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________________ २२ भिखारी राम यादव किन्तु अक्रम अर्थात् युगपत् भाव से प्रतीति होती है। पञ्चम भंग में सत्व धर्म सहित अवक्तव्यत्व की, षष्ठ भंग में असत्व धर्म सहित अवक्तव्यत्व की और सप्त भंग में क्रम से योजित सत्वअसत्व सहित अवक्तव्यत्व धर्म की प्रतीति प्रधानता से होती है । इस तरह प्रत्येक भंग को भिन्नभिन्न दृष्टि-बिन्दु वाला समझना चाहिए।' इस प्रकार स्पष्ट है कि सप्तभंगी के प्रत्येक भङ्ग में भिन्न-भिन्न तथ्यों की प्रधानता है । प्रत्येक भङ्ग वस्तु के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है। इसलिए सप्तभङ्गी के सातों भङ्ग एक दूसरे से स्वतन्त्र हैं, किन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सप्तभङ्गी के प्रत्येक कथन पूर्णतः निरपेक्ष हैं । वे सभी सापेक्ष होने से एक दूसरे से सम्बन्धित भी हैं। ऐसा मानना चाहिए। किन्तु जहाँ तक उनके परस्पर भिन्न होने की बात है, वहाँ तक तो वे अपने-अपने उद्देश्यों को लेकर ही परस्पर भिन्न हैं । इस प्रकार सप्तभङ्गी का प्रत्येक कथन परस्पर सापेक्ष होते हुए भी परस्पर भिन्न है। इसलिए प्रत्येक भङ्ग का अपना अलग-अलग मूल्य ( Value ) है । अब यहाँ संक्षेप में 'मूल्य' ( Value) शब्द को भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है। आधुनिक तर्कशास्त्र में सभी फलनात्मक क्रियाएँ (Funtional Activities ) सत्यता मूल्यों ( Truth Values ) पर ही निर्भर करती हैं। आधुनिक तर्कशास्त्र के सभी फलन ( Function ) प्रकथन ( Proposition ) की सत्यता-असत्यता का निर्धारण करते हैं। आधुनिक तर्कशास्त्र यह मानता है कि प्रकथन जो किसी वस्तु या तथ्य के विषय में है, वह या तो सत्य है अथवा असत्य । सामान्य तर्कशास्त्र मूल रूप से इन्हीं दो कोटियों को मानता है। किन्तु आधुनिक तर्कशास्त्र के अनुसार सत्य-असत्य की भी अनेक कोटियाँ हो सकती हैं, जिन्हें भिन्न-भिन्न सत्यता मूल्यों से सम्बोधित किया जाता है। आधुनिक तर्कशास्त्र में उन्हीं मूल्यों की सत्यता मूल्य ( Truth Value) करते हैं, जिस प्रकथन के सत्य होने की जितनी अधिक संभावना होती है, उसका उतना ही अधिक सत्यता मूल्य होता है। जैसे यदि कोई तर्कवाक्य ( प्रकथन ) पूर्णतः सत्य है, तो उसका सत्यता मूल्य पूर्ण होगा । उसे आधुनिक तर्कशास्त्र में सत्य ( True ) या '१' से सम्बोधित करते हैं और जो पूर्णतः असत्य है, उसे असत्य (False) अथवा '०' से सूचित किया जाता है। इसी प्रकार जो संभावित सत्य है, उसे उसको संभावना के आधार पर १/२, १/३, १/४ आदि संख्याओं या संदिग्ध पद से अथवा किसी माडल से अभिव्यक्त किया जाता है । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि तकवाक्य में निहित सत्य की संभावना को सत्यता-मूल्य कहते हैं । यद्यपि असत्यता ( Falsity ) भी मूल्यवत्ता से परे नहीं है। असत्यता भी सत्यता ( Truth ) की ही एक कोटि है । जब सत्यता घट कर शून्य हो जाती है, तब वहाँ असत्यता का उद्भावन होता है। वस्तुतः असत्यता को सत्यता की अन्तिम कड़ी कहना चाहिए । इस असत्यता और सत्यता (जो कि सत्यता की पूर्ण एवं अन्तिम कोटि है) के बीच जो सत्य की संभावना होती है, उसको संभावित सत्य कहते हैं। इस प्रकार सत्य, असत्य आदि विभिन्न आयाम हैं। यहाँ हमें देखना यही है कि सप्तभङ्गी में इस तरह का सत्यता मूल्य प्राप्त होता है अथवा नहीं। __ संभाव्यता तर्कशास्त्र में एक ऐसा सिद्धान्त है, जिसमें सप्तभङ्गी जैसी प्रक्रिया का प्रतिपादन किया गया है। उसमें A, B और C तीन स्वतन्त्र घटनाओं के आधार पर चार सांयोगिक घटनाओं १. सप्तभंगीतरंगिणी, पृ० ९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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