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________________ १२ e काव्य-पुष्पांजली Jain Education International जैन विद्या के आयाम खण्ड आलोकित हो जीवन सारा टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी में प्रतिभा का उन्मेश हुआ, स्वाध्यायी सघन - साधना से, दर्शन-चिंतन व्यक्त हुआ । स्वाभिमान के साये में, अभिमान पनप नहीं पाया, संघर्षो की अटूट श्रृंखला, फिर भी स्वार्थ न आ पाया। भाषा और विचारों में, सामंजस्य देखते बनता है। अभिव्यक्ति का रूप सुनहला, प्रत्येक ग्रंथ में दिखता है । यही तुम्हारी उपलब्धि है, यही तुम्हारी सम्पत्ति । यही तुम्हारी साहित्य साधना, यही तुम्हारी समृद्धि ॥ पुष्प खिलें जीवन के हर पल में, साहित्य साधना सतत् रहे । अध्यात्म चेतना जाग्रत हो, रत्नत्रय रहे । का * न्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर । ६ लक्ष्य For Private & Personal Use Only डॉ० श्रीमती पुष्पलता 'जैन* समता मानवता की रेखा, खिंची हुई है हाथों पर, कर्तव्यनिष्ठ बंधुत्व भावना, उभर गई है चेहरे पर । संघर्ष कसौटी जीवन की है. उसमें तुम सही उतरते हो, बीसों ग्रंथों के लेखन से, साहित्य जगत् में खिलते हो । आश्रम से विद्यापीठ बनाया, नूतन परिसर से चमकाया । विशाल भवन की अनेक पंक्तियों से उसको फिर महकाया || क्षमताओं की पूँजी बांधे, सागर की गहराई पाले । माध्यस्थ वृत्ति की छाया में, मृदुता ऋजुता को पनपाये ॥ । जीवन यात्रा अविचल होवे होवे व्याधिमुक्त काया । जलता रहे चिराग मंगलमय आलोकित हो जीवन सारा ॥ 物 www.jainelibrary.org.
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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