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________________ जनविद्या के मनीषी प्रोफेसर आल्सडोर्फ ५८५ -essmirmmmmmmmmmmmmmmummer-m irmirmirmummmmmmmm. एक प्रति भी थी जिसका आद्योपान्त पारायण कर जगह-जगह आल्सडोर्फ के नोट्स लिखे हुए थे । वसुदेव हिंडी जैसे महान् ग्रन्थ का सम्पादन कर उसे प्रकाश में लाने के लिए मुनिजी की स्तुति करते हुए उन्होंने ग्रन्थ-सम्पादन की कमजोरियों की ओर लक्ष्य किया। उनका कथन था कि वसुदेव हिंडी की प्रकाशित टैक्स्ट में कितने ही पाठ अशुद्ध हैं और कितने ही शुद्ध पाठ टेक्स्ट में न देकर फुटनोट में दिये गये हैं । उनके पास भी वसुदेव हिंडी की एक ताड़पत्रीय प्रति है किन्तु उनका कहना है कि अब टैक्स्ट का शुद्ध करना टेढ़ी खीर है। धर्मदासगणी महत्तरकृत अप्रकाशित (एल० डी० इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलौजी, अहमदाबाद से प्रकाश्यमान) मज्झिम खंड के सम्बन्ध में चर्चा करते हुए उन्होंने इस रचना को कोई खास महत्वपूर्ण नहीं बताया। इन पंक्तियों के लेखक की 'द वसुदेव हिंडी-ऐन ऑथेण्टिक जैन वर्जन आफ दी बृहत्कथा' नामक पुस्तक की पांडुलिपि की भूमिका पढ़कर उन्होंने अपने भ्रम का निवारण किया)। उसके बाद दशवकालिकसूत्र में मांस प्रकरण आदि अनेक विषयों को लेकर बातचीत होती रही। उसी दिन कील वापिस लौटना था। प्रोफेसर याकोबी लॉपमान और शूबिंग जैसे जैनधर्म के प्रकाण्ड पंडितों की स्वस्थ परम्परा को सुरक्षित रखने वाले जनविद्या के इस महामनीषी (अभी कुछ समय पूर्व भगवान् महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर, आचार्य तुलसी के सान्निध्य में, प्रोफेसर आल्सडोर्फ को नई दिल्ली में आमंत्रित कर जैन विश्व भारती की ओर से उन्हें 'जैन विद्या मनीषी' की पदवी से समलंकृत किया गया है) ने भारतीय संस्कृति के उत्कर्ष के लिए कितना अथक परिश्रम किया है-यह सोचकर मैं मन ही मन श्रद्धा से विनत हो उठा । फिर से जोर के साथ हस्तान्दोलन हुआ। 'ऑफ हिदरजेन' (फिर मिलेंगे) कहकर मैंने विदा ली। -----पुष्कर वाणी-0-0-0--0--0-------------------------------- पानी | तुम दूध के भाव बिकते हो यह कितना बड़ा धोखा है ? पानी-मैं दूध में तन्मय (एकाकार) बन जाता हूँ तभी उसी का मूल्य प्राप्त करता हूँ। तन्मयता कभी प्रवंचना नहीं बनती। सच है, अगर आत्मा भी परमात्म-प्रेम में तन्मय बन जाये तो वही परमात्म पद पर प्रतिष्ठित हो जाती है। an-o--0-0--0--0--0-0--0--0--0--0---------------- --------- --- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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