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________________ विमलसूरिकृत पउमचरिय में प्रतिमाविज्ञान-परक सामग्री १५५ केवल इन्द्र, वरुण, कुबेर एवं यम का ही लोकपालों की सूची में उल्लेख दो सम्भावनाओं की ओर निर्दिष्ट करता है : या तो पाँचवीं शती ई० के अन्त तक आठ दिक्पालों की सूची नियत नहीं हुई थी या फिर उन्हें जैन परम्परा में मान्यता नहीं मिली थी। इस सन्दर्भ में शशि ( या सोम ) का लोकपाल के रूप में उल्लेख भी महत्त्वपूर्ण है।' इस ग्रन्थ में इन्द्र के आयुध वज्र और सेनापति हरिणेगमेषी के भी उल्लेख हैं।' पउमचरिय में विभिन्न स्थलों पर विद्याधरों तथा उनके प्रमुखों के नाम और वंशावली भी दो गई है। इन विद्याधरों में पूर्णधन, मेघवाहन, सुलोचन ( विद्याधर अधिपति ), सहस्रनयन, धनवाहन, श्रीधर, अशनिवेग एवं रत्नरथ मुख्य हैं। विद्याधर पत्नियों एवं कन्याओं के हमें कुछ ऐसे ही नाम मिलते हैं जो कालान्तर में यक्षियों के नाम हुए। इनमें मनोवेगा और पद्मावती प्रमुख हैं। पउमचरिय में विद्याओं के उल्लेख ही निःसन्देह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। एक स्थल पर उल्लेख है कि ऋषभदेव के पौत्र, नमि और विनमि, को धरणेन्द्र ने बल एवं समृद्धि की अनेक विद्यायें प्रदान की थीं। युद्धादि अवसरों पर राम, लक्ष्मण, रावण, भानुकर्ण (कुम्भकर्ण), विभीषण आदि द्वारा अनेक विद्याओं की सिद्धि के विस्तृत सन्दर्भ हैं। ग्रन्थ में स्पष्टतः विद्याओं की सिद्धि से विभिन्न ऋद्धियों एवं शक्ति को प्राप्ति का संकेत दिया गया है। विद्याओं की प्राप्ति के लिए वीतरागी तीर्थंकरों की आराधना के सन्दर्भ सर्वप्रथम पउमचरिय में ही मिलते हैं। एक स्थल पर रावण द्वारा शान्तिनाथ के मन्दिर में बहुरूपा (या बहुरूपिणी) महाविद्या की सिद्धि करने तथा युद्धस्थल में इस महाविद्या के रावण के समीप ही स्थित होने के सन्दर्भ महत्त्वपूर्ण हैं। पउमचरिय के विवरण से विद्याओं को सिद्धि में तांत्रिक साधना का भाव भी स्पष्ट है। सिद्ध होने पर ये विद्याएं स्वामी के लिए सभी प्रकार के कार्य करने में सक्षम थों। रावण द्वारा सिद्ध बहुरूपा महाविद्या के लिए सम्पूर्ण त्रिलोक साध्य था। विद्या की साधना में तत्पर रावण के ध्यान की एकाग्रता को एकाग्र मन से सीता का चिन्तन करने वाले राम के समान बताया गया है। विभीषण का राम से यह कहना कि बहुरूपिणी महाविद्या की सिद्धि के बाद देवता भी रावण को जीतने में समर्थ नहीं होंगे-अत्यन्त १. मनु द्वारा वणित अष्टदिक्पालों की सूची में भी परवर्ती सुची के निऋति एवं ईशान् के स्थान पर सोम __एवं अर्क (सूर्य) के नामोल्लेख हैं । विमलसूरि की सूची मनु से प्रभावित प्रतीत होती है । . २. पउमचरिय ७.११ ३. पउभचरिय ५.२५७ ४. पउमचरिय ५.६५-७०, १६४, ६.१५७ ५. पउमचरिय ३.१४४-४९ ६. पउमरिय ६७.१-३; ६९.४६-४७; ७२.१५ ७. एयम्मि देसयाले, उज्जोयन्ती दिसाउ सव्वाओ। जयसइं कुणमाणी, बहुरूवा आगया विज्जा ।। तो भणइ महाविज्जा, सिद्धा हं तुज्झ कारणुज्जुत्ता । सामिय ! देहाऽऽत्ति, सज्झं मे सयलतेलोक्कं ।। -पउमचरिय ६८.४६-४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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