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________________ ४६ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ घाटकोपर, बम्बई में हुआ। वे राजस्थान के और हम पंचम स्वर झंकृत होता है। जब आप प्रवचन करते हैं गुजरात की। उनकी पृथक् सम्प्रदाय और हमारी पृथक् उस समय ऐसा ज्ञात होता है कि हिमालय के उत्तुंग सम्प्रदाय; किन्तु आपश्री इतने स्नेह व सद्भावना से मिले शिखर से गंगा का निर्मल प्रवाह प्रवाहित हो रहा है। कि हमें यह भान ही नहीं हुआ कि आप अन्य सम्प्रदाय के मानव-सेवा और संघ-सेवा यह आपश्री के जीवन के सन्त हैं । प्रथम दर्शन में ही आपश्री के अलौकिक व्यक्तित्व मुख्य अंग हैं। आपका स्वभाव सरल है, आपमें क्षमा, की गहरी छाप मानस-पटल पर गिरी। मनोविज्ञान का मृदुता, समता, सादगी प्रभृति श्रमण जीवन के सद्गुण सिद्धान्त है कि किसी भी व्यक्तित्व का अन्तरंग दर्शन विशेष रूप से झलकते हैं। विनय आपके जीवन का मूलकरने से पूर्व दर्शक पर उसके बाह्य व्यक्तित्व (Person- मन्त्र है। आपके दिल में दयालुता है, मन में ममता है, ality) का प्रभाव पड़ता है। प्रथम दर्शन से ही यदि आपकी प्रकृति में प्रेम का प्राधान्य है। विचार विशाल व्यक्ति प्रभावित हो जाता है तो उसके भावी सम्पर्क भी और स्वभाव सौन्दर्य से परिपूर्ण है। आपश्री पापियों के उस व्यक्तित्व से अवश्य ही प्रभावित रहते हैं । गुजराती लिए पुण्य तीर्थ स्वरूप हैं और पुण्यवान् आत्माओं के लिए में कहावत है-"जेना जोया नथी मरता तेना माऱ्या पैगम्बर हैं। आबालवृद्ध सभी के लिए विश्रामस्थल के शु मरे ।" परिचय एवं प्रभाव की दृष्टि से प्रथम सम्पर्क सदृश हैं। पापी हो चाहे पुण्यशाली, वे आपकी छत्रछाया ही महत्त्वपूर्ण है। यदि व्यक्ति के चेहरे पर ओज हो, में समान रूप से स्नेह का अमृत प्राप्त करते हैं। आप प्रभाव चमक रहा हो, सौन्दर्य छलक रहा हो, नेत्रों में तेज, तत्त्वचिन्तक ही नहीं, चैतन्य चिन्तक भी हैं। और अज्ञेय मुख पर मन्दस्मिति, शारीरिक गठन की सुभव्यता और आत्मा को अनुभव से जय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सुन्दरता हो; किन्तु उस व्यक्तित्व की गहराई में यदि कुछ आपका जीवन गुलाब की तरह सुवासित है, नवनीत के न भी हो तो भी उस व्यक्ति का प्रभाव अवश्य ही पड़ता समान मृदु है और मिश्री के समान मीठा है, सूर्य के समान है। यदि बाह्य सौन्दर्य के साथ आन्तरिक सौन्दर्य हो तो तेजस्वी है, चन्द्र के समान शीतल है, सिंह के समान वह “सोने में सुगन्ध" की उक्ति को चरितार्थ करता है। निर्भीक है और कमल की तरह निर्लेप है। साथ ही मैंने अनुभव किया उपाध्याय पुष्करमुनिजी का बाह्य आपके जीवन में आचार की पवित्र गंगा और विचारों की सौन्दर्य आकर्षक है, उससे भी अधिक चित्ताकर्षक है उनका श्रेष्ठ यमुना का सुन्दर संगम हुआ है। आन्तरिक जीवनः जहाँ स्नेह है, सद्भावना है और सत्य एक पाश्चात्य विचारक ने भी महान् व्यक्ति की और शील का सौन्दर्य दमक रहा है। जीवन विशेषता के बारे में लिखा हैजैसे वृक्ष की शीतल छाया में विश्राम लेने वाले “A really great man is known by three पथिक को अपूर्व शान्ति का अनुभव होता है वैसे ही पूज्य things-generosity in the design, humanity श्री के सान्निध्य में आत्म शान्ति सम्प्राप्त होती है। सूर्य in the execution, moderation in success." सहस्रों मील दूर है, किन्तु उसकी प्रभा से सूर्य-विकासी श्रेष्ठ व्यक्ति की तीन पहचानें हैं-आयोजन में कमल खिल उठता है। वैसे ही आपश्री का उपदेश दूर उदारता, कार्य में मानवीयता तथा सफलता में रहा, किन्तु आपकी शान्त, मौन जीवनचर्या भी हजारों सन्तुलन ।" । व्यक्तियों को प्रेरणा प्रदान करती है । आपश्री की स्नेह- ये तीनों विशेषताएं उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी के सरिता कल-कल छल-छल करती हुई सदा प्रवाहित रहती जीवन में साकार हैं, अतः वे श्रेष्ठतम सन्त हैं। उनके हैं और वह पाप-पंक को नष्ट कर देती है। आप में सन्निकट जो भी जाता है उसका जीवन चारित्र्य की प्रतापपूर्ण प्रतिभा है, तीक्ष्ण बुद्धि है, और सदा खिलता सौरभ से गमक उठता है; क्रोधी क्षमाशील हो जाता है, हुआ मुख-कमल है। जो भी एक बार आपके सम्पर्क में और रोगी निरोगी बन जाता है, ऐसा चमत्कारयुक्त है आता है वह आपके प्रभाव से प्रभावित हुए बिना नहीं रह आपका जीवन । सकता। यदि उपाध्याय पुष्कर मुनि जी के सद्गुणों के सम्बन्ध आप सफल प्रवचनकार हैं, आपश्री ने प्रसिद्धवक्ता में लिखा जाय तो एक विराटकाय ग्रन्थ सहज रूप से के रूप में निर्मल ख्याति प्राप्त की है। आपने अपने तय्यार हो सकता है, किन्तु यहाँ इतना अवकाश नहीं है। ओजस्वी प्रवचनों के माध्यम से अपनी यशःपताका लहरायी जब से मैं आपके सम्पर्क में आयी, अपके सद्गुणों ने है। बालक से लेकर वृद्ध तक, और अज्ञ से लेकर विज्ञ मुझे अत्यधिक प्रभावित किया । जब भी आपके सद्गुणों तक श्रोता आपके प्रवचनों से प्रभावित हुए हैं । आपकी की स्मृति होती है एक आदर्श प्रेरणा प्राप्त होती है। आप शैली की लाक्षणिकता श्रोताओं को मन्त्र-मुग्ध कर देती शतायु बनें, हम सभी के लिए आपका जीवन सदा पथहै। आपकी वाणी में अतिशय माधुर्य है । आपके कण्ठ में प्रदर्शक रहे यही मेरी श्रद्धार्चना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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