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________________ जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान २३३ खगोल का जो विवरण प्रस्तुत किया जाता है, उसमें इस प्रकार की कल्पना को स्वीकार नहीं करे, लेकिन वह जीवन एवं उसके विविध कोई कल्पना नहीं है। वह यह भी नहीं मानता है कि पृथ्वी के नीचे रूपों से इंकार नहीं कर सकता है। जीव-विज्ञान का आधार ही जीवन नरक व ऊपर स्वर्ग है। आधुनिक खगोल विज्ञान के अनुसार इस विश्व के अस्तित्व की स्वीकृति पर अवस्थित है। मात्र इतना ही नहीं, अब में असंख्य सौर मण्डल हैं और प्रत्येक सौर मण्डल में अनेक ग्रह-नक्षत्र वैज्ञानिकों ने अतीन्द्रिय ज्ञान तथा पुनर्जन्म के सन्दर्भ में भी अपनी व पृथ्वियां हैं। असंख्य सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र की अवधारणा जैन शोध यात्रा प्रारम्भ कर दी है। विचार सम्प्रेषण या टेलीपैथी का सिद्धान्त परम्परा में भी मान्य है। यद्यपि आज तक विज्ञान यह सिद्ध नहीं कर अब वैज्ञानिकों की रुचि का विषय बनता जा रहा है और इस सम्बन्ध पाया है कि पृथ्वी के अतिरिक्त किन ग्रह-नक्षत्रों पर जीवन पाया जाता में हुई खोजों के परिणाम अतीन्द्रिय-ज्ञान की सम्भावना को पुष्ट करते है, किन्तु उसने इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया कि इस ब्रह्माण्ड हैं। इसी प्रकार पुनर्जन्म की अवधारणा के सन्दर्भ में भी अनेक खोजें में अनेक ऐसे ग्रह-नक्षत्र हो सकते हैं जहाँ जीवन की संभावनाएं हैं। हुई हैं। अब अनेक ऐसे तथ्य प्रकाश में आये हैं, जिनकी व्याख्याएं अतः इस विश्व में जीवन केवल पृथ्वी पर है यह भी चरम सत्य नहीं बिना पुनर्जन्म एवं अतीन्द्रिय ज्ञान-शक्ति को स्वीकार किये बिना है। पृथ्वी के अतिरिक्त कुछ ग्रह-नक्षत्रों पर जीवन की संभावनाएं हो सम्भव नहीं हैं। अब विज्ञान जीवन-धारा की निरन्तरता और उसकी सकती हैं। यह भी संभव है कि पृथ्वी की अपेक्षा कहीं जीवन अधिक अतीन्द्रिय शक्तियों से अपरिचित नहीं है, चाहे अभी वह उनकी सुखद एवं समृद्ध हो और कहीं वह विपन्न और कष्टकर स्थिति में हो। वैज्ञानिक व्याख्याएं प्रस्तुत न कर पाया हो। मात्र इतना ही नहीं अनेक अतः चाहे स्वर्ग एवं नरक और खगोल एवं भूगोल सम्बन्धी हमारी प्राणियों में मानव की अपेक्षा भी अनेक क्षेत्रों में इतनी अधिक ऐन्द्रिकअवधारणाओं पर वैज्ञानिक खोजों के परिणाम स्वरूप प्रश्न चिह्न लगें, ज्ञान सामर्थ्य होती है जिस पर सामान्य बुद्धि विश्वास नहीं करती है, किन्तु इस पृथ्वी के अतिरिक्त इस विश्व में कहीं भी जीवन की किन्तु उसे अब आधुनिक विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है। अत: इस विश्व संभावना नही है, यह बात तो स्वयं वैज्ञानिक भी नहीं कहते हैं। पृथ्वी में जीवन का अस्तित्व है और वह जीवन अनन्त शक्तियों का पुंज हैके अतिरिक्त ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रह-नक्षत्रों पर जीवन की सम्भावनाओं इस तथ्य से अब वैज्ञानिकों का विरोध नहीं है। को स्वीकार करने के साथ ही प्रकारान्तर से स्वर्ग एवं नरक की जहाँ तक भौतिक तत्त्व के अस्तित्व एवं स्वरूप का प्रश्न है अवधारणायें भी स्थान पा जाती हैं। उड़न तश्तरियों सम्बन्धी जो भी वैज्ञानिकों एवं जैन-आचार्यों में अधिक मतभेद नहीं है। परमाणु या खोजें हुई हैं, उससे इतना तो निश्चित सिद्ध ही होता है कि इस पृथ्वी पुद्गल कणों में जिस अनन्तशक्ति का निर्देश जैन-आचार्यों ने किया के अतिरिक्त अन्य ग्रह-नक्षत्रों पर भी जीवन है और वह पृथ्वी से था वह अब आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषणों से सिद्ध हो रही है। आधुनिक अपना सम्पर्क बनाने के लिए प्रयत्नशील भी है। उड़न-तश्तरियों के वैज्ञानिक इस तथ्य को सिद्ध कर चुके हैं कि एक परमाणु का विस्फोट प्राणियों का यहाँ आना व स्वर्ग से देव लोगों की आने की परम्परागत भी कितनी अधिक शक्ति का सृजन कर सकता है। वैसे भी भौतिक कथा में कोई बहुत अन्तर नहीं है। अत: जो परलोक सम्बन्धी अवधारणा पिण्ड या पुद्गल की अवधारणा ऐसी है जिस पर वैज्ञानिकों एवं जैन उपलब्ध होती है वह अभी पूर्णतया निरस्त नहीं की जा सकती, हो विचारकों में कोई अधिक मतभेद नहीं देखा जाता। परमाणुओं के द्वारा सकता है कि वैज्ञानिक खोजों के परिणाम स्वरूप ही एक दिन पुनर्जन्म स्कन्ध (Molecule) की रचना का जैन सिद्धान्त कितना वैज्ञानिक है, व लोकोत्तर जीवन की कल्पनाएं यथार्थ सिद्ध हो सकें। इसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। विज्ञान जिसे परमाणु कहता था, जैन परम्परा में लोक को षड्द्रव्यमय कहा गया है। ये वह अब टूट चुका है। वास्तविकता तो यह है कि विज्ञान ने जिसे षड्द्रव्य निम्न हैं - जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल एवं काल। परमाणु मान लिया था, वह परमाणु था ही नहीं, वह तो स्कन्ध ही था। इनमें से जीव (आत्मा), धर्म, अधर्म, आकाश व पुद्गल ये पाँच क्योंकि जैनों की परमाणु की परिभाषा यह है कि जिसका विभाजन अस्तिकाय कहे जाते हैं। इन्हें अस्तिकाय कहने का तात्पर्य यह है कि नहीं हो सके, ऐसा भौतिक तत्त्व परमाणु है। इस प्रकार आज हम ये प्रसरित है। दूसरे शब्दों में जिसका आकाश में विस्तार होता है वह देखते हैं कि विज्ञान का तथाकथित परमाणु खण्डित हो चुका है। अस्तिकाय कहलाता है। षड्द्रव्यों में मात्र काल को अनस्तिकाय कहा जबकि जैन-दर्शन का परमाणु अभी वैज्ञानिकों की पकड़ में आ ही नहीं गया है, क्योंकि इसका प्रसार बहुआयामी न होकर एक रेखीय है। यहाँ पाया है। वस्तुत: जैन दर्शन में जिसे परमाणु कहा जाता है उसे हम सर्वप्रथम तो यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि षड्द्रव्यों की जो आधुनिक वैज्ञानिकों ने क्वार्क नाम दिया है और वे आज भी उसकी अवधारणा है वह किस सीमा तक आधुनिक विज्ञान के साथ संगति खोज में लगे हुए हैं। समकालीन भौतिकी-विदों की क्वार्क की परिभाषा रखती है। यह है कि जो विश्व का सरलतम और अन्तिम घटक है, वही क्वार्क षड्द्रव्यों में सर्वप्रथम हम जीव के सन्दर्भ में विचार करेंगे। है। आज भी क्वार्क को व्याख्यायित करने में वैज्ञानिक सफल नहीं हो चाहे विज्ञान आत्मा की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार न करता हो, किन्तु पाये हैं। वह जीवन के अस्तित्व से इंकार भी नहीं करता है, क्योंकि जीवन की आधुनिक विज्ञान प्राचीन अवधारणाओं को सम्पुष्ट करने में उपस्थिति एक अनुभूत तथ्य है। चाहे विज्ञान एक अमर आत्मा की किस प्रकार सहायक हुआ है कि उसका एक उदाहरण यह है कि जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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