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________________ ६४ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड मण्डला रंग काला होताक्ति के शरीर का .. रंग, शब्द, मन और उच्चारण-ये चार मुख्य बातें हैं। रंग का हमारे चिन्तन के साथ और हमारे जीवन के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है। रंग हमारे शरीर को प्रभावित करता है, हमारे मन को प्रभावित करता है। रंगचिकित्सा पद्धति आज भी चलती है। 'कलर थेरापी' यह पद्धति चल रही है। एक पद्धति है 'कोस्मिक रे थेरापी' अर्थात् दिव्य-किरण-चिकित्सा । इसका भी रंग के साथ सम्बन्ध है। इसका रंग और सूर्य की किरण-दोनों के साथ सम्बन्ध है । प्रकाश के साथ यह संयुक्त है। रंग हमारे शरीर और मन को विविध प्रकार से प्रभावित करता है। उससे रोग मिटते हैं फिर चाहे वे रोग शारीरिक हों या मानसिक । मानसिक रोग चिकित्सा में भी रंग का विशिष्ट स्थान है। पागलपन को रंग के माध्यम से समाप्त कर दिया जाता है। रंग थोड़ा सा विकृत हुआ कि आदमी पागल हो जाता है। रंग की पूर्ति हुई, आदमी स्वस्थ बन जाता है। शरीर में रंग की कमी के कारण अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। 'कलर थेरापी' का यह सिद्धान्त है कि बीमारी के कोई कीटाणु नहीं होते। रंग की कमी के कारण बीमारी होती है। जिस रंग की कमी हुई है, उसकी पूर्ति कर दो, आदमी स्वस्थ हो जायेगा, बीमारी मिट जायेगी। तो बीमारी का होना या बीमारी का न होना या स्वस्थ होना, यह सारा रंगों के आधार पर होता है। हमारे चिन्तन के साथ भी रंगों का सम्बन्ध है। आपके मन में खराब चिन्तन आता है, अनिष्ट बात उभरती है, अशुभ सोचते हैं, तब चिन्तन के पुद्गल काले वर्ण के होते हैं। आपकी लेश्या कृष्ण होती है। आप अच्छा चिन्तन करते हैं, हित-चिन्तन करते हैं, शुभ सोचते हैं तब चिन्तन के पुद्गल पीत वर्ण के होते हैं, पीले होते हैं। लाल वर्ण के भी हो सकते हैं और श्वेत वर्ण के भी हो सकते हैं। उस समय तेजोलेश्या होगी या पद्मलेश्या होगी या शुक्ललेश्या होगी। बुरे चिन्तन के पुद्गलों का वर्ण है काला, अच्छे चिन्तन के पद्गलों का वर्ण है पीला या लाल या श्वेत । कितना बड़ा सम्बन्ध है रंग का चिन्तन के साथ । जिस प्रकार का चिन्तन होता है उसी प्रकार का रंग होता है । शरीर के साथ रंग का गहरा सम्बन्ध है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के आसपास का एक आभामण्डल है। उसमें अनेक रंग होते हैं। किसी के आभामण्डल का रंग काला होता है, किसी के नीला, किसी के लाल और किसी के सफेद । अनेक वर्णों का भी होता है आभामण्डल । आपकी आँखों को वे रंग नहीं दिखते । पर वे हैं अवश्य ही । ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जिसके चारों ओर आभामण्डल न हो। इसका स्वयं पर भी असर होता है और दूसरों पर भी असर होता है । आप किसी व्यक्ति के पास जाकर बैठते हैं। बैठते ही आपके मन में एक परिवर्तन होता है। लगता है कि आपको अपूर्व शान्ति का अनुभव हो रहा है। आपका मन आनन्दित है और अन्दर ही अन्दर एक संगीत चल रहा है। आप किसी दूसरे व्यक्ति के पास जाकर बैठते है। अकारण ही उदासी छा जाती है। मन उद्विग्न हो जाता है। मन में क्षोभ और संताप उत्पन्न हो जाता है। वहाँ से उठने की शीघ्रता होती है। यह सब क्यों होता है ? भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के पास बैठकर हम भिन्न-भिन्न भावनाओं से आक्रान्त होते हैं। यह सब क्यों और कैसे होता है ? इसका कारण है व्यक्ति-व्यक्ति का आभामण्डल, आभावलय । सामने वाले व्यक्ति का जैसा आभामण्डल होगा, आभावलय होगा, उसके रंग होंगे, वे पास वाले व्यक्ति को प्रभावित करते है। व्यक्ति चाहे या न चाहे वह उन रंगों से प्रभावित अवश्य ही होता है । जिस व्यक्ति का आभामण्डल श्वेत वर्ण का है, नीले वर्ण का है, पीले वर्ण का है, उसके पास जाकर बैठते ही मन शान्त हो जाता है, शान्ति से भर जाता है, उद्विग्नता मिट जाती है, प्रसन्नता से चेहरा खिल जाता है। जिसका आभामण्डल विकृत है, कृष्ण-वर्ण के पद्गलों से निर्मित है तो उस व्यक्ति के पास जाते ही अकारण ही चिन्ता उभर जाती है, उदासी छा जाती है, मन उद्विग्नता से भर जाता है और ईर्ष्या-द्वेष, बुरे विचार मन में आने लगते हैं। इससे स्पष्ट है कि रंग हमें प्रभावित करते हैं। एक है रंग, दूसरा है शब्द । हमारे जीवन पर शब्द का असर होता है। मन पर शब्द का असर होता है। शब्द के स्थूल प्रभाव से हम सब परिचित हैं। एक बार स्वामी विवेकानन्द से एक व्यक्ति ने कहा- 'शब्द निरर्थक है। उनका प्रभाव या अप्रभाव कुछ भी नहीं होता। वे निर्जीव है।' विवेकानन्द ने सुना। कुछ देर मौन रहने के बाद बोले-'बेवकूफ हो तुम। बैठ जाओ।' इतना कहते ही वह व्यक्ति आगबबूला हो गया। उसकी आकृति बदल गयी। आँखें लाल हो गयीं। उसने कहा-'आप इतने बड़े सन्त हैं। मुझे गाली दे दी। शब्दों का ध्यान ही नहीं रहा आपको।' विवेकानन्द ने मुस्कराते हुए कहा-'अभी तो तुम कह रहे थे कि शब्दों में क्या प्रभाव है ? और स्वयं एक 'बेवकूफ' शब्द से इतने प्रभावित हो गये और क्रोध में आ गये।' शब्दों में शक्ति होती है। वे प्रभावित करते हैं। यह स्थूल प्रभाव की बात मैंने कही। शब्द का बहुत सूक्ष्म प्रभाव होता है, असर होता है। आज शब्द के द्वारा चिकित्सा होती है । शब्दों के द्वारा आपरेशन होते हैं। आपरेशन में किसी शस्त्र की जरूरत नहीं होती, किसी उपकरण की जरूरत नहीं होती। शब्द की सूक्ष्म तरंगें आ रही हैं और चीड़-फाड़ हो रहा है। कपड़ों की धुलाई होती है शब्दों के द्वारा, सूक्ष्मथ्वनि के द्वारा। सूक्ष्मतम ध्वनि से हीरे की कटाई होती है। पुराने जमाने में कहा जाता था कि हीरे से हीरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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