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________________ १६ जैन विद्या के आयाम खण्ड ६ मंगल कामना उपाध्याय कन्हैयालाल 'कमल' पार्श्वनाथ विद्यापीठ की प्रबन्ध समिति द्वारा डॉ० सागरमल जी जैन का अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित किया जा रहा है, यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। डॉ० सागरमल जी जैन सद्साहित्यों के श्रेष्ठ साहित्यकार हैं। आप जैन धर्म एवं दर्शन के मर्मज्ञ मनीषी होने के साथ जैन समाज के प्रबुद्ध कलमकार हैं । आपने आगम एवं इतिहास आदि साहित्य के विकास हेतु निःस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएँ प्रदान की हैं। आज के भौतिक युग में जहाँ अर्थ को प्रधानता दी जा रही है, ऐसे समय में मेरे द्वारा सम्पादित द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग की विशाल भूमिका बिना पारिश्रमिक के तैयार करना आपके समर्पित जीवन की परिचायक है। आपको यश नाम की आकांक्षा बिल्कुल नहीं है और यह आपकी एक बड़ी विशेषता है। आपका व्यक्तित्व-कृतित्व दोनों ही अभिनन्दनीय है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की प्रबन्ध समिति ने आपको अभिनन्दित करके साहित्य जगत् को गौरवान्वित किया है। श्री सागरमल जी इसी प्रकार श्रुत सेवा करते हुए जिन शासन की यशोकीर्ति में अभिवृद्धि करते रहें, मेरी यही मंगल कामना है। ऋजु प्राज्ञ: डॉ० सागरमल जैन चन्द्रप्रभ सागर यह जानकर प्रसन्नता हुई कि डॉ० सागरमल जैन का पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ओर से अभिनन्दन ग्रन्थ- प्रकाशित हो रहा है । कुछ ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो मानवता द्वारा सम्मानित और अभिनन्दित होते हैं। डॉ० सागरमल जैन वैदुष्य की वह प्रतिमा हैं जिन्होंने अपने जीवन में प्राप्त ज्ञान को आचरित किया है। हम उनकी समत्वशीलता व जीवनचर्या से प्रभावित रहे हैं । हमने डॉ० जैन के सान्निध्य में पूरे ढाई वर्ष बिताए हैं। वे हमारे ज्ञान- पक्ष एवं जीवन - विकास की आधारशिला रहे हैं। उन्होंने जहाँ एक आदर्श शिक्षक के रूप में हमें सप्रेम अध्ययन करवाया, वहीं एक श्रावक के रूप में अपनी सेवाएँ भी समर्पित की। भले ही किसी की दृष्टि में वे सांसारिक- विस्तार के बीच में बैठे हों, लेकिन हमारी दृष्टि में वे गृहस्थसंत हैं जल में कमलवत निर्लिप्त वे ऋजुप्राज्ञ है, हृदय से सरल और मस्तिष्क से ज्ञान सम्पन्न एक पूर्ण मनुष्य के लिए उसका ऋजुप्राज्ञ होना आवश्यक है । डॉ० जैन इस दृष्टि से हम सबके लिए आदर्श हैं । I Jain Education International डॉ० जैन के अभिनन्दन के अवसर पर हम उनके परम श्रेयस् की शुभकामना करते हैं। ज्ञान और सच्चरित्रता का यह संगम निर्वाण के महासागर की ओर वर्धमान हो। हमारी ओर से उन्हें प्रणाम और सादर अभिवादन समर्पित करें। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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