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________________ पंचास्तिकाय में पुद्गल 'पुद्गल' शब्द 'पुद् और गल' पद से बना है । 'पुद्' का अर्थ है 'पूरण', 'गल' का अर्थ है गलन - इस प्रकार जिसमें पूरण और गलन होता हो वही 'पुद्गल' २२ है । जैनदर्शन में प्रतिपादित षड् द्रव्यों से पुद्गल द्रव्य की अपनी विशेषता है। पुद्गल द्रव्य के बिना अन्य द्रव्यों में पूरण गलन द्वारा सतत परिवर्तन नहीं होता । अन्य द्रव्य में परिवर्तन सतत होता है । परन्तु वह परिवर्तन पूरण- गलनात्मक नहीं होता । पुद्गल के सूक्ष्म सें सूक्ष्म परमाणु से लेकर बड़े से बड़े पृथ्वी स्कन्ध तक में सतत पूरण-गलनात्मक परिवर्तन होता रहता है और उसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण ये चार गुण पाये जाते हैं । यह हम पहले कह आये हैं । पुद्गल उसे कहते हैं, जो रूपी हो और जिसमें ऊपर निर्दिष्ट चार गुण पाये जाते हों । पुद्गल में पूरण- गलन (Combination & disintegration phenomena) होते समय इन चार गुणों का कभी भी नाश नहीं होता । इन चारों गुणों में से किसी में एक और किसी में दो और किसी में तीन गुण हों ऐसा नहीं । चारों गुण पुद्गल में एक साथ रहते हैं । अब प्रश्न यह कि ये चार गुण विद्यमान रहते हुए भी उनका प्रतिभास क्यों नहीं होता । विज्ञान के अनुसार हाइड्रोजन और नाइट्रोजन वर्ण, गंध एवं रस हीन हैं। इस संदर्भ में इसके दो प्रकार के कारण हो सकते हैं - ( १ ) आन्तरिक तथा ( २ ) बाह्य । इन्हीं दो कारणों से इन्द्रिय मन में विकल्पावस्था आ सकती है। समझ में भी वृद्धि, हानि तथा अन्य दोष की भी संभावना है । मनुष्य इन्द्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है । इन्द्रियातीत को जानने के लिए आत्मज्ञान की आवश्यकता चाहिए। कर्मबद्ध परतंत्र अवस्था में अनुमानादि प्रमाणों का सहारा लेना पड़ता है । प्रयोगशाला में द्रव्यों के विघटन की प्रक्रिया भी की जाती है । वह भी इन्द्रिय शक्ति के अनुरूप ही होती है । इन्द्रियातीत ज्ञान ही यथार्थ और प्रत्यक्ष ज्ञान है । कर्म से ऊपर उठे हुए स्वतंत्र आत्मा में वह ज्ञान सम्भव होता है । वस्तु का ज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की सीमाओं से आबद्ध होता है । परन्तु इससे वस्तु का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता, नहीं ऐसा नहीं । सीमाओं में रहकर वस्तु के वास्तविक ज्ञान की अनेकान्त, नय, प्रमाण के आधार पर यथार्थ विचाराभिव्यक्ति की प्रगाढ़ संभावना हो सकती है । ३६१ किसी भी वस्तु का कथन मुख्य और गौण को लेकर होता है । हाइड्रोजन में विज्ञान ने तीन गुणों का अभाव बताया है। अतः उनका यह कथन गौण दृष्टिकोण से हुआ है । जगत् उत्पत्ति से लेकर आज तक की विद्यमान परिस्थिति में 'वर्ण' हीन पदार्थ देखने में नहीं आता । सप्त वर्ण में वर्णों का कथन सीमित नहीं अपितु उनसे परे भी और वर्णभेद की विद्यमानता रहती है । फिर भी अपनी अपूर्ण भाषा - रचना द्वारा प्रकट करने में असमर्थ है। पुद्गल जड़ है फिर भी वह वर्ण रहित है, ऐसा नहीं कह सकते । हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन में स्पर्श गुण होता है । चूंकि जहाँ स्पर्श गुण रहता है वहाँ अन्य गुण भी रहते हैं, जैसे आम । अतः प्रयोगशाला में पदार्थों के गुणों की इस दृष्टिकोण से परीक्षा करने की अपेक्षा है । एकांश हाइड्रोजन और तीन अंश नाइट्रोजन से अमोनिया पदार्थ की उत्पत्ति होती है । अमोनिया रस और गंध सहित है लेकिन जिनसे यह बना है उनमें रस और गंध नहीं है। प्रश्न उठता है कि गंध रहित तत्त्व हाइड्रोजन और नाइट्रोजन से बना अमोनिया में वह गुण कैसे पाया जाता है ? ऐसा है तो बालू के समूह से भी तेल की प्राप्ति होनी चाहिए। जो है और जिसमें उत्पादन २२ सर्वार्थसिद्धि अ० ५।१-२४; राजवार्तिक ५।१ २४ और धवला में देखिये २३ प्रवचनसार २४० Jain Education International CAPRINES Sto 乖 CONNE आचार्य आगत वर्ष अभिन्दन ग्रामानन्द आश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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