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________________ १२२ विश्वनाथ पाठक लगी समुन्दर आगि, नदियाँ जरि कहै कबीरा जागि, मछली रूखें कोइला भई । चढ़ि गईं ॥ इस सोरठे में यथार्थं दृष्टि से बिल्कुल मिथ्या और असंभव बात कही गई है। समुद्र में आग कभी नहीं लग सकती है। यदि लग भी जाये तो उसी को जलायेगी । यहाँ तो आग लगी है समुद्र और जलकर कोयला हो रही हैं नदियाँ । क्या नदियां कोई काष्ठ हैं जो जलकर कोयला हो जायेंगी; भाप भले हो जाये । इस पर भी आश्चर्य देखिये, जिस विचित्र आग ने समुद्र में लगकर नदियों को भी जला डाला, वही अपने ईंधन वृक्षों को बिल्कुल नहीं जला सकीं, तभी तो बची हुई मछलियां उन पर चढ़ गईं। प्रतीकों की शक्ति को स्वीकार किये बिना यह सोरठा उन्मत्त प्रलाप बन जायेगा । जैसे मूल के कट जाने पर वृक्षों की हरियाली चली जाती है वैसे ही स्थापना समाप्त हो जाने पर प्रतीकों की शक्ति भी समाप्त हो जाती है । गाँव का एक साधारण व्यक्ति जिस स्थापना की शक्ति से कुछ दिनों के लिये राष्ट्रपति और प्रधान मन्त्री के रूप में महत्त्व एवं ऐश्वर्यं का प्रतीक बन जाता है, उसी के अभाव में 'पुनर्मूषको भव' की लोकोक्ति को चरितार्थ करने लगता है । Jain Education International जीवन में कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां नाम, रूप, स्थापना और प्रतीक का अधिकार न हो । किसी क्षेत्र में वे प्रतिषिद्ध नहीं हैं । कहीं भी उनके विरोध का स्वर नहीं सुनाई देता है। केवल उपासना में पता नहीं क्यों कुछ लोग प्रतीक ( प्रतिमा ) का विरोध करते हैं। आश्चर्य है, कल्पित नाम स्वीकार करने में किसी को भी आपत्ति नही है. निराकार वर्णों, गुणों, क्रियाओं और संख्याओं की कल्पित आकृतियाँ गढ़ लेने पर कोई पाप नहीं लगता है, गणित और भूगोल में असत्य बातों को कहते जिह्वा कट कर नहीं गिर जाती, मूल्यहीन कागज के टुकड़े को बहुमूल्य मान लेने पर भी बुद्धि का दिवाला नहीं निकलता, केवल आराध्य की प्रतिमा बना लेने पर हम अपराधी हो जाते हैं । - हो० त्रि० इण्टर कालेज, टाँडा, फैजाबाद For Private & Personal Use Only ( उ० प्र० ) www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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