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________________ जैनदर्शन में पुद्गल और परमाणु १३५ सबके पास पहुँच ही रही हैं। आज यदि हमारे चैतन्य मस्तिष्क की ग्रहण और अन्तिम घटक, है, वही क्वार्क है। आज भी क्वार्क को व्याख्यायित शक्ति विकसित हो जाय तो दूरस्थ विषयों का ज्ञान असम्भव नहीं है। करने में वैज्ञानिक सफल नहीं हो पाये हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन धार्मिक कहे जाने वाले साहित्य में आधुनिक विज्ञान प्राचीन जैन अवधारणाओं को सम्पुष्ट करने भी बहुत कुछ ऐसा है, जो या तो आज विज्ञान सम्मत सिद्ध हो चुका है में किस प्रकार सहायक हुआ है कि उसका एक उदाहरण यह है कि जैन अथवा जिसके विज्ञान सम्मत सिद्ध होने की सम्भावना अभी पूर्णतः तत्त्व-मीमांसा में एक ओर यह अवधारणा रही है कि एक पुद्गल परमाणु निरस्त नहीं हुई है। जितनी जगह घेरता है- वह एक आकाश प्रदेश कहलाता है, दूसरे शब्दों अनेक आगम वचन या सूत्र ऐसे हैं, जो कल तक अवैज्ञानिक . में एक आकाश प्रदेश में एक परमाणु ही रह सकता है, किन्तु दूसरी प्रतीत होते थे, वे आज वैज्ञानिक सिद्ध हो रहे हैं। मात्र इतना नहीं, ओर आगमों में यह भी उल्लेख है कि एक आकाश प्रदेश में अनन्त इन सूत्रों की वैज्ञानिक ज्ञान के प्रकाश में जो व्याख्या की गयी, वह पुद्गल परमाणु समा सकते हैं। इस विरोधाभास का सीधा समाधान हमारे अधिक समीचीन प्रतीत होती है। उदाहरण के रूप में परमाणुओं के पास नहीं था। लेकिन विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व में कुछ पारस्परिक बन्धन से स्कन्ध के निर्माण की प्रक्रिया को समझाने हेतु ऐसे ठोस द्रव्य हैं जिनका एक वर्ग इंच का वजन लगभग ८ सौ टन तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय का एक सूत्र है- स्निग्धरूक्षत्वात् बन्धः। होता है। इससे यह भी फलित होता है कि जिन्हें हम ठोस समझते हैं, इसमें स्निग्ध और रुक्ष परमाणुओं के एक-दूसरे से जुड़कर स्कन्ध वे वस्तुत: कितने पोले हैं। अतः सूक्ष्म अवगाहन शक्ति के कारण यह बनाने की बात कही गयी है। सामान्य रूप से इसकी व्याख्या यह संभव है कि एक ही आकाश प्रदेश में अनन्त परमाणु भी समाहित हो कहकर ही की जाती थी कि स्निग्ध (चिकने) एवं रुक्ष (खरदुरे) जायें। परमाणुओं में बन्ध होता है, किन्तु आज इस सूत्र की वैज्ञानिक दृष्टि जैन दर्शन का परमाणुवाद आधुनिक विज्ञान के कितना निकट से व्याख्या होगी तो स्निग्ध अर्थात् धनात्मक विद्युत् से आवेशित एवं है। इसका विस्तृत विवरण श्री उत्तम चन्द जैन ने अपने लेख 'जैन दर्शन रुक्ष अर्थात् ऋणात्मक विद्युत् से आवेशित सूक्ष्म-कण, जैन दर्शन का तात्त्विक पक्ष परमाणुवाद' में दिया है। हम यहाँ उनके मन्तव्य का की भाषा में परमाणु, परस्पर मिलकर स्कन्ध (Molecule) का कुछ अंश आंशिक परिवर्तन के साथ उद्धृत कर रहे हैंनिर्माण करते हैं। इस प्रकार तो तत्त्वार्थसूत्र का यह सूत्र अधिक विज्ञान सम्मत प्रतीत होता है। प्रो० जी० आर० जैन ने अपनी पुस्तक जैन परमाणुवाद और आधुनिक विज्ञान Cosmology Old and New में इस सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन जैन दर्शन की परमाणुवाद पर आधारित निम्न घोषणाएं आधुनिक किया है और इस सूत्र की वैज्ञानिकता को सिद्ध किया है। विज्ञान के परीक्षणों द्वारा सत्य साबित हो चुकी है जहाँ तक भौतिक तत्त्व के अस्तित्व एवं स्वरूप का प्रश्न है १. परमाणुओं के विभिन्न प्रकार के यौगिक, उनका विखण्डन वैज्ञानिकों एवं जैन आचार्यों में अधिक मतभेद नहीं है। परमाणु या एवं संलयन, विसरण, उनकी बंध, शक्ति, स्थिति, प्रभाव, स्वभाव, पुद्गल कणों में जिस अनन्त शक्ति का निर्देश जैन आचार्यों ने किया था संख्या आदि का अतिसूक्ष्म वैज्ञानिक विवेचन जैन ग्रन्थों में विस्तृत रूप वह अब आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषणों से सिद्ध हो रहा है। आधुनिक में उपलब्ध है। वैज्ञानिक इस तथ्य को सिद्ध कर चुके हैं कि एक परमाणु का विस्फोट २. पानी स्वतंत्र तत्त्व नहीं अपितु पुद्गल की ही एक अवस्था भी कितनी अधिक शक्ति का सृजन कर सकता है। वैसे भी भौतिक है। यह वैज्ञानिक सत्य है कि जल यौगिक है। पिण्ड या पुद्गल की अवधारणा को लेकर वैज्ञानिकों एवं जैन विचारकों ३. शब्द आकाश का गुण नहीं अपितु भाषावर्गणा रूप में कोई अधिक मतभेद नहीं देखा जाता। परमाणुओं के द्वारा स्कन्ध स्कंधों का अवस्थान्तर है, इसलिए यंत्रग्राह्य है। (Molecule) की रचना का जैन सिद्धान्त कितना वैज्ञानिक है, इसकी ४. विश्व किसी के द्वारा निर्मित नहीं, क्योंकि सत् की चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। विज्ञान जिसे परमाणु कहता था, वह अब उत्पत्ति या विनाश संभव नहीं। सत् का लक्षण ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य टूट चुका है। वास्तविकता तो यह है कि विज्ञान ने जिसे परमाणु मान युक्त होना है। पुद्गल निर्मित विश्व मिथ्या एवं असत् नहीं है, सत् लिया था, वह परमाणु था ही नहीं, वह तो स्कन्ध ही था। क्योंकि जैनों स्वरूप है। की परमाणु की परिभाषा यह है कि जिसका विभाजन नहीं हो सके, ऐसा ५. प्रकाश-अंधकार तथा छाया ये पुद्गल की ही पृथक्-पृथक् भौतिक तत्त्व परमाणु है। इस प्रकार आज हम देखते हैं कि विज्ञान का पर्याय हैं। यंत्र ग्राह्य हैं। इनके स्वरूप की सिद्धि आधुनिक सिनेमा, तथाकथित परमाणु खण्डित हो चुका है, जबकि जैन दर्शन का परमाणु फोटोग्राफी, केमरा, आदि द्वारा हो चुकी है। अभी वैज्ञानिकों की पकड़ में आ ही नहीं पाया है। वस्तुत: जैन दर्शन में ६. आतप एवं उद्योत भी परमाणु एवं स्कंधों की ही पर्याय जिसे परमाणु कहा जाता है, उसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने क्वार्क नाम हैं, संग्रहणीय हैं। दिया है और वे आज भी उसकी खोज में लगे हुए हैं। समकालीन ७. जीव तथा पुद्गल के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक आने जाने भौतिकीविदों की क्वार्क की परिभाषा यह है कि जो विश्व का सरलतम में सहकारी अचेतन अमूर्तिक धर्म नामक द्रव्य है, जो सर्व जगत् में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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