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________________ veduarter-umarARMERAiruva n ana m paaninindenar.naria . .'-.. PADM . ..... यार्स 15Nआचार्य IYAR - - - OTO. SHRA Namoumar Mw.mmmonwermireonivernmwwwanmomvine -NNNN ० प्रा० एस० एस०, फिसके एम० ए० (अर्धमागधी), एम० ए० (हिन्दी) (प्रा० छत्रपति शिवाजी कालेज, सतारा, महाराष्ट्र) नय प्राकृत तथा अर्धमागधी में अंतर और ऐक्य प्राकृत भारत देश की पुरातन भाषा है। हर एक भाषा का अपना-अपना अलग-अलग स्थान व स्वरूप होता है। 'भाषा' शब्द की व्याख्या विविध प्रकार से की गई है-“मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतों के व्यवहार को भाषा कहते हैं।" "विचार और आत्माभिव्यक्ति का साधन भाषा है"। भाषा-उत्पत्ति के प्रत्यक्ष और परोक्ष मार्ग होते हैं जैसे अनुकरणमूलकता, विकास, असभ्य जातियों की भाषा आदि। डा० ग्रियर्सन ने भाषा का विभाजन ऐतिहासिक और व्यावहारिक रूप में किया है। ऐतिहासिक भाषा वह है, जिसका छोटा भाग शब्द, उसकी व्युत्पत्ति हमें चेष्टा करने से प्राप्त हो सकती है। व्यावहारिक भाषा का रूप ऐतिहासिक भाषा से अलग है । विरुद्ध स्वरूप है। प्राकृत ऐतिहासिक भाषा है। ऐतिहासिक भाषा इण्डो-जर्मन, इण्डो-आर्यन नाम से भी ज्ञात है। ग्रियर्सन का विचार है कि भारत में प्रथम दो टोलियाँ आई थीं। पहली टोली पंजाब के पास रहने लगी। भौगोलिक परिस्थितियों से भाषा में परिवर्तन होने लगा। दूसरी टोली पंजाब के पास ही वास्तव्य के लिए आ गई। उसने अपनी भाषा समद्ध बनायी, उस भाषा में साहित्य लिखा है। वही भाषा वैदिक भाषा के नाम से प्रसिद्ध हो गई। वैदिक भाषा के समय जो बोली भाषा थी उसे ही प्राकृत कहते हैं। पाणिनी ने वैदिक भाषा का व्याकरण बनाया और उसका संस्कृत नामाभिधान किया । वैदिक और प्राकृत भाषा समकालीन हैं। प्राकृत भाषा की तीन विकासावस्थाएँ हैं । पहली अवस्था प्रथम टोली की बोली भाषा, दूसरी अवस्था साहित्यिक भाषा, तीसरी अवस्था अपभ्रंश तथा प्रादेशिक भाषा है। प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के बारे में दो प्रवाह प्रचलित हैं। प्राकृत भाषा का व्याकरण संस्कृताचार्यों ने लिखा। संस्कृत साहित्यिक भाषा होने के कारण तथा ऊँचे लोगों को प्राकृत भाषा का रूप-ज्ञान होने के उद्देश्य से संस्कृत भाषा में व्याकरण लिखा। उनके मतानुसार संस्कृत भाषा से प्राकृत भाषा निर्मित हो गई। साहित्यिक भाषा से बोली भाषा का निर्माण भाषा-विज्ञान के अनुसार सिद्ध नहीं हो सकता । प्राकृत प्रेमी आचार्यों ने प्राकृत से संस्कृत भाषा के निर्माण होने का मत प्रकट किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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