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________________ पूर्व मध्यकालीन भारतीय न्याय एवं दण्ड व्यवस्था (१) अदायक ( राज्य की आय को एकत्र करने वाला ), (२) निबन्धक ( लेखा-जोखा का कार्य करने वाला), (३) प्रतिबन्धक (सील का अध्यक्ष ), (४) नीति ग्राहक (वित्त विभाग का कार्य), (५) राज्याध्यक्ष ( इन चारों का अध्यक्ष )' । कर्णाटक के कलचुरि शासन में पाँच अधिकारी नियुक्त किये जाते थे। इन्हें 'करणम' कहते थे। इनका कार्य यह देखना था कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग न हो, न्याय की व्यवस्था ठीक हो तथा राजद्रोहियों और उपद्रवियों को समुचित दण्ड मिले। प्राकृत जैन कथा ग्रन्थों में उल्लिखित कारणिक राज्य के आय-व्यय आदि का लेखा-जोखा तैयार करने के साथ-साथ न्यायिक जाँच का भी कार्य करता था, जैसाकि ऊपर के साक्ष्यों द्वारा पुष्ट होता है। १. जी० सी० चौधरी-पोलिटिकल हिस्ट्री आफ नार्दर्न इंडिया फ्राम जैन सोर्सेज, पृ० 362 । २. इपिरॅफिया कर्णाटिका, भाग, 7, शिकारपुर संवत् 102 और 123 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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