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________________ । ३० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ +++ ++ +++ + + +++ ++ ++ ++ ++ + ++ ++++ ++ ++++ + ++ ++ + + ++ + + ++ + ++ + ++ + + + + + + ++ + + ++ ++ ++ +++ ++ ++ ++ ++ ++++ महाराज बम्बई से उग्र विहार कर पधारे, इधर आचार्य अस्वस्थ हो जाने से आप श्री पूना का तेजस्वी चातुर्मास प्रवर भी कुशालपुरा चातुर्मास सम्पन्न कर वहाँ पधारे। सम्पन्न कर आचार्य श्री के दर्शनार्थ घोड़नदी पधारे, श्रमण पुन: आप श्री के दर्शनों का सौभाग्य मुझे मिला । मैंने इस संघ के उत्कर्ष के सम्बन्ध में आचार्य श्री से आप की गम्भीर समय भी आपको बहुत ही सन्निकटता से देखा आप श्री की विचार चर्चाएँ हुईं । आचार्य प्रवर के प्रति आपश्री के अन्तध्यान-साधना एवं ज्ञान की उत्कट भावना ने मुझे प्रभावित मानस में गहरी निष्ठा, सरलता आदि सद्गुणों को देखकर किया, आप श्री ने अत्यन्त स्नेह के साथ मेरी प्रगति के मेरा हृदय नत हो गया। और आपश्री श्रमण संघ के एक सम्बन्ध में मुझ से पूछा-उसके पश्चात् पुनः आपश्री के मूर्धन्य सन्त हैं, उपाध्याय हैं, श्रमण संघ की अखंडता के दर्शनों का सौभाग्य मुझे सन् १९७५ में मिला । पूज्य लिए आपश्री का प्रयास चल रहा है। आपश्री ने मेरे जीवन गुरुदेव श्री महाराष्ट्र के गांवों में विचरण कर रहे थे, आप विकास हेतु अनेक सदशिक्षाएँ प्रदान की। आप का श्री अहमदाबाद का यशस्वी चातुर्मास पूर्ण कर आचार्य श्री अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है यह आल्हाद का विषय के दर्शन हेतु खेड़ मंचर पधारे, इस समय आपश्री के प्रवचनों है, मैं अपनी अन्तश्रद्धा आपश्री के चरणों में समर्पित को सुनने का विशेष अवसर मिला, आप श्री की ओजपूर्ण करता हूँ कि आपश्री सदा श्रमण संघ को आगे बढ़ाते रहें वक्तत्व कला को देखकर मैं मन्त्रमुग्ध हो गया। नीरस से आप जैसे मूर्धन्य सन्तों से ही श्रमण संघ की गौरव गाथा नीरस विषय को भी आप श्री अपनी कला से इस प्रकार दिग्दिगन्त में गूंज रही है। आपका यशस्वी जीवन हमारे सरस बनाकर प्रस्तुत करते हैं कि श्रोतागण झूम उठते हैं। लिए सदा पथ-प्रदर्शक बना रहे यही वन्दना के साथ आचार्य प्रवर का सन् १९७५ का वर्षावास घोड़नदी में अभ्यर्थना है। सम्पन्न हुआ, उस समय आचार्यप्रवर का स्वास्थ्य काफी विराट् व्यक्तित्व के धनी 0 मधुरवक्ता श्री कमलेश मुनि (खम्भात सम्प्रदाय) जब आषाढ़ मास में अनन्त आकाश में उमड़-घुमड़कर सुधा स्निग्ध वाणी की वह मधुर झंकार आज भी कर्णघनघोर घटाएँ छा रही हों, बिजलियाँ कौंध रही हों, उस कुहरों में गूंज रही है। आपश्री में ध्यान-योग की प्रबल समय मोर चुप नहीं रह सकता। वसन्त का सुहावना आध्यात्मिक मस्ती है महान पुरुषार्थ है, अखण्ड बाल मौसम हो, आम्रवृक्ष पर मंजरियां चटक रही हों और ब्रह्मचारी, उपबिहारी ज्ञानी महापुरुष का सहवास मुझे उनकी मधुर गमक चारों ओर फैल रही हो उस समय अहमदाबाद से महेसाणा तक मिला; उस समय मैंने आपकी कोयल की मधुर वाणी झंकृत हुए बिना नहीं रह सकती सिंहगर्जना और प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष अनुभव वैसे ही पूज्य गुरुदेव उपाध्याय राजस्थानकेसरी अध्यात्म- किया। आपश्री राजस्थानकेसरी ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण योगी श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के गुणों का उत्कीर्तन जैन समाज के केसरी हैं यह कहदं तो अतिशयोक्ति नहीं का प्रसंग उपस्थित हो उस समय मैं चुप कैसे रह सकता होगी। क्योंकि आप एक विराट व्यक्तित्व के धनी हैं। मेरे अन्तः हृदय के कोटि-कोटि वन्दन के साथ आपका मैंने प्रथम बार आपत्री के दर्शन अहमदाबाद के मणि हार्दिक अभिनन्दन है । आपश्री अपने तेजस्वी ज्ञान की नगर में किये थे। प्रथम दर्शन में ही मैं आपसे इतना किरणों से मुझे भी प्रकाशित करो यही मंगल-मनीषा है। अत्यधिक प्रभावित हुआ कि मत पूछो। आपश्री की स्नेह ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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