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________________ २३२ ऋषिभाषित और पालि जातक में प्रत्येक-बुद्ध की अवधारणा है। इसी को उच्चारण की सुकरता के लिए प्रायः जातक कह दिया जाता है। जातकट्ठकथा में छोटे-बड़े पाँच सौ सैंतालिस जातकों का संग्रह है, जो विभिन्न परिच्छेदों में विभाजित है। शैली और स्वरूप की दृष्टि से प्रत्येक जातक के पाँच तत्त्व हैं, यथा-पच्चुप्पन्नवत्थु, अतीतवत्थु, गाथा, अत्थवष्णना या वेय्याकरण और समोधान। अतीतवत्थु या अतीत कथा भाग में ही बुद्ध के पूर्व जन्म का वृत्तान्त आता है और इसप्रकार इसी भाग के लिए जातक नाम सार्थक है। पालि जातक कथाओं के अतीत कथा भाग में प्रत्येक बुद्धों के अनेक सन्दर्भ प्राप्त होते हैं। बौद्ध साधनों में अर्हत् पद के ही समकक्ष परन्तु स्वतन्त्र एक अन्य शील-सम्पन्न, आस्रवरहित विरज, विमल चक्षु प्राप्त किये विमुक्त प्राणी का पद था, प्रत्येक-बुद्ध का और अपनी अति-विशिष्ट अवधारणा तथा लोकप्रियता की दृष्टि से यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता स्वयं जातक इसकी लोकप्रियता के प्रमाण हैं, क्योंकि वहाँ उपलब्ध कथाओं में प्रत्येक-बुद्धों के अनेक ससम्मान उल्लेख हैं । आभिर्मिक बौद्धों की विकसित परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष मुक्त कोटियों की अवधारणा से जुड़ा है। गौतमबुद्ध के महापरिनिर्वाण के अनन्तर जब क्रमशः बुद्ध पद का विकास होने लगा और बुद्ध अधिकाधिक गुणों, विशेषणों से विभूषित किये जाने लगे, उस स्थिति में स्वाभाविक रूप से यह भी विकास हुआ कि यह पद विरल है, सर्व-सुलभ नहीं है और बुद्ध पद की प्राप्ति अनेक पूर्व जन्मों की तपस्या से ही सम्भव होती है। सामान्य मुक्तों या अर्हतों से भेंट करने के लिये ही बुद्ध के लिये सम्यक् सम्बुद्ध विशेषण की आवश्यकता पड़ी होगी। परन्तु अर्हत् और प्रत्येक-बुद्ध का परस्पर भेद किस प्रकार विकसित हुआ, यह अनुमान करना कठिन होता है । परिभाषा से प्रत्येक-बुद्ध बिना किसी की सहायता और पूर्णतः निज प्रयत्न से ज्ञान प्राप्त करते हैं, परन्तु ज्ञान का प्रकाशन किये बिना ही शरीर त्याग करते हैं। जैसा नीचे स्पष्ट होगा, जातकों से यह परिभाषा इस सीमा तक अवश्य समर्थित है कि वहाँ भी कभी-कभी इस प्रकार के सन्दर्भ मिलते हैं कि प्रत्येक बुद्ध शील का प्रकाशन नहीं करते । परन्तु जातकों के अनेक सन्दर्भो में स्वयं बोधिसत्त्व के प्रत्येक-बुद्धों के प्रति श्रद्धा एवं भक्तिभाव रखने, उनसे उपदेश सुनने और प्रेरणा प्राप्त कर प्रव्रज्या-ग्रहण करने के उल्लेख हैं। जबकि जातकों में बोधिसत्त्व के किसी अर्हत् से उपदेश सुनने का कोई भी सन्दर्भ नहीं मिलता। वहाँ तो उनके द्वारा किसी अन्य बुद्ध से ज्ञान प्राप्त करने का भी कोई उदाहरण नहीं मिलता, यद्यपि इस प्रकार के कई संकेत हैं कि बुद्ध अनेक हैं और काश्यप बुद्ध के एकाधिक उल्लेख भी हैं। महावेस्सन्तर जातक' में विपश्यी नामक सम्यक् सम्बुद्ध का उल्लेख है। इस स्थिति में यह १. देखिए मलालशेखर, डिक्शनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स, खण्ड २, पृ० ९४ और आगे, संदर्भ "पच्चेक बुद्ध", औ "पुग्गल-पति (पी०टी०एस० संस्करण ), पृ० १४ । २. महाजनक जातक, ५३९, खण्ड ६, पृ० ५। ( गाथा २२ ) ३. देखिये जातक, ९६ खण्ड ।; १३२ खण्ड २; ४०८, ४१५, ४१८, ४५९, ४९०, ४९५, - खण्ड ४; इत्यादि । जातक, खण्ड १, संख्या ४, ४१; खण्ड २, संख्या १०४, १९०, २४३; खण्ड ४, संख्या ४३९ ४६९; खण्ड ५, संख्या ५३७; खण्ड ६; संख्या ५४७. ५. जातक, खण्ड ६, संख्या ५४७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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