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________________ उम्मिल्लइ लायण्णं पयय-च्छायाएं सक्कयवयाणं । सक्कय-सक्काक्करिसणेण पययस्स वि पहावो ॥ णवमत्यदंसण-संनिवेससिसिराओ बंधरिद्धीओ । भुवबंध मह पययस्मि ॥ अविरलमिणमो अन्भुअ- भावभंगिमं वजमाणाणि पेच्छणिज्जाणि काणि चि पाइय-पज्जाणिअज्जं गओ त्ति अज्जं गओ त्ति अज्जं गओ त्ति गणिरीए । पढमे व्विअ दिअहद्धे कुड्डो रेहाहि चित्तलिओ ॥ उल्लावो मा दिज्जउ लोअ - विरुद्ध 'त्ति णाम काऊण । समुहापडिए को उण वेसे वि दिट्ठ ण पाडेइ ॥ पिबन्तु सुभासियामयं पाइअ - कव्वाणं वायगचणा एवं विसिसुभास १. अवनतमुख: २. सशूको Jain Education International पाइअ-भासा For Private & Personal Use Only ३६ ( गउडवहो ६५ ) ( गउडवो ७२ ) ( गाथासप्तशती ३-८ ) ( गाथासप्तशती ६-१२) ( गाथासप्तशती ६-६७ ) ( गाथासप्तशती ६ - ६८ ) संतमसंतं दुक्खं सुहं च जाओ घरस्स जाणंति । ता पुत्तअ ! महिलाओ सेसाओ जरा मणुस्साणं ॥ पंकमइलेण छीरेक्कपाइणा दिणाणुवडणे | आनंदिज्जइ हलिओ पुत्तेण व सालिखेत्तेण ॥ कह मे परिणइआले खलसंगो होहिs त्ति चिंतंतो 'ओणअमुहो ससूओ' रुवइ व साली तुसारेण ॥। जंतिअ ! गुलं विमग्गसि ण य मे इच्छाइ वाहसे जंतं । अणरसिअ ! कि ण याणसि ण रसेण विणा गुलो होइ ॥ हसि अदिट्ठदंतं भविअमणिक्कंत देहलीदेसं । मक्खित्तमहं एसो मग्गो कुलबहूणं || जेण विणा ण जिविज्ज्इ अणुणिज्जइ सो कथावराहो वि । पत्त वि णयर दाहे भण कस्स ण वल्लहो अग्गी ॥ ( गाथासप्तशती २-६३ ) अद्दंसणेण पेम्मं अवेइ अइदंसणेण वि अवेइ । ( गाथासप्तशती ६-५४) ( गाथासप्तशती ६ - २५ ) वि अवेइ || ( गाथासप्तशती १-८१) णीअस्स । खलस्स || ( गाथासप्तशती १-८२ ) पिसुण- जणजम्पिएण वि अवेइ एमेव अद्दंसणेण महिला अणस्स अइदंसणेण मुक्खस्स पिसुणजणजम्विएण एमेव वि अणथोवं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च । ण हु थोवं मंतव्वं थोवं पि बहुर होइ ॥ भंडाआरं पाइय-मासा भासाविष्णाणाणुसंधाणे | (आवश्यक नियुक्ति) ( गाथासप्तशती ६-१४) आपाय प्रवद अभिनंदन आआनंद प्रव श्री ॐ० TAPEES 五 SUAJAJAJAM अभिनंद ग्रन्थ vas www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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