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________________ Jain Education International तालिका नं. ३ • चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) के आचार्यों का विद्यावंशवृक्ष (उपदेशपद [हरिभद्र] टीका उद्योतनसूरि उपदेशमाला बृहट्टीका उपमितिभवप्रपंचनामसमुच्चय वर्धमानसूरि आदि ग्रन्थों के प्रणेता - वि० सं० १०८८ में आबू स्थित विमलवसही में प्रतिमा प्रतिष्ठापक प्रमालक्षण [सटीक] जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि [वि० सं० १०८० में पक ग्रंथीव्याकरण की रचना] पञ्चलिंगीप्रकरण निर्वाणलीलाकथा वीरचरित्र . हरिभद्रसूरि के अष्टकों पर टीका षटस्थानप्रकरण कथाकोषप्रकरण आदि ग्रन्थों के प्रणेता For Private & Personal Use Only जिनचन्द्रसूरि [पट्टधर] संवेगरंगशाला के रचनाकार [वि० सं० ११२५] अभयदेवसूरि [पट्टधर] जिनभद्र अपरनाम धनेश्वरसूरि सुरसुन्दरीकहा [वि० सं० १०९५] वर्धमानसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि देवभद्रसूरि जिनवल्लभसूरि E जिनदत्तसूरि ([अभयदेवसूरि के पट्टधर] रवि० सं० ११४० में मनोरमाकहा वि० सं० ११६० में आदिनाथचरित्र वि० सं० ११८७-१२८८ अभिलेखानुसार] । चक्रेश्वरसूरि खरतरगच्छ प्रारम्भ बृहद्गच्छीय चन्द्रगच्छीय (परमानन्दसूरि वि० सं० १२१४ [अभिलेखानुसार] www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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