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________________ क्या बोटिक दिगम्बर हैं ? दलसुख मालवणिया सर्वप्रथम यहाँ 'दिगम्बर' शब्द के प्रयोग से क्या अभिप्रेत है ? यह बताना आवश्यक है । 'दिगम्बर' शब्द का सामान्य अर्थ 'नग्न' होता है । यह सामान्य अर्थ यहाँ अभिप्रेत नहीं, अपितु विशेष अर्थ 'दिगम्बर-सम्प्रदाय' अभिप्रेत है । जिसकी मुख्य मान्यता है कि मुनि को वस्त्र का, पात्र का सर्वथा त्याग कर नग्न रहना चाहिए और इसी मान्यता का फलित है कि क्योंकि आर्या वस्त्ररहित हो नहीं सकती, अतएव स्त्री की मुक्ति नहीं होती । तदुपरान्त केवली के कवलाहार का निषेध आदि अन्य मान्यताएँ भी दिगम्बर-सम्प्रदाय में आई हैं । प्रस्तुत प्रसङ्ग में इतना समझ लेना पर्याप्त है । तो अब परीक्षा की जाय कि जिस बोटिक - सम्प्रदाय या निह्नव का श्वेताम्बर के प्राचीन ग्रन्थ आवश्यक सूत्र की टीका आदि में उल्लेख है, क्या वह दिगम्बर है ? आवश्यक के मूल भाष्य में गाथा १४५ से १४८ तक में सर्वप्रथम बोटिक का उल्लेख आया है, वह इस प्रकार है Jain Education International छव्वाससयाई नवुत्तराई तइया सिद्धिगयस्स वीरस्स । तो बोडियाण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्पण्णा ॥ रवीरपुरं नयरं दीवगमुज्जाण मज्जकण्हे य । सिवभूइस्सुवहिंमि य पुच्छा थेराण कहणा य ॥ ऊहाए पण्णत्तं बोडस भूउत्तराहि इमं । मिच्छादंसणमिणमो रवीरपुरे समुप्पणं ॥ बोओ बोडियलिंगस्स होइ उप्पत्ती । कोडिण्ण-कोट्टवीरा परंपराफासमुप्पण्णा' ॥ आवश्यक निर्युक्ति के मत से तो वर्धमान के तीर्थ में सात ही निह्नव थे, ऐसा निर्युक्ति गाथा ९९८ और उक्त भाष्य गाथाओं के बाद आने वाली नियुक्ति गाथा ९८४ से भी स्पष्ट होता है । अतएव मूलभाष्यकार ने बोटिक मत का निर्देश सर्वप्रथम किया है, यह स्पष्ट हो जाता है। आचार्य हरिभद्र आवश्यकटीका में उपर्युक्त गाथा १४६-१४७ को संग्रह गाथा के रूप में निर्दिष्ट करते हैं । १४५वीं गाथा को मुद्रित प्रति में भाष्य गाथा माना गया है । पुनः हरिभद्र ने गाथा १४७ एवं १४८ को मूल भाष्य की गाथा बताई है । तात्पर्य यह हुआ कि गाथा १४७ को उन्होंने संग्रह गाथा कहा और मूलभाष्य को भी गाथा बताया। इससे मालूम होता है कि उनके मत में संग्रह और मूल भाष्य एक ही होगा । आवश्यकचूर्णि में इन गाथाओं की व्याख्या करते समय चूर्णिकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं किया है कि ये गाथाएँ नियुक्ति की हैं या अन्यत्र से आयी हैं । किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि ये १. आवश्यकटीका - हरिभद्रकृत, पृ० ३२३ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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