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________________ आचार्य प्रव Mo 卐 आयायप्रवर अभिन्दन ग्रन्थ ३२ १६६ इतिहास और संस्कृति ई० में उनको बंगाल प्रान्त में एक विशिष्ट पद पर नियुक्त किया । सात वर्षों तक उन्होंने बिहार, शाहाबाद, भागलपुर, गौरखपुर, दिनाजपुर, पुरनिया, रङ्गापुर, और आसाम में काम किया । यद्यपि उनको प्राचीन स्थानों आदि की शोध-खोज का कार्य नहीं सौंपा गया था फिर भी उन्होंने इतिहास और पुरातत्त्व की खूब गवेषणा की। उनकी इस गवेषणा से बहुत लाभ हुआ । अनेक ऐतिहासिक विषयों की जानकारी प्राप्त हुई । पूर्वीय भारत की प्राचीन वस्तुओं की शोध-खोज सर्वप्रथम इन्होंने की थी । पश्चिम भारत की प्रसिद्ध केनेरी ( कनाड़ी) गुफाओं का वर्णन सबसे पहले साल्ट साहब ने और हाथी गुफाओं का वर्णन रस्किन साहब ने लिखा । ये दोनों बॉम्बे ट्रांजेक्शन नामक पुस्तक के पहले भाग में प्रकाशित हुए । इसी पुस्तक के तीसरे भाग में साइकस साहब ने बीजापुर (दक्षिण) का वर्णन लोगों के सामने रखा । अन्त में, डेनिअल साहब ने दक्षिण हिन्दुस्तान का हाल मालूम करना आरम्भ किया । उन्हीं दिनों कर्नल मैकेञ्जी ने भी दक्षिण में पुरातत्त्व विद्या का अभ्यास शुरू किया। वे सर्वे विभाग में नौकर थे । उन्होंने अनेक प्राचीन ग्रन्थों और शिलालेखों का संग्रह किया था। वे केवल संग्रहकर्त्ता ही थे, उन ग्रन्थों और लेखों को पढ़ नहीं सकते थे परन्तु उनके बाद वाले शोधकों ने इस संग्रह से बहुत लाभ उठाया । दक्षिण के कितने ही लेखों का भाषान्तर डॉ० मिले ने किया था। इसी प्रकार राजपूताना और मध्यभारत के अधिकांश भागों का ज्ञान कर्नल टॉड ने प्राप्त किया और इन प्रदेशों की बहुत सी जूनी- पुरानी वस्तुओं की शोध-खोज उन्होंने की । इस प्रकार विभिन्न विद्वानों द्वारा भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्तों विषयक ज्ञान प्राप्त हुआ और बहुत सी वस्तुएँ जानकारी में आई, परन्तु प्राचीन लिपियों का स्पष्ट ज्ञान अभी तक नहीं हो पाया था अतः भारत के प्राचीन ऐतिहासिक ज्ञान पर अभी भी अन्धकार का आवरण ज्यों का त्यों पड़ा हुआ था । बहुत से विद्वानों ने अनेक पुरातन सिक्कों और शिलालेखों का संग्रह तो प्राचीन लिपि - ज्ञान के अभाव में वे उस समय तक उसका कोई उपयोग न कर सके थे । अवश्य कर लिया था परन्तु भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास के प्रथम अध्याय का वास्तविक रूप में आरम्भ १८३७ ई० में होता है । इस वर्ष में एक नवीन नक्षत्र का उदय हुआ जिससे भारतीय पुरातत्त्व विद्या पर पड़ा हुआ पर्दा दूर हुआ । एशियाटिक सोसाइटी के स्थापना के दिन से १८३४ ई० तक पुरातत्त्व सम्बन्धी वास्तविक काम बहुत थोड़ा हो पाया था, उस समय तक केवल कुछ प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद ही होता रहा था। भारतीय इतिहास के एकमात्र सच्चे साधन रूप शिलालेखों सम्बन्धी कार्य तो उस समय तक नहीं के बराबर ही हुआ था । इसका कारण यह था कि प्राचीन लिपि का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त होना अभी बाकी था । ऊपर बतलाया जा चुका है कि संस्कृत भाषा सीखने वाला पहला अंग्रेज चार्ल्स विल्किन्स् था और सबसे पहले शिलालेख की ओर ध्यान देने वाला भी वही था। उसी ने १७८५ ई० में दीनाजपुर जिले में बदाल नामक स्थान के पास प्राप्त होने वाले स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख को पढ़ा था । यह लेख बंगाल के राजा नारायणपाल के समय में लिखा गया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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