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________________ महामहिम आचार्य : आचार्य श्री पूनमचन्दजी महाराज १२१ memurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr+++++++ आपश्री के मानमलजी महाराज, नवलमलजी महाराज, ज्येष्ठमलजी महाराज, दयालचन्दजी महाराज, नेमीचन्दजी महाराज, पन्नालालजी महाराज और ताराचन्दजी महाराज-ये सात शिष्य थे जो सप्तर्षि की तरह अत्यन्त प्रभावशाली हुए। आचार्य पूनमचन्दजी महाराज के प्रथम शिष्य मानमलजी महाराज थे। उनकी जन्मस्थली गढ़जालोर थी। वे लूणिया परिवार के थे। उन्होंने अपनी माँ और बहन के साथ आहती दीक्षा ग्रहण की थी। उनके शिष्य बुधमलजी महाराज थे, जो कवि, वक्ता और लेखक थे। आचार्यश्री के द्वितीय शिष्य नवलमलजी महाराज थे, जो एक विलक्षण मेधा के धनी थे। किन्तु आपका पाली में लघुवय में ही स्वर्गवास हो गया। आचार्यश्री के तीसरे शिष्य ज्येष्ठमलजी महाराज थे जो महान् चमत्कारी थे। उनका परिचय स्वतन्त्र रूप से अगले पृष्ठों में दिया गया है। ज्येष्ठमलजी महाराज के दो शिष्य थे। प्रथम शिष्य नेणचन्दजी महाराज थे जो समदडी के निवासी और लुंकड परिवार के थे। आपका अध्ययन संस्कृत और प्राकृत भाषा के साथ आगम साहित्य का बहुत ही सुन्दर था। आपकी प्रवचनकला चित्ताकर्षक थी। आपश्री के द्वितीय शिष्य तपस्वी श्री हिन्दूमलजी महाराज थे। इनकी जन्मस्थली गढ़सिवाना में थी। इन्होंने अपने भरे-पूरे परिवार को छोड़कर दीक्षा ग्रहण की थी और जिस दिन दीक्षा ग्रहण की उसी दिन से पाँच विगयों का परित्याग कर दिया और उसके साथ ही उत्कृष्ट तप भी करते रहते थे और पारणे में वही रूखी रोटी और छाछ ग्रहण करते थे। आचार्यश्री के चतुर्थ शिष्य दयालचन्दजी महाराज थे । आप मजल (मारवाड) के निवासी थे । मुथा परिवार में आपका जन्म हुआ था । नौ वर्ष की लघुवय में पूज्यश्री के पास वि० संवत् १९३१ में गोगुन्दा (मेवाड) में दीक्षा ग्रहण की। आपका स्वभाव बड़ा ही मधुर था। आपके हेमराजजी महाराज शिष्यरत्न थे जिनकी जन्मस्थली पाली-मारवाड़ थी। आप जाति से मालाकार थे । आपने वि० संवत् १९६० में दीक्षा ग्रहण की थी। आप ओजस्वी वक्ता थे। आपका गंभीर घोष श्रवण कर श्रोता झूम उठते थे। आपका स्वभाव बहुत ही मिलनसार था। आपश्री ने गढ़जालोर में एक विराट पुस्तकालय की संस्थापना की थी। पर, खेद है कि श्रावकों की पुस्तकों के प्रति उपेक्षा होने से वे सारे बहुमूल्य ग्रन्थ दीमकों के उदर में समा गये। पंडित मुनिश्री हेमराज महाराज का वि० संवत् १९९७ में दुन्दाड़ा ग्राम में संथारापूर्वक स्वर्गवास हुआ और वि० संवत् २००० में दयालचन्दजी महाराज साहब का गढ़ जालोर में स्वर्गवास हुआ। आचार्यश्री के पाँचवें शिष्य कविवर नेमीचन्दजी महाराज थे । आपका विशेष परिचय अगले लेख में स्वतन्त्र रूप से दिया है। आपश्री के तीन शिष्य थे-सबसे बड़े वर्दीचन्दजी महाराज थे। वे मेवाड के बगडंडा गांव के निवासी थे। आपने लघु वय में दीक्षा ग्रहण की। वि० संवत् १९५६ में पंजाब के प्रसिद्ध सन्त मायारामजी महाराज मेवाड़ पधारे। कविवर नेमीचन्दजी महाराज के साथ उनका बहुत ही मधुर सम्बन्ध रहा। वर्दीचन्दजी महाराज की इच्छा मायारामजी महाराज के साथ पंजाब क्षेत्र स्पर्शने की हुई। कविवर्य नेमीचन्दजी महाराज ने उन्हें सहर्ष अनुमति दी। वे पंजाब में पधारे । उनके शिष्य शेरे-पंजाब प्रेमचन्दजी महाराज हुए जो प्रसिद्ध वक्ता और विचारक थे। उनकी प्रवचनकला बहुत ही अद्भुत थी । जब वे दहाड़ते थे तो श्रोता दंग हो जाते थे। कविवर्य नेमीचन्दजी महाराज के द्वितीय शिष्य हंसराजजी महाराज थे। वे मेवाड के देवास ग्राम के निवासी थे और बाफना परिवार के थे। . आपकी प्रकृति बहुत ही भद्र थी। आप महान् तपस्वी थे, आपने अनेक बार साठ उपवास किये, कभी इकावन किये, कभी मासखमण किये। वि० संवत् में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके तीसरे शिष्य दौलतरामजी महाराज थे जो देलवाड़ा के निवासी थे और आपका जन्म लोढा परिवार में हुआ था । आप जपयोगी सन्त थे। आचार्यश्री के छठे शिष्य पन्नालालजी महाराज थे । आप गोगुन्दा-मेवाड़ के निवासी थे । लोढा परिवार में आपका जन्म हुआ था। वि० संवत् १९४२ में आपने दीक्षा ग्रहण की थी। आपका गला बहुत ही मधुर था। कविवर नेमीचन्दजी और आप दोनों गुरुभ्राता जब मिलकर गाते थे तो रात्रि के शांत वातावरण में आपकी आवाज २-३ मील तक पहुंचती थी। आपश्री का स्वर्गवास मारवाड़ के राणावास ग्राम में हुआ। आपके सुशिष्य तपस्वी प्रेमचन्दजी महाराज थे जो उत्कृष्ट तपस्वी थे। भीष्म ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की चिलचिलाती धूप में आप आतापना ग्रहण करते थे और जाड़े में तन को कॅपाने वाली सनसनाती सर्दी में रात्रि के अन्दर वे वस्त्रों को हटाकर शीत-आतापना लेते थे। 12 O Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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