SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन २१ . + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + ०० और वही चर्चा आगे बढ़ती; मैंने देखा, पूज्य प्रवर श्री गोते लगाये और भारी खजाना इकट्ठा किया। वे प्रबल सम्पूर्ण परिचर्चा के मध्य बराबर सौम्य और मधुर बने जिज्ञासु और ज्ञान संग्राहक हैं। रहते। कठिन से कठिन तर्क और कभी-कभी कुतर्क भी यह बात मैंने तब पाई, जब बदनोर में वे मेरी छोटी, उपस्थित हो जाती तो, वे तनिक भी विचलित नहीं होते, बड़ी डायरियाँ बड़ी ही उत्सुकता के साथ देखने लगे। मैंने इतना ही नहीं, मैंने देखा कि विषय-वस्तु की विवेचना के कहा आपके विस्तृत और विविध ज्ञान खजाने के सामने साथ उनका लक्ष्य बना रहता कि, हमारा युक्तियुक्त समा- यह मेरा थोड़ा-सा संग्रह रत्नों के ढेर के समक्ष एक अंगूठी धान हो। जैसा है। जिसमें कुछेक नगीने जड़े हैं। मैंने खूब जम कर उनके प्रवचन सुने हैं, पूज्य प्रवर पूज्यप्रवर श्री ने कहा-जौहरी के लिए, जड़ाव की श्री के प्रवचनों में गम्भीर अध्यात्मिक विषयों पर विस्तृत छोटी सी अंगूठी का भी कम महत्व नहीं है । उसे तो व्याख्याएँ चलती हैं, तात्विक उपदेशों का प्रवचनों में उससे भी कुछ मिलेगा ही, हानि ही क्या है ? प्राधान्य होता है, किन्तु श्रोताओं को मैंने कभी भी "बोर" मैंने मन ही मन स्वीकार किया सचमुच पूज्य प्रवर होते हुए नहीं देखा। जौहरी ही हैं। _अन्य कई धार्मिक वक्ताओं के प्रवचनों का भी मुझे शिल्पि पत्थर को मूर्ति को आकार देता है, मैंने पूज्य परिचय है, जिनमें अक्सर श्रोता निन्द्रा के झौंकों में झमते पुष्कर मुनि जी महाराज को जन-जीवन को नवीन आकार रहते हैं, किन्तु पूज्य प्रवर श्री के प्रवचनों की छटा ही देते देखा। कितने अनघड़ पत्थर स्वरूप जीवन को पूज्य निराली है। प्रवर ने मानव ही नहीं, अध्यात्मिक मानव के रूप में ___ मैंने पाया कि पूज्य प्रवर श्री गूढ़तम तात्विक गढ़ दिया। विवेचन को भी इतने मंजुल-मोहक ढंग से प्रस्तुत करते हैं समर्थ साहित्यकार श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज, साहित्य कि श्रोता विषय की मार्मिकता तक पहुँचते-पहुँचते खिल- सर्जक श्री गणेश मुनिजी महाराज आज जिनशासन के खिला उठते हैं। साहित्य-गगन में नक्षत्र की तरह चमक रहे हैं, ये आपकी वदन, वचन और विवेचन-सर्वत्र प्रसाद गुणमयी देन है । ज्ञानाराधक मुनि रमेशजी, अभिनव लेखक मन्दाकिनी का मधुर प्रवाह चलता रहता है। मुनि राजेन्द्रजी, साहित्य और साधना की सफलता के "सया पसण्णमणो सुही" प्रस्तुत लोकोक्ति के एक-एक सोपान चढ़ते जा रहे हैं, इन सब के पीछे पूज्य जीवन्त मूर्त स्वरूप पूज्य प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी महाराज प्रवर श्री का कृतित्व दमक रहा है। शोक-संताप से लाखों मील दूर आनन्दमूर्ति के रूप में मुनि समाज ही नहीं, आपका कृतित्व साध्वी समाज मुझे सदा ही प्रेरित करते रहे हैं। के लिये भी बड़ा उपयोगी रहा। पूज्य प्रवर श्री बड़े विनोदी प्रकृति के हैं, मैंने लम्बे परमविदुषी शीलकुँवर जी महाराज, परमविदुषी सम्पर्क में उन्हें कभी भारी मन लिये नहीं पाया। इतना श्री पुष्पवती जी महाराज, परमविदुषी श्री कुसुमवती जी ही नहीं, यदि किसी में कहीं उन्हें अन्यमनस्कता दिख भी महाराज, परमविदुषी श्री कौशल्या जी महाराज, परम जाए तो ये दो क्षण में ही उसे गुदगुदा देंगे। सत्य यह है विदुषी श्री चन्द्रावती जी महाराज, परमविदुषी चन्दनबाला कि उनके वातायन परिवेश में शोक-संताप जी ही नहीं जी महाराज आदि ज्ञानी-ध्यानी और व्याख्याता महासती सकता। ___ जी आपके सफल कृतित्व की प्रतीक हैं। ___आनन्दातिरेक में छलछलाते इनके जीवन घट को पूज्य प्रवर श्री स्वयं साहित्यकार हैं, आपने पचास से हमने कभी खाली होते नहीं देखा, कठिन से कठिन श्रम भी अधिक ग्रन्थ लिखे हैं साथ ही साहित्य प्रणेता तैयार के बाद भी नहीं। कर आपने समाज पर जो उपकार किया है, वह कम मुझे याद है कि किसी लम्बे विहार क्रम में थक कर नहीं है। कहीं हम विश्राम कर रहे होते, दो मिनट के लिये ही सही पूज्य प्रवर श्री ऐक्य के सुदृढ़ समर्थक हैं, श्रमणसंघ महाराज श्री शिष्ट मनोरंजन की कोई ऐसी फुलझड़ी छोड़ की रचना में पूज्य श्री ने सदा ही मौलिक भूमिका अदा देते कि हम सभी खिलखिला उठते और सारी थकावट की। संघ ने भी पूज्य प्रवर को समय-समय पर समुचित को भूल कर सभी एक नयी ताजगी का अनुभव करने पद प्रदान कर आपकी सेवाओं को सम्मानित किया है। लगते। सादड़ी सम्मेलन के अवसर पर आपको मंत्री पद पूज्य पुष्कर मुनि जी महाराज ज्ञान-सिन्धु के एक प्रदान किया। अजमेर सम्मेलन में नवीन व्यवस्था के सफल गोताखोर है। उन्होंने वीतराग तत्व-ज्ञान में खूब अन्तर्गत आपको प्रवर्तक पद से सम्मानित किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy