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________________ ععععععععرمع مدقر عاطفه animalAAN عة عمر ما را برهم مرة مزمع عملهه عععععععععععععععععععم आचार्यप्रवभिआचार्यप्रवर आभार श्रीआनन्द अन्यश्रीआनन्दगान्थ wwimmind २४ आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व . इस संस्था की सफलता का श्रेय भी श्रद्धेय आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज को है, जिनके नागपुर चातुर्मास के अवसर पर दिये गए प्रभावशाली प्रवचनों के द्वारा संस्था का निर्माण हुआ और अब तक भी वह सफलतापूर्वक अपना कार्य कर रही है। (३) श्री तिलोक जैन विद्यालय, पाथर्डी-यह विद्यालय यद्यपि कविकुल-भूषण पूज्यपाद श्री तिलोकऋषि जी महाराज की पुण्यस्मृति में पंडितरत्न श्री रत्नऋषि जी महाराज की प्रेरणा से चालू किया गया था किन्तु उनके दिवंगत हो जाने के पश्चात् भी आजतक हमारे चरितनायक आचार्य श्री जी के निरीक्षण एवं पूर्ण सहयोग से कार्य कर रहा है। __जैसा कि इसका उद्देश्य रहा है, इस विद्यालय ने अब तक महाराष्ट्र प्रान्त के हजारों निर्धन, नाथ एवं असमर्थ विद्यार्थियों को हाईस्कूल की शिक्षा तथा साथ ही धार्मिक एवं व्यावहारिक शिक्षण भी दिया है । इसमें रहे हुए अनेकों छात्र आज सफल डॉक्टर तथा वकील आदि बनकर उच्च संस्कारित जीवन-यापन कर रहे हैं। (४) अमोल जैन सिद्धान्तशाला, पाथर्डी-जिस समय वि० सं. १९६३ में धुलिया में शास्त्रोद्धारक एवं शास्त्रविशारद पूज्य श्री अमोलकऋषि जी महाराज का देहावसान हुआ, उसके बाद ही भुसावल में ऋषिसम्प्रदाय को पुनः संगठित करने के लिये तपस्वी महामुनि श्रद्धेय श्री देवजीऋषि जी महाराज को ऋषिसम्प्रदाय के आचार्यपद पर तथा विद्वद्वर्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज को युवाचार्य के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। उसी पुनीत अवसर पर पूज्य श्री अमोलकऋषि जी महाराज के स्मरणार्थ 'श्री अमोल जैन सिद्धान्तशाला' की स्थापना की गई। परमपूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज ने प्रारम्भ से ही अपनी सम्पूर्ण शक्ति इस शाला क . उन्नति और विकास में लगाई। उसी के फलस्वरूप अनेकानेक साधू-साध्त्री एवं श्रावक-श्राविकाओं ने इसके माध्यम से ज्ञानार्जन किया है। साधूवर्ग के सैद्धान्तिक शिक्षण की ओर आचार्य श्री जी का प्रारम्भ से ही ध्यान था और इस विचार को आपने इस महान शाला के द्वारा क्रियान्वित किया ।। (५) श्री तिलोक रत्न स्था० जैन धामिक परीक्षा बोर्ड, पाथों-यह महान संस्था कविकुलभूषण श्री तिलोक ऋषि जी महाराज एवं पंडित मुनि श्री रत्नऋषि जी महाराज इन दोनों ही महान आत्माओं की पावन स्मृति में हमारे चरितनायक की सद्प्रेरणा से उदित हुई थी। इस संस्था ने समाज की अविस्मरणीय सेवा की है तथा वर्तमान में भी करती चली जा रही है। इसके महान् उद्देश्यों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है (क) प्रकाशन--इसके अन्तर्गत भगवान महावीर के सिद्धान्तों का प्रचार एवं प्रसार करना तथा विभिन्न धार्मिक संस्थाओं में एकरूपता लाने के लिए एक ही पाठ्यक्रम निश्चित करके परीक्षाओं के लिये उपयोगी साहित्य का प्रकाशन करना आता है। इस बोर्ड से अब तक प्रवेशिका, प्रथमा, विशारद और प्रभाकर परीक्षाओं के लिये अनेकों पुस्तकें कई संस्करणों में प्रकाशित हो चुकी हैं। जो हिन्दी तथा गुजराती दोनों ही भाषाओं में हैं। (ख) सम्पादन-बोर्ड के द्वारा सम्यक दर्शन, ज्ञान एवं चरित्र की उपासना के लिये 'सूधर्मा' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी होता है। पत्रिका में प्रत्येक धर्मावलम्बी विद्वान की रचनाओं को स्थान दिया जाता है तथा धार्मिक परीक्षाओं की गतिविधियों का उल्लेख भी होता है। (ग) परीक्षा-बोर्ड का परीक्षा कार्य इस संस्था की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति साबित हुई है। इसे सम्पन्न करने के लिये एक विशाल फंड स्थापित किया गया है, जिसकी आय से परीक्षा सम्बन्धी समस्त व्यय किया जाता है। संतों एवं महासतियों की परीक्षाएँ तो पूर्णतया निःशुल्क ली ही जाती हैं, गृहस्थ परीक्षार्थियों से भी केवल इतना ही शुल्क लिया जाता है जो उन्हीं के लिये पोस्टेज एवं रजिस्ट्री में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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