद्ध धर्म ने आत्मसात् कर लिया और इन्हें प्रत्येक बुद्ध कोटि में स्थान दिया । अन्य किसी प्रकार से जातकों की सामग्री की समुचित व्याख्या नहीं हो पाती । जातकों में प्रायः काम-तृष्णा से विरति अथवा सभी सांसारिक वस्तुओं की अनित्यता आदि की विदर्शना - भावना से प्रत्येक बुद्धत्व प्राप्ति के सन्दर्भ मिलते हैं । पानीय जातक' में स्वयं बुद्ध प्राचीनकाल में, जब बुद्ध उत्पन्न नहीं हुए थे, पण्डितों द्वारा काम -वितर्कों का दमन कर प्रत्येक बुद्ध होने का उल्लेख करते हैं और इसी संदर्भ में वे पाँच प्रत्येक बुद्धों की कथा भी कहते हैं । इस कथा में काशी राष्ट्र के दो मित्रों की चर्चा में एक के पीने के लिए जल चुराने पाप की भावना का विचार कर और दूसरे के उत्तम रूप वाली स्त्री को देखकर चंचल मन होने का ध्यान कर प्रत्येक बुद्ध का उल्लेख है । दोनों के ही संदर्भों में पाप कर्म पर ध्यान को विदर्शना भावना के रूप में प्रस्तुत किया गया है और प्रत्येक बुद्ध हो जाने पर उनके रूप परिवर्तन होने, आकाश में स्थित होकर धर्मोपदेश करने और उत्तर हिमालय में नन्दमूल पर्वत पर चले जाने की चर्चा है । इसी प्रकार की काशी- ग्रामवासी एक पुत्र की कथा है जो अपने असत्य भाषण ( मृषावाद ) के पश्चात्ताप द्वारा प्रत्येक बुद्ध होता है, और उसी स्थान के एक ग्राम-भोजक की जो पशु बलि के पाप को विदर्शना - भावना से प्रत्येक-बुद्ध पद प्राप्त करता है । कुम्भकार जातक में भी विषय-वासना से भरे गृहस्थ जीवन की निस्सारता और सर्वस्व त्याग द्वारा अकिंचनता की प्राप्ति आदि की विदर्शना भावना द्वारा कई राजाओं, यथा - कलिङ्गनरेश करण्डु, गन्धार-नरेश नग्गजी विदेह - नरेश निमी और उत्तर पांचाल - नरेश दुम्मुख के प्रत्येकबुद्धत्व लाभ होने की कथा मिलती है । सोनक जातक में शालवृक्ष से एक सूखा पत्ता गिरते हुए देखकर एक व्यक्ति में शरीर की जरा-मृत्यु की भावना हुई और इस प्रकार सांसारिक जीवन की अनित्यता पर विचार कर उसने प्रत्येक बुद्ध पद प्राप्त किया । ४ महामोर जातक के अनुसार प्रत्येक-बुद्धत्व ज्ञान का लाभी सब चित-मलों का नाश कर संसार-सागर के अन्त पर खड़ा हो यह कहता है- "जिस प्रकार सर्प अपनी पुरानी केंचुली छोड़ देता है और वृक्ष अपने पीले पत्तों का त्याग कर देता है, उसी प्रकार मैं लोभ - मुक्त कुम्भकार जातक" में आलंकारिक भाषा में इस अवस्था का चित्रण माता की कोख - हुआ יין १. जातक ४५९, खण्ड ४. पृ० ३१४-३१६ । २. जातक ४०८, खण्ड ४, पृ० ३७-४० । ३. जातक ५२९, खण्ड ५, पृ० ३३२ ॥ ४. जातक ४९१, खण्ड ४, गाथा १५, पृ० ५४७ । ५. जातक ४०८, खण्ड ४, पृ० ३७-३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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