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________________ आचार्य प्रव श्री आनन्दक ग्रन्थ ST. 車 噩 आचार्य प्रव श्री आनन्द आनन्द के चरणों में अभिनंदन अन्थ वैद्य अमरचन्द जैन, बरनाला [[[मन्त्रीज्य जीवनराम जैन पुस्तक प्रकाशन समिति तथा समाज सुधारक ] श्रमण संस्कृति त्याग प्रधान है। यह भोग से योग की ओर चलने का आदेश, संदेश, उपदेश देती है । समय-समय पर इस महान् दिव्य संस्कृति ने भारतवर्ष को ही नहीं, अपितु विश्व को ऐसे नररत्न दिये, जिन्होंने स्व-पर का कल्याण करते हुए विश्व के समक्ष सूर्य प्रकाश सम त्याग मार्ग का आदर्श रखा । जन-जन को "सम्यग्ज्ञान-दर्शन, चारित्राणि मोक्षमार्ग" का दिव्य पथ प्रदान कर उसका पचिक बनाया । अहिंसा, संयम और तप रूपी मंगलमयी धर्म की उत्कृष्ट त्रिवेणी बहाकर जन-मानस का जीवन उत्थान कर, उनको नव धर्म की ज्योति प्रदान की । दानव से मानव बनाया । आज भी एक महान् सूर्य सम प्रखर तेज-पुंज दिव्य आत्मा मानव को मानवता का पाठ पढ़ाता हुआ अहिंसा, संयम, तप का प्रकाश प्रदान कर रहा है। जन-जन का पथ प्रदर्शन कर रहा है। वह हैं पंच परमेष्ठी के तृतीय पदालंकृत सूर्य सम चमकते चन्द्रसम शीतल, आध्यात्मिक आनंद के निधि, जैनागमरत्नाकर, जैनधर्म दिवाकर आचार्य "श्री आनन्द ऋषि जी महाराज । " , Jain Education International आपने छोटी-सी अवस्था में ही इस असार संसार के वैभव को स्थानकर उस उच्च कोटि की साधना में कदम रखा जो श्रमण संस्कृति के त्याग की भूमिका है । आपके जीवन में सौम्यता, क्षमा, धीरता, गम्भीरता, अथाह ज्ञान की गरिमा हिलोर मार रही है। आज ७५ वर्ष के होते हुए भी यत्र-तत्र सर्वत्र विहार कर जन-जन का पथ प्रदर्शन कर रहे हैं। भूले भटके अज्ञानान्धकार के घेरे में घिरे, धर्मविमुख, भौतिकवाद के झूठे चमत्कार में फंसे जन-मानस को भगवान् महावीर की अमर देन सत्य, अहिंसा, अनेकान्त अपरिग्रह का दिव्य आलोक दे रहे हैं। पिछले वर्षो आपने पंजाब की धरती को अपने पवित्रपद रजकणों से पवित्र किया। आपने पंजाब के गांव-गांव नगर-नगर, पर-घर में भगवान् महावीर की दिव्य वाणी का प्रकाश दिया। उनकी सुपुप्त आत्मा में सत्य-अहिंसा-संयम की त्रिवेणी बहाकर जागृति दी । जीवन उत्थान का अध्यात्मिक मार्ग प्रदान किया । अधिक क्या ? आपके गुणों का वर्णन यह लेखनी करने में असमर्थ ही है । आपके दिव्य ज्ञान की ज्योति जन-जन को मिलती रहे और समाज- राष्ट्र पर आपकी दिव्य छत्रछाया बनी रहे इन्हीं शब्दों के साथ...! For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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