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________________ लक्ष्मीचन्द्र जैन आइंस्टाइन ने विश्व को साबुन के बुलबुले के समान ही माना। उनके अनुमान के अनुसार विश्व में पदार्थ से उत्पन्न वक्रता के साथ ही साथ एक सहज वक्रता भी होती है, जिसके कारण पदार्थ का परिमाण बढ़ने पर उसका आकार भी बढ़ जाता है। यदि विश्व पदार्थ-विहीन हो जाये तो वह असीम आकार का हो जाये । यह भी हो सकता है कि पदार्थ के परिमाण को बढ़ाने से विश्व का आकार घट जाये। इस प्रकार का संरचित विश्व क्या अस्थाई नहीं होगा ? ऐसे परिमित विश्व में वास्तविक अंतरिक्ष गतिशील पिण्डों को लिये हुए या तो फैल रहा होगा या सिकुड़ रहा होगा? प्रोफेसर डी सिटर ने भी माना था कि आकाश और काल के अपने गुणों के कारण विश्व में एक निश्चित परिमाण में वक्रता होती है और विश्व के पदार्थों के कारण उत्पन्न वक्रता आकाश और काल से उत्पन्न वक्रता की तुलना में नगण्य है। यह धारणा आइंस्टाइन को पूरक है। आइंस्टाइन का अस्थाई विश्व जैसे-जैसे बढ़ता जायेगा, उसमें पदार्थ विरल होता जायेगा और अन्ततः डी सिटर का विश्व रिक्त रूप में रह जायेगा। विश्व कितना विशाल है, इसका अनुमान एक उदाहरण से प्रस्तुत है। किसी नीहारिका का प्रकाश ( १ सेकेन्ड में १८६००० मील की गति से ) हमारे पास पहुँचने में ५ करोड़ वर्ष लग जाते हैं और ऐसी नीहारिकाएँ हमसे लगभग ४५०० मील प्रति सेकेन्ड की गति से दूर भाग रही हैं। आइंस्टाइन के सिद्धान्तानुसार प्रकाश का वेग ही विश्व में महत्तम है और गतिशील वस्तु से भी निकलने वाला प्रकाश उसी अपने वेग से निकलता है। प्रश्न है कि क्या यही प्रकृति के कणों का महत्तम वेग है ? ऐसे कण जिनका वेग प्रकाश कण के वेग से अधिक हो सकता है, टेख्यिान रूप में कल्पित किये गये हैं। आज अन्तरिक्ष की शोध पर अणुशक्ति यान व प्रयोगशालाएँ स्थापित कर करोड़ों रुपयों का व्यय किया जाता है। हाल ही संयुक्त राष्ट्र अमेरीका का चन्द्रतल पर पहुँचने का खर्च २५,०००० लाख डालर आया था और अन्य मद में ३०००० लाख डालर आया है। यह शोध नियन्त्रण योग्यता की ही है। अभी भी अन्यत्र खगोलीय पिण्डों में जीवन के आसार नहीं मिल सके हैं। किन्तु चन्द्रतल की शोध से ज्ञात हआ है कि वहाँ की चटाने ३७० करोड़ वर्ष पुरानी हैं। इसी प्रकार अन्य जानकारियों ने रहस्यमय विश्व के अनेक सिद्धान्तों को नया मोड़ दिया है। अब रेडियो, दूरवीक्षण यन्त्र भी नई कहानियाँ बतला रहे हैं। स्काईलैब में प्रयुक्त अति दूरस्थ उपग्रहों पर स्थित यन्त्र फ्रेड हायल के सिद्धान्त को अब अनुचित ठहरा रहा है तथा बिग बैंग सिद्धान्त के पक्ष में उपस्थित कर रहे हैं । उनके द्वारा x - किरण ज्योतिष का भी विकास हुआ है, जिनसे पल्सरों और क्वासरों का अविष्कार हुआ है। इनके अतिरिक्त अन्तरिक्ष की गहराईयों में एंटी-मेटर आदि से निर्मित काले छिद्र भी आविष्कृत हुए हैं। हमारा सूर्य स्वयं एक सितारा है, जो ५४१० वर्ष की आयु का है और लगभग इतने ही काल तक रहेगा। इसके पश्चात् वह श्वेत बौना न्युत्रान तारा तथा कृष्ण छिद्र में बदलता जायेगा। जब सभी नाभिक इंधन सूर्य का समाप्त होगा, तब वह ग्रह जैसा सफेद बौना तारा रूप में बदल जायेगा और पल्सर कहलाने लगेगा। उसे पल्सेटिंग रेडियो सोर्स कहा जायेगा। ऐसे तारों का आविष्कार १९६८ में केम्ब्रिज के रेडियो ज्योतिषियों ने किया। इसी प्रकार १९६० में अत्यन्त सघन ऊर्जा वाले तारों क्वासरों का आविष्कार हुआ, जो क्वासी स्टेलर रेडियो सोर्सेज़ कहलाते हैं । इनका व्यास अनेक किलो प्रकाश वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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