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________________ उच्चै गर शाखा के उत्पत्ति स्थल एवं उमास्वाति के जन्म स्थान की पहचान ६२९ कि०मी० की समान दूरी पर अवस्थित हैं और किसी जैन साधु के द्वारा का जन्मस्थल नागोद (न्यग्रोध) है और उसकी ऊचैर्नागर शाखा का उत्पत्ति वहाँ से एक माह की पदयात्रा कर दोनों स्थलों पर आसानी से पहुँचा जा स्थल ऊँचेहरा ही है। सकता है। स्वयं उमास्वाति ने ही लिखा है कि वे विहार (पदयात्रा) करते संदर्भहुए कुसुमपुर (पटना) पहुँचे थे-विहरतापुरवे कुसुमनाम्नि १९ इससे यही १. तत्त्वार्थभाष्य, अन्तिम प्रशस्ति, श्लोक ३,५ लगता था कि न्यग्रोध (नागोद) कुसुमपुर (पटना) के समीप नहीं था। डॉ० २. कल्पसूत्र स्थविरावली, २१८ हीरालाल जैन ने संघ विभाजन स्थल-रहवीरपुर की कल्पना दक्षिण में ३. जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेख क्रमांक, १९, २०, २२, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के राहुरी ग्राम से की और उसी के समीप २३, ३१, ३५, ३६, ५०, ६४, ७१ स्थित 'निधोज' से की किन्तु यह ठीक नहीं है।२० प्रथम तो व्याकरण ४. कल्पसूत्र स्थविरावली, २१६ की दृष्टि से न्यग्रोध का प्राकृत रूप नागोद होता है, निधोज नहीं। दूसरे ५. ऐतिहासिक स्थानावली (ले० विजयेन्द्र कुमार माथुर), पृ० २३१ उमास्वाति जिस उच्चै गर शाखा के थे वह शाखा उत्तर भारत की थी, ६. Archaeological Survey of India, Vol. 14, p. 147 अत: उनका सम्बन्ध उत्तर भारत से ही है। अत: उनका जन्म स्थल भी ७. तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (द्वितीयोविभाग), इण्ट्रोडक्सन, हीरालाल उत्तर भारत में ही होगा। उच्चनागरी शाखा के उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा से कापड़िया, पृ०६ लगभग ३० कि०मी० पश्चिम की ओर 'निगोद' नामक कस्बा आज भी ८. पट्टावली पराग संग्रह (मुनि कल्याण विजय), पृ० ३७ है। आजादी के पूर्व यह एक स्वतन्त्र राज्य था और ऊँचेहरा इसी राज्य ९. तत्त्वार्थसूत्र, (विवेचक पं० सुखलाल संघवी), प्रकाशक पार्श्वनाथ के अधीन आता था। नागोद के आसपास भी जो प्राचीन सामग्री मिली विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, पृ० ४ . है उससे यही सिद्ध होता है कि यह भी एक प्राचीन नगर था। प्रो० के०डी० १०. ऐतिहासिक स्थानावली, पृ०६०८, ६४० बाजपेयी ने नागोद से २४ कि०मी० दूर नचना कुठार के पुरातात्त्विक ११. Archaeological Survey of India, Vol. 14, p. 147 महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है।२१ नागोद की अवस्थिति पन्ना १२. वही (म०प्र०), नचना कुठार और ऊँचेहरा के मध्य है। इन क्षेत्रों में गुप्तकाल १३. ऐतिहासिक स्थानावली, पृ० ८४३-४४ के पूर्व शुंगकाल से पूर्व ९वीं-१०वीं शती तक की पुरातात्त्विक सामग्री १४. कल्पसूत्र स्थविरावली, २१२ मिलती है। अत: इसकी प्राचीनता में सन्देह नहीं किया जा सकता है। १५. ऊँच्छ नामक अन्य नगरों के लिए देखिए-The Ancient नागोद न्यग्रोध का ही प्राकृत रूप है। अत: सम्भावना यही है कि उमास्वाति Geography of India, p. 204-205 का जन्मस्थल यही नागोद था और जिस उच्चनागरी शाखा में वे दीक्षित १६. भरहुत (डॉ० रमानाथ मिश्र), भूमिका, पृ० १८ हुए हो, वह भी उसी के समीप स्थित ऊँचेहरा (उच्चकल्प नगर) से उत्पन्न १७. वही, पृ० १८-१९ हुई थी। तत्त्वार्थभाष्य की प्रशस्ति में उमास्वाति की माता को वात्सी कहा १८. तत्त्वार्थसूत्र, पृ० ५ गया है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि वर्तमान नागोद और ऊँचेहरा १९. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, स्वोपज्ञ भाष्य, अन्तिम प्रशस्ति, श्लोक ३ दोनों ही प्राचीन वत्स देश के अधीन ही थे। भरहत और इस क्षेत्र के २०. दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्शन, प्रका० दिगम्बर जैन पंचायत, बम्बई, आसपास जो कला का विकास देखा जाता है वह कौशम्बी अर्थात् दिसम्बर १९४४ में मुद्रित 'जैन इतिहास का एक विलुप्त अध्याय' वत्सदेश के राजाओं के द्वारा किया गया था। ऊँचेहरा वत्सदेश के दक्षिण नामक प्रो० हीरालाल जैन का लेख, पृ० ७ का एक प्रसिद्ध नगर था। भरहुत के स्तूप के निर्माण में भी वात्सी गोत्र २१. संस्कृति सन्धान (सम्पा० डॉ० झिनकू यादव) वाल्यूम ३, १९९० के लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान था, ऐसा वहाँ से प्राप्त अभिलेखों से . में मुद्रित 'बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर: नचना' नामक प्रो० प्रमाणित होता है। भरहुत के स्तूप के पूर्वी तोरण द्वार बाच्छीपुत्त धनभूति कृष्णदत्त बाजपेयी का लेख पृ० ३१ का उल्लेख है। २२ अतः हम इसी निष्कर्ष पर पहँचते हैं कि उमास्वाति २२. भरहुत, भूमिका, पृ० १८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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