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________________ श्री आनन्द आम अन्य आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ६० . वीर का शासन निरन्तर विकासशील रहे, इसके लिये भी निरन्तर कर्मयोगी की भांति प्रयत्नशील हैं। यही कारण है कि संघ ने आपभी को अपना संरक्षक मानकर विभिन्न उपाधियों से अलंकृत किया यानी आप प्रधानमन्त्री बनाए गए शास्त्रों में निष्णात थे। सन्तों को पढ़ाना, शंकाओं का समाधान करना जैसे कार्य में निष्णात होने से आपको उपाध्याय पद से संघ ने विभूषित किया था। आपने पदों को नहीं, कार्य को महत्त्व दिया जिसके परिणामस्वरूप आप आगे से आगे बढ़ते गये । आचार्य पद 九 आनन्द आआनन्द आमदन 圖 किसी संस्कृत के विद्वान ने कहा है कि आचार्य कौन हो सकता है आचिनोति शास्त्रार्थानामाचारे स्थापयत्यपि । स्वयमाचरते यस्मादाचार्यस्तेन कथ्यते ॥ उपरोक्त श्लोक के कथनानुसार जब आपभी में गुण पाये जाने लगे, जैनशास्त्रानुसार जो आचार्य के ३६ गुण पाये जाते हैं, उनमें भी आपका पूर्ण प्रवेश हो गया और इधर पंजाब में विराजमान पूज्यपाद महामहिम आचार्यसम्राट श्री आत्माराम जी महाराज का देहावसान हो गया तो इस अभाव की पूर्ति के लिए नए आचार्य स्थापन की खोज होने लगी। आपभी पर सबकी नजर पड़ी जो गुण आचार्य में पाये जाने चाहिए वे सभी आप में विद्यमान थे, बस फिर क्या था आपश्री को आचार्य पद पर सुशोभित कर दिया गया। इस प्रकार से पूर्ण उत्तरदायित्व भगवान महावीर के पाट का लेकर अपने कार्य में निरन्तर प्रगतिशील हैं। आप जहाँ व्याख्यान द्वारा प्रभु का सन्देश घर पर पहुंचाते हैं वहाँ अनेकों ग्रन्थों के सिद्धहस्त लेखक बनकर प्रभु-सन्देश दे रहे हैं । बिहारक्षेत्र आपने दक्षिण भारत की पदयात्रा करते हुए जहाँ ( अहमदनगर में ) पाथर्डी बोर्ड की स्थापना की वहाँ आपने भारत के बड़े-बड़े नगरों, जनपदों, ग्रामों एवं अन्य स्थानों का भले ही वह पूर्वी भारत रहा हो या उत्तरी भारत, सर्वत्र पदविहार से हजारों मीलों की यात्रा की। आप जब उत्तर भारत की यात्रा करते हुए. पंजाब में पधारे तो उस यात्रा में पंजाब के अन्तर्गत जालंधर छावनी भी पधारे थे । जालंधर पंजाब का एक बहुत बड़ा नगर है । इस जालन्धर छावनी में हम ठहरे हुए थे, हमारे सन्त का आप्रेशन हुआ था । इस कारण हम उपाश्रय में न ठहरकर एक कोठी में ठहरे थे जो नगर के थोड़ी दूर पर थी, तो आपश्री (UTTA ने अपनी मंडली के साथ अपनी उदारता प्रदर्शित करते हुए हमारे पास ही ठहरने की कृपा की थी। आचार्यपद प्रतिष्ठित होते हुए आप मान से बिलकुल दूर हैं। भला सूर्य के निकट अन्धकार कहाँ रह सकता है। आपभी ने जब कभी हमें सम्बोधित किया तो नाम से नहीं अपितु स्वामी जी के नाम से व्यक्ति अनायास ही सिचा चला आता सम्बोधित करते । आपकी वाणी में इतनी सरसता है कि कोई भी है । आपश्री ने दो चातुर्मास पंजाब में और एक जम्मू में किया । हुआ कपूरथला नगर में। आपके मन में सदा समाज के हो या उत्तरप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र सभी प्रान्तों पुनः दोबारा दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त प्रति समभाव रहा करता है । भले ही वह पंजाब प्रदेशों में भगवान के संघ की सेवा की भावना आप में सदा बनी रहती है । आपके पवित्र संस्मरण या दर्शन तथा सम्भाषण सदा ही याद रहेंगे । यह मिलन भले ही थोड़े समय का था किन्तु सदा के लिए अमिट छाप छोड़ गया है । प्रचारक्षेत्र Jain Education International आपश्री का चातुर्मास १९६६ का लुधियाना में और १६६७ का जम्मू में तथा १९६८ का चातुर्मास मालेरकोटला में हुआ, आपने जन-जन में जागृति पैदा की तथा एक बार तो समस्त पंजाब आपके पधारने से जागृत हो उठा था । आपकी पावन स्मृति में जम्मू नगर में आनन्द भवन का निर्माण हुआ, तथा फरीदकोट में प्राकृत शिक्षण संस्था की नींव रखी गई तथा जैनेन्द्र गुरुकुल पंचकूला, जिला अम्बाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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