SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International डॉ॰ सागरमल जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व चौकस रखवारा हे सौम्य पुरुष ! हम वे नन्हें अंकुर हैं जिनको तुमने, मिट्टी की जड़ता तोड़-फोड़, जो उगे तुम्हारे तप की गरमी से तपकर, शीत ग्रीष्म वर्षा को सह अपने ऊपर, धन-वैभव को भी ठुकरा कर, जगते ही जगते बिता दिया जीवन सारा, हो गये धन्य हम सब अंकुर पा, तुम जैसा चौकस रखवारा । जिसकी छाया में युग-युग तक, ज्ञान-क्षुधा ज्ञान क्षुधा से तृषित यहाँ अम्बु-पान कर ज्ञान-सुधा का, पायें निज जीवन की For Private & Personal Use Only डॉ० रविशंकर मिश्र जोता-गोड़ा बोया- सींचा। करुणा के श्रम जल से पसीज वे रक्त-बीज इन अंकुर को पनपाने में तुमने जीवन के सुख-दुःख को, सुख-दुःख न गिना । घर-बार छोड़ इस आश्रम में हे भद्र पुरुष ! तुमने चाहा कि यह आश्रम एक शीतल सघन वितान बने, एक ऐसा पावन बोधि- वृक्ष मूल प्रेरणा का उठान । तेरे पौरुष की छाया में यह बिरवा सत्य अहिंसा का, विश्वास-स्नेह की मिट्टी में १३ www.jainelibrary.org.
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy