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________________ ६४ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ प्रवचलन कला की दूसरी महान् विशेषता मैंने देखी कि भी यही विशेषता है कि वह चुम्बक की तरह पाठक को आप त्याग का महत्त्व बताते हैं, तप का विश्लेषण करते पकड़ता है। हैं, दान की महत्ता पर प्रकाश डालते है, किन्तु किसी को भी गुरुदेव श्री का हृदय अत्यन्त दयालु है। किसी भी बलपूर्वक उस कार्य को करने के लिए नहीं कहते । न कहने व्यक्ति को दुःख से छटपटाते हुए देख नहीं सकते । दुःखी पर भी आपके वर्षावास में लोग इतना तप करते हैं, जप को देखते ही आपका हृदय नवनीत की तरह पिघल जाता करते हैं, दान देते हैं उसे देखकर आश्चर्य होता है। है । और उसके दुःख को दूर करने के लिए आपश्री तत्पर वस्तुतः किसी भी कार्य के लिए हृदय-परिवर्तन ही मुख्य हो जाते हैं। फिर भले ही उसके लिए आपश्री को स्वयं है। जो कार्य बलपूर्वक कराया जाता है, उस कार्य में वह कष्ट उठाना पड़े उसकी किंचित् मात्र भी चिन्ता नहीं चेतना नहीं होती, जो चेतना हृदय की प्रेरणा से किये जाने करते । सन्त जीवन की यह महान् विशेषता आपके जीवन वाले कार्य में होती है। में प्रत्यक्ष रूप से देखी जा सकती है। ___ गुरुदेव श्री के पावन प्रवचनों को सुनकर हजारों सद्गुरुदेव श्री के जीवन में हजारों विशेषताएँ हैं । मैं व्यक्तियों के जीवन में परिवर्तन हुआ है। मैंने स्वयं देखा है उन सभी विशेषताओं का यहाँ अंकन नहीं कर सकती मुझे कि जो युवक साधना से कतराते थे, जिनके जीवन में दुर्गुणों सद्गुरुदेव के चरणों में बैठने पर अपार आध्यात्मिक आनन्द का साम्राज्य था, व्यसनों से जिनका जीवन ओतप्रोत था, उपलब्ध हुआ है। उन्हीं की परम कृपा से मैं श्रमणी बनी। वे भी आपके निकट सम्पर्क में आकर व्यसनों से मुक्त हो और उन्हीं की कृपा से मैं विकास के पथ पर आगे बढ़ रही गये, और प्रतिदिन साधना में लग गये । मैंने ऐसा अनुभव हैं। गुरुदेव श्री मानवता के मसीहा हैं, श्रमण परम्परा के किया कि आपके प्रवचन जबान से ही नहीं हृदय से ज्योतिपुंज हैं । उनकी छत्र-छाया में हमारा सदा विकास निकलते हैं । हृदय से निकली हुई वाणी ही हृदय को होता रहे मेरी यही हार्दिक भावना है। छूती है। "हे आत्मदेव ! हे दिव्य पुरुष ! गुरुदेव श्री जहाँ प्रसिद्ध व्याख्याकार हैं वहाँ मूर्धन्य हे वरद शक्तियों के अवतार । साहित्यकार भी हैं । आप प्रवचन के बीच कई बार आशु हे करुणामय, ज्ञानपुञ्ज हे ! कविता भी करते हैं । यों आपने अनेक काव्य ग्रन्थ लिखे शील-सत्य-सत्कृति भण्डार । हैं । कहानी साहित्य के क्षेत्र में जैन कथाएँ आपकी अपूर्व हे त्याग तपस्या के आराधक ! देन हैं । जैन कथाओं को पढ़ करके भी हजारों व्यक्तियों के जन जीवन के बढ़ आधार । जीवन में परिवर्तन हो गया। कथालेखन की शैली इतनी अभिनन्दन स्वीकार करे चित्ताकर्षक है कि पाठक एक बार पुस्तक हाथ में ले ले तो 'चारित्रप्रभा' का हे उदार ! ।।" उसे छोड़ नहीं सकता। गुरुदेव श्री के अन्य साहित्य की ०. प्रेरणा के स्रोत - साध्वी विमला श्री 'जैन सिन्धाताचार्य' परम श्रद्धय उपाध्याय पुष्कर मुनि जी एक प्रभाव- उनका अभिनन्दन करती है । कवि के शब्दों में गुरुदेव का शाली युग पुरुष हैं। महापुरुष वही होता है जो संक्षेप में परिचय है : अपने युग को नया सन्देश देता है, नयी दिशा और नया सरल हृदय है, सरल वाणी है मोड़ देता है । वह अगरबत्ती की तरह स्वयं जलकर दूसरों सरल कर्म है गुरुवर का । को सुवास देता है और मोमबत्ती की तरह स्वयं जलकर सादा सरल मधुर जीवन है दूसरों को प्रकाश देता है। इसीलिए श्रद्धालु-गण उनके श्री पुष्कर मुनीश्वर का। चरणों में श्रद्धा समर्पित करते हैं और भावुक भक्तगण मैं अपनी हृदय की असीम श्रद्धा समर्पित करती हुई अपनी भक्ति प्रदर्शित करते हैं। जिसका जीवन परोपकार- यह मंगल कामना करती हूँ कि हे युग के महान् चिन्तक ! परायण होता है वही जीवन दूसरों के लिए प्रेरक होता विचारक, पूज्य गुरुदेव आपका यशस्वी और तेजस्वी जीवन है। उपाध्याय पुष्कर मुनि श्री महाराज का जीवन एक हमारे लिए सदा सर्वदा पथप्रदर्शक बना रहे। हम आपके श्रेष्ठ सन्त का जीवन है। वे स्वोपकार के साथ निरन्तर निर्मल जीवन से सतत प्रेरणा-पीयूष का पान करती रहें। परोपकार भी करते हैं। इसी कारण जनता श्रद्धापूर्वक ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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