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________________ ५८४ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड बहुत अच्छा संग्रह है। समस्त जैन आगम और उनकी व्याख्यायें उपलब्ध हैं। कितने ही प्राकृत जैन ग्रन्थों की माइक्रोफिल्म मौजूद है और चूर्णी-साहित्य की जेरोकापी कराकर इस साहित्य को सुरक्षित रखा गया है । शोध विद्यार्थियों को काम करने के लिए हर प्रकार की सुविधा प्राप्त है। विभिन्न विषयों को लेकर शोधकार्य हो रहा है । श्रीमती आडलहाइड मेटे ओघनियुक्ति के पिण्डसणा अध्याय को लेकर शोधकार्य में संलग्न हैं (उनका यह शोध प्रबन्ध १९७४ में प्रकाशित हो चुका है और अब वे म्यूनिक विश्वविद्यालय के इंडोलोजी विभाग में जैन आगम साहित्य पर शोधकार्य कर रही हैं)। दिल्ली के राजेन्द्रप्रसाद जैन प्रोफेसर आल्सडोर्फ के निर्देशन में जैन आगम साहित्य सम्बन्धी किसी विषय को लेकर शोध-प्रबन्ध लिख रहे है। कई वर्ष से यहां रह रहे हैं, यूनिवर्सिटी में विद्याथियों को हिन्दी पढ़ाते हैं। (पता लगा है कि आजकल जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली में जर्मन भाषा के अध्यापक हो गये हैं)। एक सज्जन "महाभारत में अस्त्र-शस्त्र" पर कार्य कर रहे हैं। तिब्बत के लामा का परिचय प्राप्त किया। आठ वर्ष की अवस्था में लामा बन गये थे । तिब्बत से वे भाग निकले । दलाई लामा ने उनकी नियुक्ति के लिए सिफारिश की, और बस हवाई जहाज में सवार हो सीधे हाम्बुर्ग हवाई अड्डे पर पहुँच गये । जर्मन भाषा का ज्ञान न था। लेकिन बिना डिक्शनरी अथवा बिना किसी बीच की भाषा के शीघ्र ही जर्मन सीख गये । अब तो सारा कारोबार जर्मन के माध्यम से ही चलता है। जर्मन विश्वविद्यालयों में तिब्बती भाषा का अध्ययन अध्यापन काफी लोकप्रिय हुआ है। कितना ही बौद्ध साहित्य इस भाषा में सुरक्षित है जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं। प्रोफेसर बेर्नहार्ड तिब्बती पर शोधकार्य कर रहे हैं । लगता है अपने शोधकार्य में पूरी तरह डूबे हुए हैं। कबीर की 'गहरे पानी पैठ' वाली उक्ति याद आ गई। बड़े ही प्रभावशाली दिखाई देते हैं और साथ ही अत्यन्त विनम्र भी। फोन पर बात होती रही : “हम लोग सुखी नहीं; भारत एक महान् देश है, संस्कृति का खजाना है । बारिश हो रही है, नहीं तो मैं आपको शहर में घुमाता । आप ऐसे समय पधारे हैं और वह भी शहर के उस हिस्से में जो बिलकुल भी सुन्दर नहीं। दूसरी बार जब आप आयेंगे मैं आपको अपने साथ ले चलूंगा, हम लोग हिन्दुस्तान के बारे में बात करेंगे।" कुछ समय बाद अपने शोधकार्य के सिलसिले में बेर्नहार्ड को नेपाल जाना पड़ा और दुर्भाग्य से वहीं उनकी मृत्यु हो गयी। फिर कभी साक्षात्कार न हो सका। आल्सडोर्फ को चलती-फिरती ऐनसाइक्लोपीडिया ही समझिये। अपने विषय के अतिरिक्त कितनी ही बातों की जानकारी उन्हें है जिन्हें अत्यन्त मनोरजक ढंग से पेश करने में वे सिद्धहस्त हैं । आप उन्हें सुनते जाइये, कभी किसी तरह की ऊब का अनुभव न होगा। अंग्रेजी भाषा के सम्बन्ध में चर्चा करते हुए बोले कि यह भाषा अन्तर्राष्ट्रीय भाषा कही जा सकती है और इसमें मुहावरों का सौन्दर्य है, जिसका प्रयोग बहुत कम लोग जानते हैं। (अपनी भाषा के गर्व के कारण जर्मन विद्वान् अंग्रेजी की ओर प्रायः उदासीन रहते हैं किन्तु आल्सडोर्फ अंग्रेजी बड़े धड़ल्ले के साथ बोलते और लिखते हैं ।) उन्होंने बताया कि उनके पास भारत से कितने ही लोगों के पत्र आते हैं कि वे जर्मनी आकर इण्डोलोजी पढ़ना चाहते हैं, या उनके विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें इस बात की कल्पना नहीं कि जर्मनी में आने के लिए जर्मन भाषा का जानना अत्यन्त आवश्यक है। हिन्दी आदि का अध्यापन करने के लिए भी ऐसे ही अध्यापकों की आवश्यकता है जो जर्मन के माध्यम से शिक्षा दे सकें। विभाग के छात्र, छात्राओं एवं अध्यापकों के बीच चर्चा हो रही थी। एक जर्मन युवती जो तमिल भाषा का अभ्यास कर रही थीं, बीच में उठकर, हम लोगों के लिए चाय बनाकर लाई। मेरी तरफ मुखातिब होकर हिन्दी में बोली-चाय-पान कीजिये। ___ समय काफी हो गया था। जिस सम्बन्ध में चर्चा करने में आया था, उसकी कोई चर्चा नहीं हो पायी थी। चाय-पान के बाद आल्सडोर्फ का इशारा पाकर विद्यार्थी वहां से चले गये। उसके बाद वसुदेव हिंडी पर चर्चा होती रही। जैसा कहा जा चुका है, आल्सडोर्फ ने ही सर्वप्रथम दुनिया के विद्वानों का ध्यान वसुदेव हिंडी की महत्ता की ओर आकर्षित किया, इस बात की घोषणा करके कि यह अनुपम ग्रन्थ गुणाढ्य की बृहत्कथा का रूपान्तर है। वसुदेव हिंडी को लेकर जो कार्य उन्होंने किया था, उस सम्बन्ध की जो भी प्रकाशित अथवा अप्रकाशित सामग्री उनके पास थी, उसका पुलिन्दा उन्होंने मेरे समक्ष लाकर रख दिया। निस्संकोच भाव से उस सामग्री का उपयोग करने के लिए उन्होंने मुझसे कहा। इस सामग्री में भारत-भ्रमण के समय स्वयं मुनि पुण्यविजयजी के हस्ताक्षर सहित उन्हें भेंट की हुई वसुदेव हिंडी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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