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________________ डॉ० सागरमल जैन व्यक्तित्व एवं कृतित्व : हृदय से आये दो शब्द - श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौभाग्यमुनिजी 'कुमुद' डॉ० सागरमल जैन के विषय में मैं अधिक विस्तार से कुछ नहीं लिख सकता क्योंकि उनसे मेरा व्यक्तिगत संपर्क बहुत थोड़ा ही रहा किन्तु इतना मैं उनके विषय में अवश्य लिख सकता हूँ कि वे इस समय जैन दर्शन के श्रेष्ठतम विद्वान् हैं । जिन चार विद्वानों के लेख में हमेशा ध्यान से पड़ता आया उनमें डॉ० सागरमलजी भी एक हैं। इनके अलावा तीन विद्वान् हैं पं० बेचरदासजी, पं० सुखलालजी और पं० दलसुखभाई मालवणिया । . विद्वद्रत्न डॉ० सागरमल जी जैन के लेखों में स्पर्शी अध्ययन की झलक मिलती है। जिस विषय पर भी वे लिखते हैं गंभीर और सप्रमाण लिखते हैं, यही कारण है कि उनके लेख ही अपने आप में अपने विषय के अधिकृत पाठ हैं। विद्यार्थी उनका लेख पढ़कर अपने विषय की परिपूर्णता पा लेता है । मैं तो भ्रमण पत्रिका पड़ता ही इसीलिये हैं कि आपके लेख उसमें आते हैं। यदि कोई अंक सहज उपलब्ध नहीं होता तो मैं वाराणसी से मंगवा लेता हूँ तार्किकता के साथ विषय का सप्रमाण संपादन एवंम् विवेचन करना आप की अप्रतिम विशेषता है। विषय की सूक्ष्मतम विशेषताओं को भी अपने लेख में ऐसे चमत्कृत ढंग से प्रस्तुत करते हैं कि पाठक विषय को सहज ही सर्वांगीण रूप से समझने में सफल हो जाए। आप के लेखों का सबसे मूल्यावान भाग है- विषय की विवेचना में प्रस्तुत किया गया आप का चिंतन । जिस विषय को दुरूह या अपने लिये अनावश्यक समझकर पाठक उसे न भी पढ़ना चाहे तो भी आपके चिंतन पर उसका दृष्टिक्षेप हो जाए तो वह निश्चित ही आद्योपान्त पढ़ना चाहेगा। विषय चाहे कितना ही रुक्ष क्यों न हो डॉ० जैन का अध्ययन इतना विस्तृत है कि जैन जैनेतर दर्शन और सिद्धान्त के आधार पर वे रुक्ष विषय को भी दिलचस्प विषय में बदल देते हैं। यही कारण है कि मैं उनका कोई लेख पढ़े बिना नहीं छोड़ता। डॉ० साहब ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ के माध्यम से जिन शासन की महान सेवाएं की हैं जो जैन इतिहास में अमर रहेंगी। इनकी कृतियां भी कालजयी हैं, वे सदा जैन जगत् के बौद्धिक वर्ग को स्पन्दित करती रहेंगी । डॉ० साहब से मैं सर्वप्रथम अभी तीन वर्ष पूर्व उदयपुर में मिला। पहले भी मिले होंगे आप किन्तु वह मिलन मेरी स्मृति में नहीं है । उदयपुर में एक ज्ञान गोष्ठी का आयोजन था । आप उसमें सम्मिलित हुए यहीं । मैंने आपको नजदीक से देखा। आपकी सरलता, सुसभ्यता, सहज सादगी पूर्ण गंभीरता देखकर मैं अत्यन्त प्रभावित हुआ। जैन दर्शन और सिद्धान्त के विषय में उनकी तलस्पर्शी विवेचनाएं सुनकर मेरा दिल बाग बाग हो उठा। लेखों में जो पढ़ा उसे ध्वनि रूप में साकार होते देख बहुत प्रसन्नता हुई। Jain Education International यह जानकर मनमुदित हुआ कि अभिनन्दन ग्रन्थ के माध्यम से डॉ० साहब का अभिनन्दन किया जाने वाला है डॉ० सागरमल जैन जैसे प्रबुद्ध चेता के अभिनन्दन के लिये प्रबन्ध समिति ने अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का निर्णय लिया है यह सर्वथा सुयोग्य निर्णय है। इस बौद्धिक उपक्रम के अन्तर्गत मेरे इस छोटे से वक्तव्य के रूप में मेरी भी भागीदारी स्वीकार करें तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी। डॉ० जैन के सुदीर्घ जीवी होने की हार्दिक शुभकामना । For Private & Personal Use Only १७ www.jainelibrary.org.
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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