SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अङ्ग आगमों के विषयवस्तु-सम्बन्धी उल्लेखों का तुलनात्मक विवेचन ६५ अङ्गक्रम में यह छठा अङ्ग है। इसमें २ श्रुतस्कन्ध और १९ अध्ययन हैं जो संक्षेप से दो प्रकार के हैं-चरित और कल्पित । २९ उद्देशनकाल, २९ समुद्देशनकाल और संख्यात सहस्र पद हैं। धर्मकथाओं के १० वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग में ५००-५०० आख्यायिकायें हैं, प्रत्येक आख्यायिका में ५००-५०० उपाख्यायिकायें हैं, प्रत्येक उपाख्यायिका में ५००-५०० आख्यायिका-उपाख्यायिकायें हैं। इस तरह पूर्वापर सब मिलाकर साढ़े तीन करोड़ अपुनरुक्त कथायें हैं । शेष वाचना आदि का कथन आचाराङ्गवत् है। २ नन्दीसत्र में'-इसमें ज्ञाताधर्मकथा की विषयवस्तु प्रायः समवायाङ्गवत् ही बतलाई है। क्रम में अन्तर है। 'पतित प्रवजित पुरुषों को कथायें हैं', यह पैराग्राफ नहीं है। उद्देशन काल १९ और समुद्देशनकाल भी १९ बतलाये हैं। ३. विधिमार्गप्रपा में-इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं-ज्ञाता और धर्मकथा । ज्ञाता के १९ अध्ययन हैं-(१) उत्क्षिप्त, (२) संघाट, (३) अंड, (४) कूर्म, (५) शैलक, (६) तुम्बक, (७) रोहिणी, (८) मल्ली, (९) माकन्दी, (१०) चंदिमा, (११) दावद्रव, (१२) उदक, (१३) मंडुक, (१४) तेतली, (१५) नंदिफल, (१६) अवरकंका, (१७) आकीर्ण, (१८) सुंसुमा और (१९) पुंडरीक । धर्मकथाओं के १० वर्ग हैं जिनमें क्रमशः १०,१०,४,४,३२,३२,४,४,८,८, अध्ययन हैं। (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में १. तत्त्वार्थवात्तिक में ३-अनेक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन है। २. धवला में -नाथधर्मकथा में ५ लाख ५६ हजार पद हैं जिनमें सूत्र-पौरुषी-विधि (सिद्धान्तोक्त-विधि) से तीथंकरों की धर्मदेशना का, गणधरों के संदेह निवारण की विधि का तथा बहुत प्रकार की कथा-उपकथाओं का वर्णन है। ३. जयधवला में-नाथधर्मकथा में तीर्थंकरों की धर्मकथाओं के स्वरूप का वर्णन है। तीर्थकर दिव्यध्वनि द्वारा धर्मकथाओं के स्वरूप का कथन करते हैं । इसमें उन्नीस धर्मकथायें हैं। ४. अङ्गप्रज्ञप्ति में -इसमें "णाणकहा" तथा "णाहकहा" दोनों शब्दों का प्रयोग है जिनकी संस्कृत-छाया 'ज्ञातृकथा' तथा 'नाथकथा' की है। पुष्पिका में "णादाधम्मकहा" लिखा है इसमें ५५६००० पद हैं। इसे नाथकथा के कथन से संयुक्त कहा है -(नाथ = त्रिलोक स्वामी, धर्मकथा - १. नन्दीसूत्र ५१ । २. विधिमार्गप्रपा पृ० ५५ । तत्त्वार्थ० १.२० पृ० ७३ । धवला १.१.२ पृ० १०२-१०३ । ५. जयधवला गाथा १ पृ० ११४-११५ । अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा ३९-४४ पृ० २६५-२६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy