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________________ ज्ञानवाद : एक परिशीलन २८५ 2 प्रत्येक इंद्रिय द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय रूप दो प्रकार की है।१६ पुद्गल की आकृति-विशेष द्रव्येन्द्रिय है और आत्मा का परिणाम भावेन्द्रिय है। द्रव्येन्द्रिय के भी निर्वृत्ति और उपकरण ये दो भेद हैं।१७ इंद्रियों की विशेष आकृतियाँ निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय हैं । निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय की बाह्य और आभ्यन्तरिक पौदगलिक शक्ति जिसके होने पर भी ज्ञान होना सम्भव नहीं है, उपकरण द्रव्येन्द्रिय है। भावेन्द्रिय भी लब्धि और उपयोग रूप से दो प्रकार की है।१८ ज्ञानावरणकर्म आदि के क्षयोपशम से प्राप्त होने वाली जो आत्मिक शक्तिविशेष है वह लब्धि है। लब्धि प्राप्त होने पर आत्मा एक विशेष प्रकार का व्यापार करती है। वह व्यापार उपयोग है। इन्द्रियप्राप्ति का क्रम सभी प्राणियों में इन्द्रिय-विकास समान नहीं होता है। पांच इन्द्रियों के पांच विकल्प हैं १. एकेन्द्रिय प्राणी। २. द्वीद्रिय प्राणी। ३. त्रीद्रिय प्राणी। ४. चतुरिद्रिय प्राणी। ५. पंचेद्रिय प्राणी। जिस प्राणी में जितनी इन्द्रियों की आकार-रचना होती है, वह प्राणी उतनी इन्द्रियवाला कहलाता है। प्रश्न है कि प्राणियों में यह आकार-रचना का वैषम्य क्यों ? उत्तर है कि जिस प्राणी के जितनी ज्ञानशक्तियां-लब्धि-इंद्रियां निरावरण-विकसित होती हैं, उस प्राणी के शरीर में उतनी ही इंद्रियों की आकृतियाँ बनती हैं। इससे स्पष्ट है कि इंद्रिय के अधिष्ठान, शक्ति तथा व्यापार का मुल लब्धि इंद्रिय है। उसके अभाव में निर्वृत्ति, उपकरण और उपयोग नहीं होता । लब्धि के पश्चात् द्वितीय स्थान निवृत्ति का है। उसके होने पर उपकरण और उपकरण के होने पर उपयोग होता है। उपयोग के बिना उपकरण, उपकरण के बिना निर्वृत्ति, निर्वृत्ति के बिना लब्धि हो सकती है परन्तु लब्धि के बिना निर्वृत्ति और निर्वृत्ति के बिना उपकरण तथा उपकरण के बिना उपयोग नहीं हो सकता। इन्द्रिय पौद्गलिक (द्रव्येन्द्रिय) आत्मिक (भावेन्द्रिय) निवृत्ति उपकरण लब्धि उपयोग मन हरएक इंद्रिय का विषय अलग-अलग है । एक इंद्रिय दूसरी इंद्रिय के विषय को ग्रहण नहीं कर सकती। मन एक ऐसी सूक्ष्म इंद्रिय है जो सभी इंद्रियों के विषयों को ग्रहण कर सकता है। एतदर्थ ही इसे सर्वार्थग्राही इंद्रिय कहा है ।१६ मन को अनिन्द्रिय इसीलिए कहा जाता है कि वह अत्यधिक सूक्ष्म है। अनिन्द्रिय का अर्थ इंद्रिय का अभाव नहीं किंतु ईषत् इंद्रिय है, जिस प्रकार किसी लड़की को अनुदरा कहा जाता है, इसका अर्थ बिना उदर वाली लड़की नहीं किंतु वह लड़की जो १६ सर्वार्थसिद्धि १७ निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियं । १८ लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् । १६ सर्वार्थग्रहणं मनः । -तत्वार्थसूत्र २०१७ -तत्त्वार्थसूत्र २०१८ -प्रमाणमीमांसा श२।२४ SAMANASALAJAAAAAJNATJABAJABADAURADABANARWAwedamaadMAMMARCJIJABARJAADARASASARAMADARASAIRAAZAARADASALAAAAAoN सापावर भिरापार्यप्रवर अभि श्राआनन्दग्रन्थश्राआनन्दा अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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