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________________ २० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ +- - - -.. au . गुलाब के फूल की तरह मुस्कराता हुआ भव्य व्यक्तित्त्व D श्री सौभाग्य मुनि 'कुमुद परम पूज्यनीय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज साहब के आन्तरिकता को, हार्द को पाना एक कठिन कार्य अवश्य विषय में कुछ लिखने को बैठा हूँ तो एक साथ अनेक दृश्य है किन्तु असाध्य नहीं। मेरे स्मृति-पट पर झिलमिलाने लगे हैं। यह मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ कि कई बार, कई __खिले हुए गुलाब के फूल की तरह मुस्कराता हुआ दिन, सप्ताह ही नहीं महिनों तक मुझे इनके पवित्र वह भरपूर व्यक्तित्व स्मृति के साथ ही उभर-उभर कर सानिध्य में रहने का अवसर मिला। मस्तिष्क में ऐसा छा रहा है, मानो अभी-अभी उनसे मैं अपनी सम्पूर्ण हार्दिकता के साथ स्वीकार करता हूँ तात्विक वार्तालाप हुआ हो। कि पूज्य प्रवर श्री के नकट्य का जो अमृतोपम लाभ मुझे प्रत्येक व्यक्तित्व केवल उतना ही नहीं होता जितना मिला, वह मुझे अनेक अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रत्यक्ष है, किन्तु वह अपने में कुछ ऐसी आन्तरिक विशेषताएँ संप्रेरित करता रहा। भी रखता है जो केवल मनोविज्ञान का विषय हो सकती है। पूज्य प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी महाराज साहब की विशेषताएँ तुच्छ भी हो सकती है और उच्च भी। जिन विशेषताओं ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया, उनमें ___ यही कारण है कि एक व्यक्ति विशेष की स्मृति-मात्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है उनका ठेठ हृदय से सर्वदा भय, आतंक और घृणा के लिए पर्याप्त होती है, तो एक प्रसन्न रहना । व्यक्तित्व का स्मरण जीवन को ऊर्ध्वमुखी प्रेरणाओं से मैंने यह खूब गहराई तक जांच कर निर्णय पाया कि भर देता है। ___ यदि पूज्य प्रवर श्री को अर्धरात्रि में भी अचानक जगाया पूज्यप्रवर श्री पुष्कर मुनि जी महाराज साहब के जाए तो जगते ही सर्वप्रथम, वे उपस्थित व्यक्ति का उदात्त व्यक्तित्व में एक उच्चतामूलक विशेषता मैंने देखी है मुस्कराकर स्वागत करते हैं। कभी भी अचानक आप जिसका स्मरण-मात्र एक विशिष्ट स्फूर्ति प्रदान कर देता उनसे मिलिये बड़े ही खुशनुमा तरीके से ये कहेंगेहै। पूज्यप्रवर के संप्रेरणात्मक व्यक्तित्व से हजारों कहिये ! क्या बात है जी ! और यह वाक्य सुनते ही लाभान्वित हुए हैं, यह निःसन्देह है, किन्तु उनके प्रत्यक्ष आपको यह लगेगा कि आप सचमुच उनके ठेठ हृदय के सम्पर्क तथा संस्मरणात्मक स्फुरणाओं से जितना मैं प्रभा- निकट पहुँच गये हैं। वित व लाभान्वित हुआ हूँ, यह अपने आप में मेरे लिए वैयक्तिक वार्तालाप और स्नेह-सम्पर्क के मध्य उनका बड़ा मूल्यवान पहलू है। बड़प्पन कहीं भी, कभी भी बाधक नहीं बनता। व्यक्तित्व की आन्तरिकता किसी भी अति-गुप्त खजाने पूज्य प्रवर श्री एक सम्प्रदाय के अग्रगण्य तथा श्रमण की तरह रहस्यात्मिका होती है, उसे चन्द मिनटों या संघ के वरिष्ठ मुनिराजों में से एक है । मैं एक सामान्य घण्टों के औपचारिक वार्तालाप से नहीं पाया जा सकता। विद्यार्थी मुनि ठहरा, हमारा उनसे कहाँ साम्य ? किन्तु उस स्थिति में तो यह और भी कठिन हो जाता है, जब उनका आनन्द पूरित व्यक्तित्व और मनमोहक वार्तालाप महान् व्यक्तित्व भी एक सामान्य सहज परिवेश में उप- हमें बरबस उनकी तरफ खींच लेता और मैं घण्टों उनसे, स्थित होता हो। आमोदपूर्वक तत्व-चर्चा करता रहता। पूज्य प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी महाराज अत्यन्त सहज यह जरूरी नहीं होता कि प्रत्येक विषय में हम सदा सरल शैली में जीने वाले एक अद्भुत सन्त रत्न हैं, उनकी एक मत ही रहते, कहीं-कहीं विचार भिन्नता होती ही, के संप्रेरणात्मक व्यक्ति प्रदान कर देता उनसे मिलस्वागत करते हैं। कभी : ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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