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________________ IRAL श्री बदरीनारायण शुक्ल, न्यायतीर्थ (प्राकृत भाषा प्रचार समिति एवं धार्मिक परीक्षा बोर्ड पाथर्डी के कार्यवाहक) n प्राकृत भाषा के प्रचार-प्रसार में आचार्य श्री का योगदान तेजस्वी ऋषिरत्न गुरुवर्य श्री रत्नऋषिजी म. से किशोरावस्था में ही चारित्ररत को स्वीकार कर रत्नचर्या की समाराधना में सम-समान उपलब्धियाँ प्राप्तकर आचार्य श्री आनन्दऋषि जी म० श्रमण संध के चमकते सितारे हैं । इनका शिक्षण भारत के सुप्रसिद्ध विद्यापीठों के माने हए विद्वानों द्वारा भारत की आर्य प्राचीन भाषाओं-प्राकृत और संस्कृत का उच्च श्रेणी का सम्पन्न हुआ। नैसर्गिक प्रतिभा के कारण प्रान्तीय भाषाओं का सहज अभ्यास होता गया। जिससे भाषाओं के मर्म को भलीभांति समझने लगे । आप श्री का ध्यान इस विषमता की ओर आकृष्ट हुआ कि देश की दो प्रधान संस्कृतियों-श्रमण और बाह्मण-का सुविशाल साहित्य विद्यमान होते हुए भी आज संस्कृत भाषा का इतना प्रचार और समादर किन्तु प्राकृत की इतनी उपेक्षा क्यों ? श्रमण भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध जैसी भारतीय विरलतम विभूतियों ने जनकल्याण के सर्वागीण विकास के लिए उस काल की लोकभाषाओं-अर्द्धमागधी और पाली प्राकृत में जो उपदेश दिये, उनको जन-जन तक पहुँचाने की दृष्टि से उन भाषाओं का अध्ययन-अध्यापन अत्यंत आवश्यक था । विशेषत: इस भौतिक और हिंसाप्रधान युग में आर्ष (ऋषिप्रणीत) आध्यात्मिक ज्ञान का दर्शन कराना जन-कल्याण का साधन हो सकता है । आचार्य श्री ने शिक्षा शास्त्रियों से परामर्श कर एक परीक्षा बोर्ड के स्थापन की आवश्यकता का अनुभव किया, क्यों कि बोर्ड के पाठ्यक्रम को माध्यम बनाकर अनेक अप्रकाशित प्राक्तन ग्रन्थों तथा नवनिर्मित पुस्तकों का प्रकाशन और पूर्व प्रकाशित ग्रन्थों का प्रचार कार्य अच्छी तरह किया जा स इस कल्पना ने ईस्वी सन् १९३६ में विद्यारसिक समाज-हितैषियों के सहयोग से मूर्त रूप धारण कर लिया और 'श्री तिलोक रत्न स्थानकवासी जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड' नाम से संस्था की स्थापना की गई। इस परीक्षा-बोर्ड के पाठ्यक्रम में प्राकृत भाषा के व्याकरण, काव्य, निबन्ध, प्रबन्ध और आगम के अनेक ग्रन्थ निर्धारित किये गये। लगभग ३० वर्ष में पाठ्यक्रमों के परिवर्तन-परिवर्द्धन में प्राकृत ग्रन्थों का कुछ SANELD marwAdvIMAMANAKARMAdanindraKAIRAAMANAMAAJAJARAddrAALAMIDUABADASANAus animaduaa TION आगारप्रवर अभिनापार्यप्रवर आभनय श्रीआनन्दकन्थश्राआनन्दग्रन्थ WAVVNIM mananewmaramanandwa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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