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________________ अपभ्रंश में वाक्य-संरचना के माँचे ८३ । चिया On-P-G Ins-G-N-p v O S इसी प्रकार का अन्य प्रयोग है दुटु कलत्तु व भुत्तु अणेयहिं --(१६) - - - - - इस वाक्य के पूर्व कर्म आ चुका है, यहाँ कर्ता का स्थानी 'दुटु कलत्तु' है अतः क्रिया 'भत्तु' भी 'दृट्ठ कलत्तु' की अनुवतिनी है । इस वाक्य की संरचना है vOn-P- G K Ins-G-N-P भरहु चवन्तु णिवारिउ राए --(१७) --0- -V.-- -Sवाक्य में भी यही संरचना है । o von-p- G s Ins G-NP कर्मवाच्य संरचना में 0. S. V साँचा भी हो सकता है, जैसे निम्नलिखित वाक्य में सायरबुद्धि विहीसणेण परिपुच्छिउ । ---(१८) -0- - - - - - कर्मवाच्य संरचनाओं में S. O. और v के क्रम की यह स्वतन्त्रता योगात्मक भाषाओं में ही सम्भव है। गंगाणइ दिट्ठी जंतएण --[मुनि कनकामर] (१९) -0- - - -S0. V. S पुणेण होइ विहओ --[मुनि रामसिंह] (२०) V. 0. इस प्रकार देखा जा सकता है कि कर्मवाच्य की वाक्य संरचना के तीन प्रमुख अवयव हैं-5.0. और V। संयोगात्मक भाषाओं में इनके निम्नलिखित क्रम सम्भव हैं 1. v. o. s. 2. o. V. S. 3. o. s. v. 4. - v. ०. भाववाच्य में क्रिया सदैव एक व. पुल्लिग में रहती है । रज्जे गम्मई णिच्च णिगोयहों --(२१, -V -- -AT- -ALInst BA M arwwwAAJANKAJAWAHARAJagaswwwesearcacadsAWABGADHAawwwiaNAMAJAILAAJAPain MAMANAWAL आपा प्रवास आभाचार्यप्रवर अभिल श्रीआनन्द श्रीआनन्दा अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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