SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 823
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष तो सुखी रोटी और मोटा कपड़ा ही उचित है। किन्तु जिस राजा के राज्य में प्रजा को इतना कष्टमय जीवन बिताना होता है, वह राजा अपने प्रजाधर्म का पालक तो नहीं कहा जा सकता। ऐसा राजा नरकेसरी होने के स्थान पर नरकेश्वरी ही होता है। एक ओर अपार स्वर्ण राशि और दूसरी ओर तन ढकने का कपड़ा और खाने के लिये सूखी रोटी का अभाव, यह राजा के लिये उचित नहीं है।" कहा जाता है कि हेमचन्द्र के इस उपदेश से प्रभावित हो राजा ने आदेश दिया कि नगर में जो भी अत्यन्त गरीब लोग है, उनको राज्य की ओर से वस्त्र और खाद्य सामग्री प्रदान की जाये। १३ इस प्रकार हम देखते हैं कि हेमचन्द्र यद्यपि स्वयं एक मुनि का जीवन जीते थे किन्तु लोकमंगल और लोकल्याण के लिये तथा निर्धन जनता के कष्ट दूर करने के लिये वे सदा तत्पर रहते थे और इसके लिये राजदरबार में भी अपने प्रभाव का प्रयोग करते थे। समाजशास्त्री हेमचन्द्र स्वयं मुनि होते हुए भी हेमचन्द्र पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की सुव्यवस्था के लिये सजग थे। वे एक ऐसे आचार्य थे जो जनसाधारण के सामाजिक जीवन के उत्थान को भी धर्माचार्य का आवश्यक कर्त्तव्य मानते थे। उनकी दृष्टि में धार्मिक होने की आवश्यक शर्त यह भी थी कि व्यक्ति एक सभ्य समाज के सदस्य के रूप में जीना सीखे। एक अच्छा नागरिक होना धार्मिक जीवन में प्रवेश करने की आवश्यक भूमिका है। अपने ग्रन्थ 'योगशास्त्र' में उन्होंने स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया है कि श्रावकधर्म का अनुसरण करने के पूर्व व्यक्ति एक अच्छे नागरिक का जीवन जीना सीखे। उन्होंने ऐसे ३५ गुणों का निर्देश किया है जिनका पालन एक अच्छे नागरिक के लिये आवश्यक रूप से वांछनीय है। वे लिखते हैं कि "१. न्यायपूर्वक धन-सम्पत्ति को अर्जित करने वाला २ सामान्य शिष्टाचार का पालन करने वाला, ३. समान कुल और शील वाली अन्य गोत्र की कन्या से विवाह करने वाला, ४. पापभीरु, ५. प्रसिद्ध देशाचार का पालन करने वाला, ६. निन्दा का त्यागी, ७. ऐसे मकान में निवास करने वाला जो न तो अधिक खुला हो न अति गुप्त, ८. सदाचारी व्यक्तियों के सत्संग में रहने वाला, ९. माता-पिता की सेवा करने वाला, १०. अशान्त तथा उपद्रव युक्त सत्संग स्थान को त्याग देने वाला, ११. निन्दनीय कार्य में प्रवृत्ति न करने वाला, १२. आय के अनुसार व्यय करने वाला, १३. सामाजिक प्रतिष्ठा एवं समृद्धि के अनुसार वस्त्र धारण करने वाला, १४. बुद्धि के आठ गुणों से युक्त, १५. सदैव धर्मोपदेश का श्रवण करने वाला, १६. अजीर्ण के समय भोजन का त्याग करने वाला, १७. भोजन के अवसर पर स्वास्थ्यप्रद भोजन करने वाला, १८. धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों का परस्पर विरोध-रहित भाव से सेवन करने वाला, १९. यथाशक्ति अतिथि, साधु एवं दीन-दुःखियों को सेवा करने वाला, २० मिथ्या आग्रहों से सदा दूर रहने वाला २१. गुणों का पक्षपाती, २२ निषिद्ध देशाचार और कालाचार का त्यागी, २३. अपने बलाबल का सम्यक् ज्ञान ". Jain Education International ६९१ करने वाला और अपने बलाबल का विचार कर कार्य करने वाला, २४. व्रत, नियम में स्थिर, ज्ञानी एवं वृद्ध जनों का पूजक, २५. अपने आश्रितों का पालन-पोषण करने वाला २६. दीर्घदर्शी, २७ विशेषज्ञ, २८. कृतज्ञ, २९. लोकप्रिय ३० लज्जावान, ३१. दयालु, ३२. शान्तस्वभावी, ३३. परोपकार करने में तत्पर, ३४. कामक्रोधादि अन्तरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला और ३५. अपनी इन्द्रियों को वश में रखने वाला व्यक्ति हो गृहस्थ धर्म के पालन करने योग्य है। .. १४ वस्तुतः इस समग्र चर्चा में आचार्य हेमचन्द्र ने एक योग्य नागरिक के सारे कर्त्तव्यों और दायित्वों का संकेत कर दिया है और इस प्रकार एक ऐसी जीवनशैली का निर्देश किया है जिसके आधार पर सामंजस्य और शान्तिपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सकता है। इससे यह भी फलित होता है कि आचार्य हेमचन्द्र सामाजिक और पारिवारिक जीवन की उपेक्षा करके नहीं चलते, वरन् वे उसे उतना ही महत्त्व देते हैं जितना आवश्यक है और वे यह भी मानते हैं कि धार्मिक होने के लिये एक अच्छा नागरिक होना आवश्यक है। हेमचन्द्र की साहित्य साधना १५ हेमचन्द्र ने गुजरात को और भारतीय संस्कृति को जो महत्त्वपूर्ण अवदान दिया है, वह मुख्यरूप से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के कारण ही है। इन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा के बल पर ही विविध विद्याओं में ग्रन्थ की रचना की। जहाँ एक ओर उन्होंने अभिधान - चिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघंटुकोष और देशीनाममाला जैसे शब्दकोषों की रचना की, वहीं दूसरी ओर सिद्धहेम शब्दानुशासन, लिङ्गानुशासन, धातुपारायण जैसे व्याकरण ग्रन्थ भी रचे कोश और व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन जैसे अलंकार ग्रन्थ और छन्दोनुशासन जैसे छन्दशास्त्र के ग्रन्थ की रचना भी की। विशेषता यह है कि इन सैद्धान्तिक ग्रन्थों में उन्होंने संस्कृत भाषा के साथ-साथ प्राकृत और अपभ्रंश के उपेक्षित व्याकरण की भी चर्चा की। इन सिद्धान्तों के प्रायोगिक पक्ष के लिये उन्होंने संस्कृत प्राकृत में द्वयाश्रय जैसे महाकाव्य की रचना की है। हेमचन्द्र मात्र साहित्य के ही विद्वान् नहीं थे अपितु धर्म और दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी गति निर्बाध थी। दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका और प्रमाणमीमांसा जैसे प्रौड़ ग्रन्थ रचे तो धर्म के क्षेत्र में योगशास्त्र जैसे साधनाप्रधान ग्रन्थ की भी रचना की। कथा साहित्य में उनके द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का अपना विशिष्ट महत्व है। हेमचन्द्र ने साहित्य, काव्य, धर्म और दर्शन जिस किसी विधा को अपनाया, उसे एक पूर्णता प्रदान की। उनकी इस विपुल साहित्यसर्जना का ही परिणाम था कि उन्हें कलिकालसर्वज्ञ की उपाधि प्रदान की गयी। - साहित्य के क्षेत्र में हेमचन्द्र के अवदान को समझने के लिये उनके द्वारा रचित ग्रन्थों का किंचित् मूल्यांकन करना होगा। यद्यपि हेमचन्द्र के पूर्व व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनीय व्याकरण का अपना महत्त्व था, उस पर अनेक वृत्तियाँ और भाष्य लिखे गए, फिर भी वह विद्यार्थियों के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy