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________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन ५३ जनसमाज में इने-गिने महर्षियों में से एक हैं। आपका किन्तु हमारी समाज ने इधर कुछ भी प्रयास नहीं किया, जीवन अहिंसा, सत्य, संयम, क्षमा आदि दिव्य एवं अली- यदि प्रयास किया होता तो उनके साहित्य की अधिक कद्र किक जगमगाते कोहीनूर हीरे के समान है जो अपनी अलौ- होती और वे कभी के इस पद से अलंकृत हो जाते। किक आभा से जन-जन के मन को अपनी ओर आकर्षित उपाध्याय श्री स्थानकवासी जैन-परम्परा के सन्त हैं कर रहा है। आपश्री जैन सिद्धान्तों के गंभीर रहस्यों के पर आप में साम्प्रदायिकता नहीं है। स्थानकवासी समाज ज्ञाता हैं और साथ ही व्याकरण, न्याय, काव्य आदि के के सिद्धान्तों को सर्वश्रेष्ठ मानकर के भी दूसरे सम्प्रदायों मर्मज्ञ-विद्वान् हैं। ब्राह्मणकुल में जन्म लेने से आपको के प्रति हीनभावना नहीं है । आपश्री श्रमणसंघ के जन्म से ही बुद्धि वैभव मिला है । आपकी प्रतिभा, प्रज्ञा, भूषण हैं। मेधा और स्मरण-शक्ति तीक्ष्ण है। उज्ज्वल-शिष्याओं पर आपकी और आपके सुयोग्य आपश्री ने जैन समाज के उत्थान के लिए विद्वान् शिष्य देवेन्द्र मुनि जी की विशेष कृपा रही है। अनेक शिष्य तैयार किये हैं, उनकी प्रगति के लिए प्रबल पुरुषार्थ कार्यों में व्यस्त होने पर भी आपने समय-समय पर अनेक किया है । वस्तुत: आपका पाण्डित्य अपने शिष्यों में प्रखर उपकार किये हैं, जिन उपकारों को हम कभी भी विस्मृत होकर निखरा है। पूज्य देवेन्द्रमुनि जी जैसे विद्वान् शिष्य नहीं हो सकते । और हमें पूर्ण आपका विश्वास है कि को तैयार कर आपने समाज पर अत्यन्त उपकार किया आपश्री की असीम कृपा सदा बनी रहेगी। है। ये आपके सुयोग्य शिष्य हैं । मैंने अनुभव किया है कि मैं शासनदेव से नम्र प्रार्थना करती हैं कि उपाध्याय वे गुरु आज्ञा के प्रति सर्वात्मना समर्पित है। विनय उनके अध्यात्मयोगी राजस्थानकेसरी पूज्य गुरुदेव श्री को अपने जीवन का मूलमंत्र है। संयम उनकी साधना का आधार आत्मोत्थान के साथ राष्ट्र और समाज की सेवा करने के है । जिज्ञासा और श्रम ही उनके विकास का मूल-कारण लिए उन्हें बाहुबली की तरह बल प्रदान करे । आपके सत्य, है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि गुरु को योग्य शिष्य संयम और वैराग्यपूर्ण जीवन की सुमधुर सौरभ विश्व के मिला, शिष्य को ज्ञानी गुरु मिले और सोने में सुगन्ध की प्राणियों को सौम्यता और शान्ति प्रदान करे। आप जैसे कहावत चरितार्थ हो गई। महान सन्त का पथ-प्रदर्शन सुदीर्घ-काल तक जनता-जनार्दन ___ गुरु और शिष्य दोनों की साहित्यिक सेवाएँ प्रशंस- को मिलता रहे। आप बहुजनहिताय और बहुजनसुखाय नीय हैं आप दोनों के अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। कार्य करते रहें और आपकी छत्रछाया में हम सदा प्रगति आपके ग्रन्थों में मौलिकता, नवीनता रहती है। जिससे करती रहें अन्त में इतना हीउनके प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक है । देवेन्द्र मुनि जी 'जो भटकते अज्ञान अंधकार में, के मौलिक ग्रन्थों को पढ़कर मेरी सद्गुरुणी श्री उज्ज्वल उन्हें प्रकाश जो देते हैं। कुमारी जी ने कहा था कि इन ग्रन्थों पर उन्हें विश्वविद्या प्रकाशदाता ऐसे उपाध्याय को, लय की ओर से 'डी० लिट्' की उपाधि मिलनी चाहिए। हम शत-शत वन्दन करते हैं। अद्भुत विशेषताओं के धनी साध्वी मुक्तिप्रभा, एम० ए० साहित्यरत्न सन्त पुरुष के जीवन का क्षण-क्षण और पल-पल मूल्यवान् पहुँचने पर अपूर्व आध्यात्मिक आनन्द की अनुभूति हुई। होता है। वे समय का सही मूल्यांकन करते हैं और जीवन आपकी जप व ध्यान साधना ने मुझे अत्यधिक प्रभावित का निर्माण करते हैं । पूज्य उपाध्याय श्री हमारे समाज के किया। आप केवल साधक ही नहीं साधकों के निर्माता जाने-माने और पहचाने हुए एक महापुरुष हैं। उन्होंने भी हैं। आप केवल लेखक ही नहीं, लेखकों के निर्माता भी समाज में एक नयी ज्योति जलायी, नयी आभा प्रस्तुत की। हैं । आप केवल कवि ही नहीं, कवियों के सृजनहार भी हैं। जिस दिव्य ज्योति की रोशनी में हमारा समाज विपरीत आपका जीवन अद्भुत विशेषताओं से भरा हुआ है । मैं मार्ग का परित्याग कर सही मार्ग पर आया। ईमानदारी आपश्री की दीक्षा स्वर्णजयन्ती अवसर पर अपने हृदय और नैतिकता के पथ पर बढ़ने की प्रबल प्रेरणा दी। की निर्मल भावनाएं श्रीचरणों में समर्पित कर अपने आपकी अप्रतिम प्रतिभा और सुदृढ़ लेखनी ने जैन साहित्य आपको भाग्यवान मानती हूँ। मेरी यही शत-शत मंगल की श्रीवृद्धि में अपूर्व योगदान दिया है। आपके दर्शनों का कामना है कि आपश्री पूर्ण स्वस्थ रहकर जैनधर्म की सदा सौभाग्य मुझे बम्बई, अहमदनगर और अहमदाबाद में प्रभावना करते रहें। , मिला । मैं खाली गयी और भरी हई लौटी। आपके पास सौभायवृद्धि में अपूर्व या और सुदृढ़ ला प्रबल प्रेरणादारी आपश्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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