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________________ उच्चैर्नागर शाखा के उत्पत्ति स्थल एवं उमास्वाति के जन्म स्थान की पहचान तत्त्वार्थसूत्र के प्रणेता उमास्वाति ने तत्त्वार्थ भाष्य की अन्तिम उनके द्वारा बुलन्दशहर का ऊँचा नगर के रूप में उल्लेख होने से मुनि प्रशस्ति में अपने को उच्चै गर शाखा का कहा है तथा अपना जन्म- कल्याणविजयजी और कापड़ियाजी ने तथा बाद में पं० सुखलालजी ने स्थान न्यग्रोधिका बताया है। प्रस्तुत आलेख का मुख्य उद्देश्य उच्चै गर उच्चै गर शाखा को बुलन्दशहर से जोड़ने का प्रयास किया। यद्यपि प्रो० शाखा के उत्पत्ति स्थल एवं उमास्वाति के जन्म स्थल का अभिज्ञान कापड़िया ने अपना कोई स्पष्ट अभिमत नहीं दिया है। वे लिखते हैं कि (पहचान) कराना है। उच्चै गर शाखा का उल्लेख न केवल तत्त्वार्थ- "इस शाखा का नामकरण किसी नगर के आधार पर ही हुआ होगा किन्तु भाष्य में उपलब्ध होता है, अपितु श्वेताम्बर परम्परा में मान्य कल्पसूत्र इसकी पहचान अपेक्षाकृत कठिन है क्योंकि बहुत सारे ऐसे ग्राम और की स्थविरावली तथा मथुरा के बीस अभिलेखों में उपलब्ध होता है। शहर हैं जिनके अन्त में 'नगर' नाम पाया जाता है। वे आगे भी लिखते कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार उच्चैनांगर शाखा कोटिकगण की एक हैं कि कनिंघम का विश्वास है कि यह ऊँचानगर से सम्बन्धित होगी।"७ शाखा थी, मथुरा के अभिलेखों में कोटिकगण का तथा नौ अभिलेखों चूँकि कनिंघम ने आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया के १४वें खण्ड में उच्चै गर शाखा का उल्लेख मिलता है। कोटिकगण कोटिवर्ष के में बुलन्दशहर का समीकरण ऊँचा नगर से किया था। इसी आधार पर निवासी आर्य सुस्थित से निकला था। कोटिवर्ष की पहचान पुरातत्त्वविदों मुनि कल्याणविजयजी ने यह लिख दिया कि “ऊँचा नगरी शाखा प्राचीन ने उत्तर बंगाल के दिनाजपुर से की है। इसी कोटिकगण से आर्य शान्ति ऊँचा नगरी से प्रसिद्ध हुई थी। ऊँचा नगरी को आजकल बुलन्दशहर कहते श्रेणिक से उच्चै गर शाखा के निकलने का उल्लेख है। कल्पसूत्र के गण, हैं।"८ इस सम्बन्ध में पं०सुखलालजी का कथन है किकुल और शाखाओं के अध्ययन करने पर एक बात स्पष्ट हो जाती है "उच्चै गर' शाखा का प्राकृत नाम 'उच्चानागर' मिलता हैं। कि गणों का और शाखाओं का सम्बन्ध व्यक्तियों की अपेक्षा मुख्यतया यह शाखा किसी ग्राम या शहर के नाम पर प्रसिद्ध हुई होगी, यह तो स्थानों या नगरों से अधिक रहा है। जैसे- वारण गण वारणावर्त से स्पष्ट दिखता है। परन्तु यह ग्राम कौन सा था, यह निश्चित करना कठिन सम्बन्धित था, कोटिकगण कोटिवर्ष से सम्बन्धित था। यद्यपि कुछ गण है। भारत के अनेक भागों में 'नगर' नाम के या अन्त में 'नगर' शब्द वाले व्यक्तियों से भी सम्बन्धित थे। शाखाओं में कौशम्बिया, कोडम्बानी, अनेक शहर तथा ग्राम हैं। 'बड़नगर' गुजरात का पुराना तथा प्रसिद्ध नगर चन्द्रनागरी, माध्यमिका, सौराष्ट्रिका, उच्चै गर आदि शाखाएं मुख्यतया है। बड़ का अर्थ मोटा (विशाल) और मोटा का अर्थ कदाचित् ऊँचा भी नगरों से सम्बन्धित रही हैं। कुलों का सम्बन्ध मुख्य रूप से व्यक्तियों से होता है। लेकिन गुजरात में बड़नगर नाम भी पूर्वदेश के उस अथवा उस जैसे नाम के शहर से लिया गया होगा, ऐसी भी विद्वानों की कल्पना है। इससे उच्चनागर शाखा का बड़नगर के साथ ही सम्बन्ध है, यह जोर उच्चै गर शाखा का उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा (म०प्र) देकर नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त जब उच्चनागर शाखा उत्पन्न प्रस्तुत आलेख में मात्र हम उच्चै गर शाखा के सन्दर्भ में ही हुई, उस काल में बड़नगर था या नहीं और था तो उसे उसके साथ जैनों चर्चा करेंगे। विचारणीय प्रश्न यह है कि वह उचैर्नागर कहाँ स्थित था का कितना सम्बन्ध था, यह भी विचारणीय है। उच्चनागर शाखा के उद्भव जिससे यह शाखा निकली थी। मुनि श्री कल्याणविजयजी और हीरालाल के समय जैनाचार्यों का मुख्य विहार गंगा-यमुना की तरफ होने के प्रमाण कापड़िया ने कनिंघम को आधार बताते हुए इस उच्चै गर शाखा का मिलते हैं। अत: बड़नगर के साथ उच्चनागर शाखा के सम्बन्ध की कल्पना सम्बन्ध वर्तमान बुलन्दशहर से जोड़ने का प्रयत्न किया है। पं० सबल नहीं रहती। इस विषय में कनिंघम का कहना है कि यह भौगोलिक सुखलालजी ने भी तत्त्वार्थ की भूमिका में इसी का अनुसरण किया है। नाम उत्तर-पश्चिम प्रान्त के आधुनिक बुलन्दशहर के अन्तर्गत 'उच्चनगर' कनिंघम लिखते हैं कि “बरण या बारण यह नाम हिन्दू इतिहास में अज्ञात नाम के किले के साथ मेल खाता है।"९ है। 'बरण' के चार सिक्के बुलन्दशहर से प्राप्त हुए हैं। मुसलमान लेखकों किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि ऊँचानगर शाखा का ने इसे बरण कहा है। मैं समझता हूँ कि यह वही जगह होगी और इसका सम्बन्ध बुलन्दशहर से तभी जोड़ा जा सकता है जब उसका अस्तित्व नामकरण राजा अहिबरण के नाम के आधार पर हुआ होगा जो कि तोमर ई०पू० के प्रथम शताब्दी के लगभग रहा हो। मात्र यही नहीं उस काल वंश से सम्बन्धित था और जिसने यह किला बनावाया था किन्तु उसकी में वह ऊँचानगर कहलाता भी हो। इस शताब्दी के प्राचीन 'बरण' नाम तिथि ज्ञात नहीं है। यह किला बहुत पुराना है और एक ऊँचे टीले पर का उल्लेख तो मिलता है, किन्तु यह भी ९वीं-१०वीं शताब्दी से पूर्व बना हुआ है जिसके आधार पर हिन्दुओं द्वारा यह ऊँचा गाँव या ऊँचा का ज्ञात नहीं होता है। बारण (बरण) नाम से कब इसका नाम बुलन्दशहर नगर कहा गया है और मुसलमानों ने उसे बुलन्दशहर कहा है।"६ यद्यपि हुआ, इसके सम्बन्ध में उन्होंने अपनी असमर्थता व्यक्त की है। यह हिन्दुओं कनिंघम ने कहीं भी इसका सम्बन्ध उच्चै गर शाखा से नहीं बताया किन्तु के द्वारा ऊँचागाँव या ऊँचानगर कहा जाता था-मुझे तो यह भी उनकी रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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