SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५ श्वेताम्बर जैन साहित्य की कुछ अनुपलब्ध रचनायें तथा च हारिलवाचक चलं राज्यैश्वर्य धनकनकसारः परिजनो नपाद वाल्लभ्यं च चलममरसौख्यं च विपुलम् । चलं रूपारोग्यं चलमिह चरं जीवितमिदं जनो दृष्टो यो वै जनयति सुखं सोऽपि हि चलः॥ तथा च हारिलः "वातोद्धृतो दहति हुतभुग्देहमेकं नराणां मत्तो नागः कुपितभुजगश्चैकदेहं तथैव । ज्ञानं शीलं विनयविभवौदार्यविज्ञानदेहान् सर्वानर्थान् वहति वनिताऽमुष्मिकानैहिकांश्च ॥ विद्वत्प्रवर भोगीलाल सांडेसरा का कहना है कि प्रस्तुत वृत्ति में एक अन्य अवतरण भी मिलता है, जो रचनाशैली की दृष्टि से हारिल को कृति में से ही लिया गया हो तो असम्भव नहीं ।' यथाः तथा चाहु भवित्री भूतानां परिणतिमनालोच्य नियतां पुरा यद्यत्किञ्चिद्विहितमशुभं यौवनमदात् । पुनः प्रत्यासन्ने महति परलोकैकगमने तदेवैकं पुंसां व्यथयति जराजोर्णवपुषाम् ॥ थारापद्र-गच्छ का उद्भव हरिगुप्त (हारिल वाचक ) की परम्परा में बटेश्वर क्षमाश्रमण ( ईस्वी ८वीं शताब्दी प्रारम्भ ) को लेकर हुआ था और शान्ति सूरि थारापद्र-गच्छ के आम्नाय में हुए हैं। इसलिए उनका अपनी परम्परा के आदि मुनि की कृति से परिचित होना, और अपने ग्रन्थ-संग्रह में उनकी वह कृति होने की अपेक्षा भी स्वाभाविक है। __सम्प्रति अध्ययन में इसी कोटि का एक अन्य वैराग्यपरक पद्य भी हमारे देखने में आया, जो हारिल वाचक का हो सकता है। उत्तराध्ययनसुत्र की बहद्गच्छीय देवेन्द्र गणि (बाद में सैद्धान्तिक नेमिचन्द्र सूरि ) की सुखबोधा-टीका ( सं० ११२९/ईस्वी १०७३ ) में यह बिना नाम के उद्धृत है । ठीक यही पद्य कृष्णर्षि-शिष्य जयसिंह सूरि के धर्मोपदेश-मालाविवरण (सं० ९१५/ईस्वी ८५९ : दूसरे चरण में; थोड़ा पाठभेद के साथ ) तथा उनके पूर्व की रचना आवश्यक-सूत्र की चूणि में भी उद्धृत हुआ है । यथाः १. सांडेसरा, वही। 8. Cf. Jarl Charpentier, The Uttaradhyayana Sūtra, Indian edition, New Delhi 1980, p. 285. ३. सम्पा०, पं० लालचन्द भगवानदास गान्धी, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २८, बम्बई १९४९, पृ० ६२ । ४. मेहता, जैन साहित्य का बहद इतिहास, भाग ३, पृ० ३०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy